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सूरज आग उगल रहा है. देश के कई हिस्सों में पारा 50 डिग्री को पार कर गया है. राजधानी दिल्ली के मुंगेशपुर में भी बुधवार को पारा 52 डिग्री के ऊपर चला गया. इस चिलचिलाती गर्मी में सिर्फ दिल्ली ही नहीं, देश के कई इलाकों में पानी की किल्लत भी सामने आ रही है.
दिल्लीवालों को हर दिन 129 करोड़ गैलन पानी की जरूरत है. मगर दिल्ली जल बोर्ड 97 करोड़ गैलन पानी की सप्लाई भी नहीं कर पा रहा है. हालात ये हैं कि पानी की बर्बादी करने पर अब दो हजार रुपये का जुर्माना लगाया जा रहा है.
इसी तरह, इस साल फरवरी-मार्च में पानी के भयानक संकट से जूझ रहे बेंगलुरु में हालात अब भी पूरी तरह से सुधरे नहीं हैं.
बात यहीं खत्म नहीं होती. अभी हालात और बिगड़ने का डर है. नीति आयोग का कहना है कि हो सकता है कि 2030 तक 40 फीसदी भारतीयों को पीने का पानी भी न मिले. नीति आयोग ने अपनी रिपोर्ट में ये भी अनुमान लगाया था कि भारत के 21 बड़े शहरों में ग्राउंडवाटर खत्म होने की कगार पर है, जिससे लगभग 10 करोड़ आबादी प्रभावित होगी.
भारत में कितना पानी?
दुनिया की 17% आबादी और 15% मवेशी भारत में रहते हैं, लेकिन यहां साफ पानी के संसाधन महज 4% ही हैं. पानी की जरूरतें सरफेस वाटर और ग्राउंडवाटर से पूरी होती है. सरफेस वाटर में नदियां, तालाब, झीलें आती हैं. जबकि, ग्राउंडवाटर यानी जमीन के अंदर मौजूद पानी. दोनों ही मॉनसून पर निर्भर हैं.
लेकिन समस्या ये है कि सरफेस वाटर और ग्राउंडवाटर, दोनों ही तेजी से कम हो रहे हैं. नदियां-तालाब सूख रहे हैं और हर साल कम से कम 0.3 मीटर ग्राउंटवाटर कम होता जा रहा है.
इसका एक बड़ा कारण खेती-बाड़ी है. भारत में खेती-बाड़ी बहुत ज्यादा होती है और इसके लिए पानी की काफी जरूरत पड़ती है. अनुमान है कि भारत में हर साल जितना पानी उपयोग होता है, उसका लगभग 80 फीसदी खेती-बाड़ी में ही इस्तेमाल होता है.
बुरा वक्त आना अभी बाकी है!
अनुमान है कि अभी भारत में हर साल 3,880 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी बारिश से मिलता है. लेकिन इसमें से 1,999 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी ही उपलब्ध होता है. अब इसमें से भी 1,122 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी ही इस्तेमाल के लायक होता है, लेकिन हम 699 बिलियन क्यूबिक पानी ही उपयोग कर पाते हैं. (1 बिलियन क्यूबिक मीटर में 4 लाख ओलंपिक साइज स्विंमिंग पूल के बराबर पानी होता है.)
अब समस्या ये है कि आबादी और लोगों की जरूरतें तेजी से बढ़ रही है, जिस कारण पानी कम पड़ता जा रहा है.
इसे ऐसे समझिए कि 1947 में हर व्यक्ति के लिए औसतन 6,042 क्यूबिक मीटर (60.42 लाख लीटर) पानी मौजूद था. लेकिन 2011 तक ये घटकर 1,545 क्यूबिक मीटर (15.45 लाख लीटर) हो गया. 2031 तक हर भारतीय के लिए औसतन 1,367 क्यूबिक मीटर (13.67 लाख लीटर) पानी ही रहेगा. जबकि, 2051 तक तो 1,140 क्यूबिक मीटर (11.40 लाख लीटर) पानी ही रह जाएगा.
