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3 दशक बाद एक बार फिर रूस पर गहरा रहा टूटने का खतरा, कौन से हिस्से हैं, जो खुद को आजाद मुल्क बनाना चाहते हैं?

एक वक्त पर हर बात में अमेरिका से आगे रहता सोवियत संघ रातोरात टूटकर कई टुकड़ों में बंट गया. तब भी हालात कुछ ऐसे ही थे. देश में राजनैतिक भूचाल आया हुआ था. अलगाववादी ताकतों ने लोहा गरम पाते ही वार किया और अपना-अपना हिस्सा अलग कर दिया. यूक्रेन से लड़ाई के बीच फिर ये अंदेशा जताया जा रहा है कि अबकी बार रूस का बंटवारा न हो जाए.

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रूस में सेपरेटिस्ट सक्रिय हो चुके हैं सांकेतिक फोटो (Pixabay)
रूस में सेपरेटिस्ट सक्रिय हो चुके हैं सांकेतिक फोटो (Pixabay)

इतने समय से यूक्रेन खुद को सिर्फ बचाने का काम कर रहा था. अब जाकर वो रूस पर हमलावर हुआ. हालांकि यूक्रेन के बड़े हिस्से पर अभी भी रूस का कब्जा है. इस बीच ये अनुमान भी लगाया जा रहा है कि लड़ाई ज्यादा खिंचने पर रूस एक बार फिर कई टुकड़ों में टूट सकता है. असल में 90 के दशक में सोवियत संघ टूटकर 15 देशों में बदल गया था, जिनमें एक रूस भी था. लेकिन अब रूस के भीतर भी कई अलगाववादी संगठन एक्टिव हैं, जो मौके की ताक में हैं. 

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यूक्रेन हो रहा काउंटर ऑफेंसिव

रूस-यूक्रेन लड़ाई फिलहाल थमने के आसार नहीं दिख रहे. कमजोर माने जाते यूक्रेन ने जमकर मुकाबला किया. साथ ही उसे कई देशों से काफी मदद भी मिली. इससे हुआ ये कि जिस युद्ध के फटाफट खत्म होने के अनुमान थे, वो सवा साल से चल रहा है. अब दोनों देशों के बीच एक नई चीज ये हुई कि यूक्रेन भी रूस पर जवाबी हमला करने लगा है. यहां तक कि मॉस्को के राष्ट्रपति आवास पर भी ड्रोन हमला कथित तौर पर यूक्रेन ने करवाया. 

रूस में बदल रही तस्वीर

टक्कर की इस लड़ाई का असर रूस पर भी होने लगा. वहां महंगाई बढ़ रही है. यहां तक कि राष्ट्रपति पुतिन के खिलाफ भी सुगबुगाहट होने लगी है. इस बीच ये भी कयास लग रहे हैं कि देश को कमजोर पाकर सेपरेटिस्ट संगठन दोबारा सिर न उठा लें. रशियन फेडरेशन या रूस में नस्ल, धर्म और आर्थिक आधार पर अलग-अलग टुकड़े खुद को अलग देश बनाए जाने की मांग करते रहे.

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रूस भौगोलिक और सामाजिक तरीके से विविधता वाला देश है. सांकेतिक फोटो (unsplash)

अलग स्ट्रक्चर है रूस का

रूस एक अलग तरह का देश है, जहां आबादी और क्षेत्रफल का बंटवारा आम देशों से अलग है. यहां राज्य तो हैं ही, गणराज्य भी हैं, यानी वे हिस्से, जो काफी हद तक अपने फैसले खुद ले पाते हैं. इनके अलावा यहां ऑक्रग्स हैं, यानी वो इलाके, जहां कुछ खास तरह की धार्मिक आबादी रहती है. ये सब इलाके अपनी खासियत के आधार पर खुद को दूसरों से अलग मानते हैं. अब इन्हीं में से कई इलाके खुद को अलग राष्ट्र बनाने की मांग करने लगे.  

