लोकसभा चुनाव 2024 में संपत्ति के बंटवारे पर पहले से ही घमासान मचा हुआ था, इसपर सैम पित्रोदा विरासत टैक्स की बात करते हुए बची-खुची कसर भी पूरी कर दी. अब इन्हीं बातों को लेते हुए भाजपा विपक्ष पर हमलावर है. वो चेतावनी दे रही है कि अगर कांग्रेस को मौका मिला तो वो लोगों के पैसे ले-लेकर घुसपैठियों और ज्यादा बच्चे वाले परिवारों को बांट देगी.
क्या है पूरा मामला
राजस्थान में रविवार को हुई एक रैली में पीएम मोदी ने कहा- कांग्रेस के शहजादे कहते हैं कि अगर उनकी सरकार आई तो वे जांच करेंगे कि कौन कितना कमाता है और उसके पास कितनी जायदाद है. इसके बाद सरकार उस प्रॉपर्टी को रीडिस्ट्रिब्यूट कर देगी. ये उनका चुनावी घोषणापत्र कह रहा है.
बुधवार को कांग्रेसी नेता सैम पित्रोदा के विरासत टैक्स वाले बयान ने एक और विवाद को हवा दे दी. इसके मुताबिक, पुश्तैनी जायदाद का 45 प्रतिशत उसके वारिस को मिलेगा, जबकि बाकी हिस्सा सरकार को चला जाएगा. पित्रोदा ने अमेरिका के कई राज्यों के हवाले से ऐसी बात की थी.
फिलहाल भाजपा और कांग्रेस के बीच बहस जारी है. इस बीच हम ये जानते हैं कि संपत्ति के बंटवारे पर संविधान में क्या कोई बात है. क्या कभी सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा कोई मुद्दा उठाया है.
क्या है वेल्थ रीडिस्ट्रिब्यूशन का मतलब
अप्रैल को कांग्रेस का इलेक्शन मेनीफेस्टो निकला. इसके बाद ही राहुल गांधी ने संपत्ति के दोबारा बंटवारे की बात उठाई थी. राहुल ने कहा कि पहले हम कास्ट सेंसस करेंगे ताकि कुल आबादी और उसमें पिछड़ा वर्ग, एससी, एससी, माइनोरिटी और बाकी जातियों का स्टेटस पता चल सके. इसके बाद फाइनेंशियल सर्वे होगा, जिसके बाद हम संपत्ति, नौकरियों और बाकी वेलफेयर स्कीम्स को बांटने का ऐतिहासिक काम शुरू करेंगे.
क्या फायदे हो सकते हैं इसके
आसान भाषा में समझें तो राहुल एक तरह से रॉबिन हुड स्कीम की तर्ज पर बात कर रहे हैं. रॉबिन हुड अंग्रेजी कहानियों का हीरो था, जो अमीरों को लूटकर उनके पैसे गरीबों में बांट देता. वेल्थ रीडिस्ट्रिब्यूशन यही चीज है. लेकिन इसमें पैसे लूटने की बजाए किसी सिस्टम जैसे टैक्स या चैरिटी से पैसे एक के दूसरे तक पहुंचेंगे.
टैक्स एक किस्म का बंटवारा ही है
फिलहाल हम जो टैक्स दे रहे हैं, वो भी एक तरह का वेल्थ रीडिस्ट्रब्यूशन ही है. जो लोग ज्यादा पैसे कमाते हैं, उन्हें कम पैसे वाले लोगों से कहीं ज्यादा टैक्स भरना होता है. इससे कई मायनों में समाज में असमानता कम होती है. जैसे वेलफेयर स्कीम्स निकलती हैं ताकि गरीबों को काम मिल सके. या सड़कें, पुल बन सकें.
भारत में कितनी असमानता
हमारे यहां गरीब और अमीर के बीच खाई बढ़ती जा रही है. पेरिस स्थिति संस्था वर्ल्ड इनइक्वैलिटी लैब ने इसपर एक रिपोर्ट जारी की. इसके अनुसार, नब्बे के दशक के बाद से दोनों के बीच फर्क बढ़ता चला गया. लेकिन बीते दस सालों में ये सबसे ज्यादा हो गया. रिपोर्ट कहती है कि सबसे ज्यादा इनकम गैप वाले कुछ देशों में भारत भी शामिल है.
क्या देश के संविधान में इसका जिक्र है
भारतीय संविधान वेल्थ रीडिस्ट्रिब्यूशन पर सीधे-सीधे कोई बात नहीं करता कि ऐसा हो जाना चाहिए, या चाहने पर ये किया जा सकता है. हालांकि इसका आर्टिकल 39 कहता है भौतिक संसाधनों का मालिकाना हक और कंट्रोल इस तरह हो कि आम लोगों की भलाई हो सके. आगे जोड़ा गया है कि राज्य अपनी पॉलिसी इस तरह बनाएं कि उनका इकनॉमिक सिस्टम वेल्थ कंसन्ट्रेशन की तरफ न जाए. वेल्थ कंसन्ट्रेशन का मतलब है कुछ लोगों के पास सबसे ज्यादा दौलत का होना.
फर्स्टपोस्ट अंग्रेजी की एक रिपोर्ट का कहना है कि जब आर्टिकल 39 जोड़ा गया था तो काफी विवाद भी हुआ था. कई बुद्धिजीवी नेताओं के बीच ये मुद्दा था कि क्या राज्य के पास की-इंडस्ट्रीज का कंट्रोल होना चाहिए, या फिर क्या संविधान में किसी पॉलिटिकल या इकनॉमिक विचारधारा की बात होनी चाहिए.
क्या मानना है सुप्रीम कोर्ट का
वेल्थ रीडिस्ट्रिब्यूशन पर बहस केवल राजनेताओं के बीच या सोशल मीडिया पर नहीं हो रही, सर्वोच्च न्यायालय में भी इसकी धमक है. 23 अप्रैल को नौ जजों की बेंच ने इसपर सुनवाई शुरू की कि क्या प्राइवेट प्रॉपर्टी को भी समुदाय की संपत्ति माना जा सकता है. इस मामले पर बहस करने वाले वकीलों का कहना है कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों को सबसे ऊपर रखने वाले देश में इस तरह की सोच का कोई मतलब नहीं.
इसका मतलब ये निकाला जा सकता है कि एक से लेकर उसकी संपत्ति दूसरे को देने जैसी बात शायद कोर्ट को भी खास समझ नहीं आ रही.
बचाव में कांग्रेस का क्या कहना है
वेल्थ रीडिस्ट्रिब्यून को लेकर सोशल मीडिया पर बवाल मचा हुआ है. लोग सवाल कर रहे हैं कि क्या वे मेहनत करना छोड़ दें क्योंकि उनकी खून-पसीने की कमाई दूसरों को मिलने वाली है. इस बीच विपक्ष के अलग-अलग नेताओं का बयान लगातार आ रहा है. वे समझा रहे हैं कि 45 पेज के घोषणापत्र में कहीं भी एक की दौलत लेकर दूसरे को बांटने जैसी बात नहीं. बल्कि वे ऐसी पॉलिसी बनाना चाहते हैं जिससे अमीर-गरीब के बीच की फासला कम हो सके.