जब प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 1,700 क्यूबिक मीटर यानी 17 लाख लीटर से कम होती है, तब माना जाता है कि देश में पानी की कमी हो रही है. लेकिन जब ये उपलब्धता 1,000 क्यूबिक मीटर यानी 10 लाख लीटर से कम हो जाएगी तो माना जाएगा कि भारत में पानी की भयानक किल्लत है.
पर ऐसा क्यों?
देखा जाए तो पानी की इस पूरी समस्या की जड़ मैनेजमेंट से जुड़ी है. भारत में पानी को सही तरीके से मैनेज नहीं किया जा रहा है.
सेंट्रल वाटर कमीशन (CWC) के मुताबिक, भारत को हर साल तीन हजार क्यूबिक मीटर पानी की जरूरत है. जबकि, सालाना इससे कहीं ज्यादा पानी बारिश से मिल जाता है. उसके बावजूद इसका एक-चौथाई पानी इस्तेमाल नहीं किया जाता है.
पीने के पाने के लिए ग्राउंडवाटर सबसे बड़ा जरिया है. लेकिन ग्राउंडवाटर का सबसे ज्यादा इस्तेमाल खेती-बाड़ी में होता है. ये तब है जब बारिश, नदी और तालाबों से भी सिंचाई हो रही है.
अनुमान है कि खेती-बाड़ी में 80% और इंडस्ट्रियों में 12% पानी ग्राउंडवाटर से लिया जाता है. किसान और इंडस्ट्री मालिक ग्राउंडवाटर को सबसे आसान जरिया मानते हैं. यही कारण है कि जमीन से पानी निकालने में भारत पहले नंबर पर बना हुआ है.
और ग्राउंडवाटर का सिर्फ 8% ही पीने के लिए इस्तेमाल होता है. जमीन से निकले पाने को शुद्ध करने की जरूरत नहीं पड़ती, जबकि बाकी जरियों से आए पानी को पीने लायक बनाना पड़ता है. इस हिसाब से खेती-बाड़ी और इंडस्ट्रियों में ग्राउंडवाटर का ज्यादा इस्तेमाल होने से पीने का बहुत सारा पानी बर्बाद हो जाता है.
कैसे हो रही पानी की बर्बादी?
जब भी पानी की बर्बादी की बात होती है तो आमतौर पर इसके लिए खेती-बाड़ी और इंडस्ट्रियों को दोषी ठहरा दिया जाता है. लेकिन भारत में घरों में भी हर दिन काफी पानी बर्बाद होता है.
माना जाता है कि हर व्यक्ति को अपनी जरूरतों के लिए हर दिन 150 लीटर पानी की जरूरत पड़ती है. इसमें से खाना खाने और पीने के लिए सिर्फ 5 लीटर पानी लगता है. स्टडी से पता चला है कि भारत में हर व्यक्ति हर दिन 45 लीटर पानी बर्बाद कर देता है.
घरों में पानी के बर्बाद होने की एक वजह वाटर प्यूरिफायर भी हैं. वाटर प्यूरिफायर 1 लीटर पानी को साफ करने के लिए 4 लीटर पानी का इस्तेमाल करता है.
इतना ही नहीं, लापरवाही के कारण हर दिन भारत में 49 अरब लीटर पानी बर्बाद हो जाता है. इसे लेकर एनजीटी ने जल शक्ति मंत्रालय से रिपोर्ट भी मांगी है. एनजीटी का कहना है कि पानी बर्बाद करने वालों पर फाइन लगाया जाना चाहिए.
