Citizenship Amendment Act 2019: लोकसभा चुनाव की घोषणा से पहले ही केंद्र सरकार देश में नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 (CAA) लागू कर दिया है. अब से कुछ देर पहले ही सरकार की तरफ से CAA की अधिसूचना जारी की गई. कानून संसद के दोनों सदनों से 4 साल पहले मंजूर हो गया था. राष्ट्रपति की मुहर भी लग गई थी. सिर्फ नोटिफिकेशन जारी होने का इंतजार किया जा रहा था.
आइए जानते हैं कि सीएए में क्या प्रावधान हैं और इस कानून के लागू होने से किन लोगों को नागरिकता दी जाएगी?
दरअसल, इस महीने की शुरुआत में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी सीएए को लेकर बयान दिया था. उन्होंने कहा था कि सीएए के संबंध में नियम जारी कर इस साल लोकसभा चुनाव से पहले लागू किया जाएगा. शाह का कहना था कि हमारे मुस्लिम भाइयों को गुमराह किया जा रहा है और भड़काया जा रहा है. सीएए सिर्फ उन देशों के अल्पसंख्यक लोगों को नागरिकता देने के लिए है जो पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में उत्पीड़न का सामना करने के बाद भारत आए हैं. यह किसी की भारतीय नागरिकता छीनने के लिए नहीं है. सूत्रों का कहना है कि केंद्र सरकार आदर्श आचार संहिता लागू होने से पहले किसी भी समय नागरिकता संशोधन अधिनियम के नियमों को अधिसूचित कर सकती है.
1. संसद की टेबल पर कब पर आया सीएए?
नागरिकता संशोधन बिल पहली बार 2016 में लोकसभा में पेश किया गया था. यहां से तो ये पास हो गया था, लेकिन राज्यसभा में अटक गया था. बाद में इसे संसदीय समिति के पास भेजा गया और फिर 2019 का चुनाव आ गया. फिर से मोदी सरकार बनी. दिसंबर 2019 में इसे लोकसभा में दोबारा पेश किया गया. इस बार ये बिल लोकसभा और राज्यसभा, दोनों जगह से पास हो गया. 10 जनवरी 2020 को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई थी.
2. इतने वर्षों तक क्यों अटका रहा सीएए?
सीएए के लागू होने में देरी के कई फैक्टर रहे हैं. शुरुआती विरोध के कारण पूरे देश में सीएए पर बहस तेज हो गई थी. खासकर असम और त्रिपुरा जैसे राज्यों में व्यापक प्रदर्शनों ने चिंताएं बढ़ा दी थीं. दिल्ली के शाहीन बाग में धरना दिया गया. असम के गुवाहाटी में विरोध में सभाएं हुईं. उसके बाद सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की गईं और इसकी संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाए गए.आलोचकों ने तर्क दिया कि ये कानून भेदभावपूर्ण है. इसमें म्यांमार के रोहिंग्या और तिब्बती बौद्धों जैसे कुछ उत्पीड़ित समूहों को शामिल नहीं किया गया है. इस बीच कोरोना के कारण देश में लॉकडाउन और प्रतिबंध लागू कर दिए गए. ऐसे में विरोध-प्रदर्शन थम गए थे. फिर सीएए पर लंबी खामोशी बनी रही. संसद में पारित होने के चार साल बाद भी सीएए लागू नहीं हो सका. इसके नियमों और प्रक्रिया को अंतिम रूप दिया जाना बाकी था.
3. लगातार एक्सटेंशन क्यों ले रही है केंद्र सरकार?
सवाल उठते रहे हैं कि इस कानून को लागू करने में देरी क्यों हो रही है? साल 2020 से सरकार की तरफ से लगातार सीएए को लेकर एक्सटेंशन लिया जा रहा है. दरअसल, संसदीय प्रक्रियाओं की नियमावली के मुताबिक किसी भी कानून के नियम राष्ट्रपति की सहमति के 6 महीने के भीतर तैयार किए जाने चाहिए. ऐसा ना होने पर लोकसभा और राज्यसभा में अधीनस्थ विधान समितियों से विस्तार की मांग की जानी चाहिए. सीएए के केस में 2020 से गृह मंत्रालय नियम बनाने के लिए संसदीय समितियों से नियमित अंतराल में एक्सटेंशन लेता रहा है.