ये इलाके करते रहे आजादी की मांग

रूस के दक्षिण में चेचन्या सबसे पुराना हिस्सा है, जो अपने को अलग मानता रहा. रूस और चेचन्या के बीच चूहे-बिल्ली की लड़ाई करीब 2 सौ सालों से चलती रही. रूस इसपर कब्जा करता है और ये किसी तरह से खुद को अलग कर लेता है. नब्बे के दशक में सोवियत संघ के टूटने के दौरान एक बार फिर चेचन्या के अलगाव की बात उठी. वहां के लोगों ने अलग होने की घोषणा भी कर दी. इसके बाद दमन का लंबा दौर चला. आखिरकार रूस ने चेचन्या पर अपनी पकड़ ढीली की, लेकिन हिस्सा वो अब भी उसी का है. 

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अब अगर रूस कहीं भी चूक करता है तो चेचन्या शायद टूटकर आजाद होने वाला पहला देश होगा. 

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जंग से आई अस्थिरता के बीच रूसी लोग भागकर दूसरे देशों में जा रहे हैं. सांकेतिक फोटो (unsplash)

पूर्व के भी कई राज्य आजादी की मांग करते आए

इनमें सखालिन द्वीप, सखालिन रिपब्लिक से लेकर प्रीमॉर्स्की और खबरोवस्क शामिल हैं. इन सबको मिलाकर रूस का अच्छा-खासा बड़ा और आबादी वाला भाग बनता है. मैनपावर के अलावा ये जगह खनिजों के लिहाज से भी अहम है. साल 2000 में ही सखालिन द्वीप पर रूस के साथ-साथ जापान ने भी विकास का काम किया. इस दौरान ये पता लगा कि यहां पर वर्ल्ड क्लास प्राकृतिक तेल का भंडार है.

मॉस्को के चलते हाशिए पर रहने का आरोप

सखालिन रिपब्लिक, जिसे याकुटिया भी कहते हैं, वहां से पूरे रूस के लिए डायमंड माइनिंग होती है. साल 2020 से इन सारे हिस्सों के लोग अलग होने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं. कोरोना के दौरान हुई मौतें इसकी बड़ी वजह रहीं. इस आबादी को लगता है कि रूस का सारा ध्यान मॉस्को और सेंट पीटर्सबर्ग पर रहता है, बाकी इलाके नजरअंदाज हो जाते हैं. 

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सोवियत नेता मिखाइल गोर्बाचेव. सांकेतिक फोटो (unsplash)

तातार लोग भी करते आए मांग

मॉस्को से लगभग 8 सौ किलोमीटर दूर तातारस्तान वैसे तो रूस का ही हिस्सा रहा, लेकिन USSR के टूटने के बाद इसके लोगों में भी आजाद होने के इच्छा जाग गई. तेल और खेती की वजह से ये हिस्सा  बेहद समृद्ध है. यहां पर अभी ही कई बिलियन बैरल तेल रिजर्व में है. यही सब देखकर अलगाववादी संगठन मानने लगे कि फिलहाल तो मॉस्को के नाम के नीचे वे छिप जाते हैं, लेकिन अलग हुए तो उनकी अपनी पहचान होगी.  

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सोवियत संघ भी तनाव के दौर में बंटा था

इससे पहले 25 दिसंबर 1991 को भी सोवियत संघ टूटा था. तब सोवियत संघ के अंतिम नेता मिखाइल गोर्बाचेव का दौर था. ये वक्त भी आज के हालात से कुछ-कुछ मिलता-जुलता था. फिलहाल रूस और यूक्रेन का सीधा युद्ध चल रहा है, लेकिन तब संघ की जंग सीधे अमेरिका और पूंजीवादी सोच वाले यूरोप से थी. शीत युद्ध की वजह से रूस अलग-थलग पड़ चुका था और वहां के लोग गरीबी में जी रहे थे.

मुश्किल के इसी दौर ने अलगाववादी आंदोलनों को हवा दी और रातोंरात दुनिया की सबसे बड़ी ताकत 15 देशों में टूट गई. रूस इसी में से एक था. आजाद हो चुके देशों में रूस को ही सबसे ताकतवर और सत्ता का केंद्र माना जाता है. अब इसमें भी दरार दिखने लगी है. 

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