इसके अलावा बोतलबंद पानी से भी पानी की जबरदस्त बर्बादी होती है. रिपोर्ट के मुताबिक, पैकेज्ड ड्रिंकिंग वाटर बेचने वाली हर कंपनी जमीन से हर घंटे 5 से 20 हजार लीटर पानी निकालती है. बोतलबंद पानी ही नहीं, बल्कि सॉफ्ट ड्रिंक भी पानी की बर्बादी का बड़ा कारण है. जनवरी 2017 में केरल सरकार ने इंडस्ट्रियों को मिलने वाले पानी में 75% की कटौती कर दी थी. इस कारण पेप्सिको को अपना प्लांट बंद करना पड़ गया था. क्योंकि पेप्सिको हर दिन जमीन से 6 लाख लीटर पानी निकाल रही थी.
कितनी बड़ी पानी की समस्या?
WHO और UNICEF की 2019 की रिपोर्ट में चेताया गया था कि 10 करोड़ भारतीयों के पास पानी की सप्लाई का कोई ठोस साधन भी नहीं है.
2018 की नीति आयोग की रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया था कि 2030 तक 60 करोड़ भारतीयों को पानी की किल्लत से जूझना पड़ सकता है. यानी, उस वक्त 40% आबादी ऐसी होगी जो पानी की समस्या से जूझ रही होगी. इसी रिपोर्ट में ये भी अनुमान लगाया गया था कि पीने का साफ पानी नहीं मिल पाने के कारण हर साल दो लाख लोगों की मौत हो जाती है.
इतना ही नहीं, हम जो पानी पी रहे हैं, वो भी जहरीला है. दो साल पहले संसद में सरकार ने माना था कि देश के लगभग सभी राज्यों के ज्यादातर जिलों में ग्राउंडवाटर में जहरीली धातुओं की मात्रा तय मानक से ज्यादा है.
संसद में सरकार ने उन रिहायशी इलाकों की संख्या का आंकड़ा भी दिया था, जहां पीने के पानी के स्रोत प्रदूषित हो चुके हैं. इसके मुताबिक, 671 इलाके फ्लोराइड, 814 इलाके आर्सेनिक, 14079 इलाके आयरन, 9930 इलाके खारापन, 517 इलाके नाइट्रेट और 111 इलाके भारी धातु से प्रभावित हैं.
क्या कर सकता है भारत?
ज्यादातर स्टडी और रिपोर्ट में यही अनुमान है कि आने वाले वक्त में पानी की समस्या और गंभीर होती जाएगी. अगर आज कोई उपाय नहीं किए गए तो आने वाला समय और बुरा हो सकता है.
इससे निपटने के लिए भारत को पानी की रिसाइकिलिंग करने की जरूरत है. रिसाइकलिंग न हो पाने के कारण अभी बहुत सारा पानी बर्बाद हो जाता है. दूसरे देशों के उदाहरण से इसे समझ सकते हैं. सिंगापुर ने 2030 तक 70% पानी को रिसाइकिल करने का लक्ष्य रखा है. इसके लिए सिंगापुर कई किलोमीटर लंबी सुरंगे बना रहा है, जिससे सीवरों से निकलने वाले खराब पानी को पंप किया जाता है और तकनीक के जरिए रिसाइकिल किया जाता है.
बहरहाल, नीति आयोग का अनुमान है कि 2030 तक भारत के 21 शहरों में पानी की भयानक कमी हो सकती है. इनमें नई दिल्ली, बेंगलुरु, चेन्नई, हैदराबाद, रतलाम, इंदौर, गाजियाबाद, अजमेर, मोहाली, बीकानेर, आगरा, पटियाला, अमृतसर, जालंधर और गुरुग्राम जैसे शहर शामिल हैं.
नीति आयोग का अनुमान है कि आज पानी की जितनी जरूरत है, आने वाले समय में ये दोगुनी हो जाएगी और इस कारण जीडीपी को कम से कम 6% नुकसान हो सकता है. इन सारी परेशानियों से बचने के लिए ग्राउंडवाटर का सही इस्तेमाल, पानी की कम से कम बर्बादी और नदी-तालाबों को प्रदूषण से बचाने की जरूरत है.