4. 'किन लोगों को नागरिकता दी जाएगी?'
नागरिकता देने का अधिकार पूरी तरह से केंद्र सरकार के पास है. पड़ोसी देश अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदू, सिख, जैन, पारसी, बौद्ध और ईसाई समुदायों से आने वाले प्रवासियों को भारतीय नागरिकता देने के लिए 1955 के नागरिकता अधिनियम में संशोधन किया गया है. ऐसे प्रवासी नागरिक, जो अपने देशों में धार्मिक उत्पीड़न से तंग आकर 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत में आकर शरण ले चुके हैं. इस कानून के तहत उन लोगों को अवैध प्रवासी माना गया है, जो भारत में वैध यात्रा दस्तावेज (पासपोर्ट और वीजा) के बगैर घुस आए हैं या फिर वैध दस्तावेज के साथ तो भारत में आए हैं, लेकिन तय अवधि से ज्यादा समय तक यहां रुक गए हों.
5. आवेदन करने की प्रक्रिया क्या होगी?
सरकार ने पूरी प्रक्रिया को ऑनलाइन बनाया है. इसके लिए ऑनलाइन पोर्टल भी तैयार किया गया है. आवेदक अपने मोबाइल फोन से भी एप्लाई कर सकता है. आवेदकों को वह साल बताना होगा, जब उन्होंने दस्तावेजों के बिना भारत में प्रवेश किया था. आवेदकों से कोई दस्तावेज नहीं मांगा जाएगा. नागरिकता से जुड़े जितने भी ऐसे मामले पेंडिंग हैं वे सब ऑनलाइन कन्वर्ट किए जाएंगे. पात्र विस्थापितों को सिर्फ पोर्टल पर ऑनलाइन आवेदन करना होगा. उसके बाद गृह मंत्रालय जांच करेगा और नागरिकता जारी कर देगा.
6. क्या अब तक किसी को नागरिकता नहीं मिली?
सरकार ने 9 राज्यों के डीएम को नागरिकता को लेकर बड़े अधिकार दिए हैं. पिछले दो साल में 9 राज्यों के 30 से ज्यादा जिला मजिस्ट्रेटों और गृह सचिवों को अथॉरिटी दी गई है. डीएम को अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से आए गैर मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदायों को भारतीय नागरिकता देने की शक्तियां मिली हैं. गृह मंत्रालय की 2021-22 की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक 1 अप्रैल 2021 से 31 दिसंबर 2021 तक इन गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदायों के कुल 1,414 विदेशियों को भारतीय नागरिकता दी गई है. जिन 9 राज्यों में नागरिकता दी गई है, उनमें गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और महाराष्ट्र का नाम शामिल है.
7. CAA लागू होने से क्या किसी की नागरिकता जाएगी?
सरकार ने साफ किया है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) में किसी भी भारतीय की नागरिकता छीनने का कोई प्रावधान नहीं है. यानी किसी की नागरिकता पर कोई संकट नहीं है. गृह मंत्री का कहना है कि सीएए किसी की नागरिकता छीनने का कानून नहीं है. CAA के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से 31 दिसंबर 2014 से पहले आए गैर मुस्लिम छह समुदायों को नागरिकता देने का प्रावधान किया है.
8. आमतौर पर कैसे मिलती है नागरिकता?
कानूनन भारत की नागरिकता के लिए कम से कम 11 साल तक देश में रहना जरूरी है. लेकिन, नागरिकता संशोधन कानून में इन तीन देशों के गैर-मुस्लिमों को 11 साल की बजाय 6 साल रहने पर ही नागरिकता दे दी जाएगी. बाकी दूसरे देशों के लोगों को 11 साल का वक्त भारत में गुजारना होगा, भले ही फिर वो किसी भी धर्म के हों.
9. नॉर्थ ईस्ट में क्यों बस गए शरणार्थी?
