आज से कुछ साल पहले तक अमेरिका ने तालिबान को टैरर गुट नहीं माना था. अफगानिस्तान में राज कर रहे तालिबान को उसके खौफनाक तौर-तरीकों के लिए जाना जाता है. हत्याएं और महिलाओं के साथ हिंसा इसके लिए आम है. इसके बाद भी अमेरिका ने इसे ब्लैकलिस्ट नहीं किया था. पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे देशों पर लगातार गुस्सा जाहिर करने वाले इस मुल्क के लिए ये कोई अनोखी बात नहीं. वो पहले भी ऐसा करता आया है.
कैसे मानता है अमेरिका किसी की आतंकी
अमेरिकी सरकार किसी संगठन को फॉरेन टैररिस्ट ऑर्गेनाइजेशन (FTO) तभी मानती है, जब वो लगातार आतंक मचा रहा हो. साथ ही उसने कुछ न कुछ ऐसा किया हो, जिससे उसके लोगों या उसकी सीमा को नुकसान पहुंचा हो. तालिबान वैसे इस पैमाने पर खरा उतरता तो था, लेकिन साल 2017 तक अमेरिका इससे बचता रहा. इसकी एक वजह ये हो सकती है कि इससे अमेरिका और अफगानिस्तान के डिप्लोमेटिक रिश्तों पर असर पड़ता.
इसकी बजाए अमेरिका ने ये किया कि तालिबान को ग्लोबल टैररिस्ट एन्टिटी का दर्जा दे दिया. ये वो नियम है, जिसके तहत तालिबान या किसी भी आतंकी गुट से जुड़े लोगों को आसानी से दूसरे देश की सीमा पार करने की इजाजत नहीं मिलती है. साथ ही कुछ आर्थिक पाबंदियां भी लग जाती हैं. फिलहाल अमेरिकी लिस्ट में तहरीक-ए-तालिबान का नाम तो है, जो पाकिस्तान से ऑपरेट होता है, लेकिन अफगान तालिबान इससे गायब है.
फिलहाल FTO में करीब 90 संगठन शामिल हैं, जिनमें से सबसे ज्यादा गुट पाकिस्तान और अफगानिस्तान से हैं. सरकारें समय-समय पर लिस्ट की छंटनी भी करती हैं. और अगर कोई गुट खत्म हो गया हो तो उसे हटा देती हैं.
हमास की क्या स्थिति है
हमास की बात करें तो नब्बे की शुरुआत में ही उसे टैररिस्ट ऑर्गेनाइजेशन मान लिया गया था. उसके अलावा यूनाइटेड किंगडम, इजरायल, ऑस्ट्रेलिया, जापान और यूरोपियन यूनियन ने हमास को आतंकी माना. आगे चलकर बाकी देश भी हमास को आतंकी संगठन का दर्जा देने लगे.
भारत में अनलॉफुल एक्टिविटीज प्रिवेंशन एक्ट 1967 है. गृह मंत्रालय इसकी लिस्ट बनाता है. वही तय करता है कि कौन से गुट आतंकी की श्रेणी में आएंगे, और कौन बाहर रहेंगे. कई गुट अलग विचारधारा के होते हैं, लेकिन अगर वे कत्लेआम न मचाएं, या पब्लिक प्रॉपर्टी का नुकसान न करें तो टैरर ग्रुप में आने से बचे रहते हैं.
भारत में कितने टैरर गुट सक्रिय हैं
हमारे यहां की लिस्ट में फिलहाल 45 संगठन हैं. ये सभी वे गुट हैं, जो भारत के भीतर या बाहर आतंक फैलाने वाली एक्टिविटीज में शामिल रहे. वैसे मिनिस्ट्री ऑफ होम अफेयर्स की लिस्ट में 39 संगठन हैं, जिन्हें बैन्ड ऑर्गेनाइजेशन का दर्जा मिला हुआ है. इसमें ISIS और जैश-ए-मोहम्मद जैसे नाम भी हैं, जो फॉरेन से चलने वाले संगठन हैं, लेकिन जिसके जाल भारत तक फैले रहे.
लिस्ट में ज्यादातर नाम पाकिस्तानी चरमपंथी समूहों के हैं, जो कश्मीर के नाम पर भारत में हिंसा करते रहे. वैसे भी भारत के अलावा लगभग पूरा वेस्ट पाकिस्तान को आतंकी समूहों के लिए सेफ हेवन मानता है. बीच में इस देश पर इसी बात को लेकर फाइनेंशियल नकेल भी कसी गई थी.
पाकिस्तान में बहुत सारे आतंकी गुट फल-फूल रहे
साउथ एशिया टैररिज्म पोर्टल की मानें तो पाकिस्तान में घरेलू और फॉरेन दोनों तरह के आतंकी समूह हैं.
इन्हें तीन श्रेणियों में बांटा गया है. एक है- एक्टिव टैररिस्ट यानी जो सक्रिय तौर पर काम कर रहे हैं. ऐसे कुल 44 संगठन हैं, जो देसी-विदेशी दोनों तरह के हैं, लेकिन जिनका ठिकाना पाकिस्तान में है. इसके अलावा एक्सट्रीमिस्ट ग्रुप 60 से ज्यादा हैं. ये अलग विचारधारा की बात करते हैं, लेकिन असल काम इनका भी मार-पिटाई ही है. इनसर्जेंट ग्रुप की भी एक श्रेणी हैं, जो फिलहाल एक्टिव नहीं कही जा रही है. साथ ही बलूचिस्तान में भी कई गुट हैं, जो लगातार आतंक मचा रहे हैं.
क्या फायदा है आतंकी गुटों की लिस्टिंग का
- इससे देश अपने लोगों को आगाह करते हैं कि फलां समूहों से किसी भी तरह का संपर्क न रखें.
- टैरर फाइनेंसिंग पर लगाम लगाई जाती है. जैसे वे सारे रास्ते बंद किए जाते हैं, जिनसे पैसे आतंकियों तक पहुंचें.
- आतंकी गुटों से जुड़े संदिग्ध समूहों को किसी भी तरह का स्टेट डोनेशन बंद कर दिया जाता है. मसलन कई आतंकी गुट धर्म के नाम पर दान लेते हैं. इसे बंद किया जाता है.
- जिस देश में टैरर गुट फल-फूल रहा हो, उसे सचेत किया जाता है, और अगर देश ने सख्ती न दिखाई, तो उससे व्यापारिक या डिप्लोमेटिक रिश्ते कमजोर हो जाते हैं.