- नॉर्थ-ईस्ट इस समय अल्पसंख्यक बंगाली हिंदुओं का गढ़ बन गया है. इसकी वजह भी सामने आई है. दरअसल, पाकिस्तान के पूर्वी हिस्से में बड़ी संख्या संख्या में बंगाली भाषी बसे हुए थे, जिन पर लगातार हिंसा हो रही थी. वहां युद्ध हुआ और बांग्लादेश बन गया. लेकिन, कुछ ही समय में बांग्लादेश में भी हिंदू बंगालियों पर अत्याचार होने लगे, क्योंकि ये देश भी मुस्लिम बहुसंख्यक है.
- पाकिस्तान और बांग्लादेश में अत्याचार से परेशान होकर लोगों ने पलायन शुरू कर दिया और भागकर भारत आने लगे. इन लोगों को वैसे तो अलग-अलग राज्यों में बसाया जा रहा था, लेकिन पूर्वोत्तर का कल्चर इन्हें अपने ज्यादा करीब लगा और वे वहीं बसने लगे. चूंकि पूर्वोत्तर राज्यों की सीमा बांग्लादेश से सटी हुई है इसलिए भी वहां से लोग आते हैं.
10. क्या बदल जाएगा?
मेघालय में वैसे तो गारो और जैंतिया जैसी ट्राइब मूल निवासी हैं, लेकिन अल्पसंख्यकों के आने के बाद वे पीछे रहे गए. हर जगह माइनोरिटी का दबदबा हो गया. इसी तरह त्रिपुरा में बोरोक समुदाय मूल निवासी है, लेकिन वहां भी बंगाली शरणार्थी भर चुके हैं. यहां तक कि सरकारी नौकरियों में बड़े पद भी उनके ही पास जा चुके हैं. अब अगर सीएए लागू होता है तो मूल निवासियों की बचीखुची ताकत भी चली जाएगी. दूसरे देशों से आकर बसे हुए अल्पसंख्यक उनके संसाधनों पर कब्जा कर लेंगे. यही डर है, जिसकी वजह से पूर्वोत्तर सीएए का भारी विरोध कर रहा है.
असम में क्या फर्क पड़ेगा?
असम में 20 लाख से ज्यादा हिंदू बांग्लादेशी अवैध रूप से निवास कर रहे हैं. यह दावा साल 2019 में वहां के स्थानीय संगठन कृषक मुक्ति संग्राम कमेटी ने किया था. यही हालात बाकी राज्यों के हैं.
सीएए को लेकर क्या कह रही है सरकार और विपक्ष?
विपक्ष का कहना है कि यह प्रावधान सिर्फ छह धर्मों से जुड़े लोगों तक ही क्यों सीमित है. मुसलमानों को शामिल क्यों नहीं किया गया और यह सिर्फ तीन देशों से आने वाले लोगों पर ही क्यों लागू होता है? केंद्र सरकार का दावा है कि इन छह धर्मों के लोगों को तीनों इस्लामिक देशों में उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है. इसलिए उन्हें आश्रय प्रदान करना भारत का नैतिक दायित्व है. मुसलमान वहां धार्मिक मामलों में पीड़ित नहीं हैं.
- विपक्ष का कहना है कि इस कानून के जरिए खासतौर पर मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है. वे जानबूझकर अवैध घोषित किए जा सकते हैं. वहीं, बिना वैध दस्तावेजों के भी बाकियों को जगह मिल सकती है. विपक्ष का तर्क है कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है जो समानता के अधिकार की बात करता है.
- हालांकि पूर्वोत्तर के पास अलग वजह है. वे मानते हैं कि अगर बांग्लादेश से आए अल्पसंख्यकों को नागरिकता मिली, तो उनके राज्य के संसाधन बंट जाएंगे. एक बड़ा वर्ग यह भी कहता है कि पूर्वोत्तर के मूल लोगों के सामने पहचान और आजीविका का संकट पैदा हो जाएगा.
- पूर्वोत्तर के मूल निवासी यानी वहां बसे आदिवासी लोग सीएए के विरोध में हैं. इन राज्यों में अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड और त्रिपुरा शामिल हैं.
- इन सातों राज्यों के मूल लोग सजातीय हैं. इनका खानपान और कल्चर काफी हद तक मिलता है. लेकिन कुछ दशकों से यहां दूसरे देशों से अल्पसंख्यक समुदाय भी आकर बसने लगा. खासकर बांग्लादेश और पाकिस्तान के अल्पसंख्यक बंगाली यहां आने लगे.
गृह मंत्री अमित शाह सीएए पर क्या कहते हैं?
गृह मंत्री अमित शाह ने 2024 के आम चुनाव से पहले CAA लागू करने का वादा किया था. इसके पारित होने के करीब तीन साल बाद यानी 29 नवंबर, 2023 को गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था, बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार सीएए लागू करेगी और इसे कोई नहीं रोक सकता है. गृह मंत्री शाह ने तुष्टिकरण, घुसपैठ, भ्रष्टाचार और राजनीतिक हिंसा को लेकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर भी हमला बोला था. 3 जनवरी को एक मीडिया रिपोर्ट में भी कहा गया कि केंद्र सरकार ने सीएए के नियम तैयार कर लिए हैं. 2024 में लोकसभा चुनाव की घोषणा से पहले अधिसूचित कर दिया जाएगा. केंद्र सरकार के सूत्र का कहना था, एक बार नियम जारी होने के बाद कानून लागू किया जा सकता है. पात्र लोगों को भारतीय नागरिकता दी जा सकती है.
- 28 जनवरी को केंद्रीय मंत्री शांतनु ठाकुर ने कहा था कि 7 दिन में CAA के नियम आ जाएंगे. उन्होंने इसके जल्द लागू होने की गारंटी भी दी थी. शांतनु ठाकुर पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना में एक जनसभा को संबोधित कर रहे थे. वे बंगाण लोकसभा सीट से बीजेपी सांसद हैं. ये इलाका बांग्लादेश की सीमा से सटा है.
- वहीं, आम चुनाव से पहले सीएए लागू करने की चर्चा को विपक्षी दल राजनीति के तौर पर देख रहे हैं. टीएमसी नेता शशि पांजा कहते हैं कि हमेशा की तरह बीजेपी सीएए को लेकर अपनी पुरानी रणनीति का सहारा ले रही है. जब वो (शांतनु ठाकुर) ये बयान देते हैं तो उनमें आत्मविश्वास की कमी होती है. हमारी सीएम ममता बनर्जी ने बहुत स्पष्ट रूप से कहा है कि यह बीजेपी के लिए एक चुनावी मुद्दा है. वह लोगों के लिए जिस तथाकथित नागरिकता की बात कर रहे हैं, वे पहले से ही इस देश के नागरिक हैं.
ममता की पार्टी ने क्या कहा...
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली टीएमसी शुरू से ही सीएए का विरोध कर रही है. टीएमसी ने सीएए नियमों की जल्द अधिसूचना की खबरों पर मंगलवार को चिंता जताई और आरोप लगाया कि इस तरह की अटकलों का उद्देश्य जनता को गुमराह करना और संसदीय चुनाव से पहले बीजेपी की सांप्रदायिक बयानबाजी फैलाना है. टीएमसी प्रवक्ता कुणाल घोष ने कहा, हमारी पार्टी सुप्रीमो और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने स्पष्ट रूप से कहा है कि हम सीएए का विरोध करेंगे. अधिनियम के कार्यान्वयन के संबंध में जिस तरह की रिपोर्टें सामने आ रही हैं, हम उससे चिंतित हैं. जिस तरह से राज्य के निवासियों के आधार कार्ड निष्क्रिय किए जा रहे हैं, वो नागरिकता संशोधन अधिनियम को लागू करने का एक सुनियोजित हिस्सा है. TMC सीएए लागू करने के केंद्र के प्रयासों का पुरजोर विरोध करेगी. हम इसे चुनाव से पहले बीजेपी की सांप्रदायिक बयानबाजी का हिस्सा मानते हैं.