मणिपुर में हिंसा मई की शुरुआत से भड़की, जब हाई कोर्ट ने पहाड़ों पर बसे मैतेई समुदाय को एसटी का दर्जा दिया. दूसरा वर्ग कुकी इसके खिलाफ था. विरोध बढ़ते-बढ़ते हिंसक हो गया. पहाड़ी इलाकों में रहने वाले कुकी समुदाय की आबादी मैतेई से कुछ कम है. ऐसे में आपत्ति की पहली वजह ये थी कि उन्हें डर लगा कि एसटी की श्रेणी में आने के बाद मैतेई उनके यहां जमीनें खरीद सकेंगे, और नौकरियों में भी बंटवारा हो जाएगा.
क्या कहते रहे मैतेई
उनकी दलील है कि मणिपुर के भारत में मिलने से पहले वे जनजाति ही थे. बाद में उनसे ये दर्जा छीन लिया गया. इसके बाद से वे अपने ही राज्य में किनारे होते चले गए. यहां तक उनकी आबादी भी घटने लगी. मैतेई आबादी जो पहले कुल जनसंख्या का 59% थी, साल 2011 के सेंसस में घटकर 44% रह गई. इसी समय से वे वापस खुद को एसटी का दर्जा दिलाने की मांग करने लगे.
नशा है तनाव की बड़ी वजह
ये तो हुए ऑफिशियल कारण, जिसपर दोनों में ठनी हुई है. लेकिन बड़ी वजह नशीले पदार्थ हैं. ये राज्य अफीम का स्वर्ग कहलाता है. यहां बड़े पैमाने पर इसकी खेती होती है, जिसका कब्जा कुकी समुदाय के पास है. लगभग 7 साल पहले सरकार ने इसे रोकने की कार्रवाई शुरू की, जिसके बाद से कुकी नाराज चल रहे थे. ड्रग्स की तस्करी पर असर पड़ने से उनके रुतबा भी घट रहा था. कोढ़ में खाज की तरह मैतेई समुदाय के पक्ष में कोर्ट का आदेश आ गया. इसके बाद बढ़ा तनाव अब खूनी हो चुका है.
अफीम की खेती रुकने या बंटने का डर
कुकी को लगता है कि अगर मैतेई भी पहाड़ों पर जमीनें खरीदने लगे तो अफीम की खेती का भी बंटवारा हो जाएगा, या फिर इस कारोबार का ही सफाया हो जाएगा. इसपर अब तक कुकी समुदाय के चरमपंथी लोगों का कब्जा रहा. वे अफीम उपजाकर म्यांमार भेजते, जहां से होते हुए ये पूरी दुनिया में फैला करता था. माना जा रहा है कि नशे पर सरकारी सख्ती के साथ मैतेई को एसटी के दर्जे ने दोहरा वार किया.
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सीमा से हो रही घुसपैठ और स्मगलिंग
नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो पहले भी मणिपुर को लेकर चेताता रहा. इसकी सीमा म्यांमार से सटी हुई है, जो गोल्डन ट्राएंगल का हिस्सा है. गोल्डन ट्रायंगल म्यांमार, थाईलैंड और लाओस के बीच स्थित है, जिसे साउथ एशिया में ड्रग्स सप्लाई का सबसे बड़ा स्त्रोत माना जाता है. अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने भौगोलिक आधार पर इसे गोल्डन ट्राएंगल नाम दिया. ये देश मणिपुर के अफीम की अच्छी क्वालिटी के चलते वहां खेती को बढ़ावा देने के लिए सारे गलत-सही तरीके अपनाते हैं.
म्यांमार-मणिपुर सीमा है फसाद की जड़
वे स्थानीय लोगों को ट्रैप करते और उन्हें ज्यादा पैसों का लालच देते हैं. इसके बाद खेती और तस्करी का खेल शुरू होता है. ये सबकुछ दशकों से काफी व्यवस्थित ढंग से चला आ रहा था. लंदन स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स की रिपोर्ट- सिक्योरिटी चैलेंजेस अलॉन्ग द इंडिया-म्यांमार बॉर्डर के अनुसार भारत और म्यांमार के बीच कई किलोमीटर तक खुली सीमा भी परेशानी लाती है.
ऐसे काम करता है FMR
म्यांमार-मणिपुर बॉर्डर पर एक अलग ही अरेंजमेंट है, जिसे फ्री मूवमेंट रेजिम (FMR) कहते हैं. FMR ये छूट देता है कि सीमा के आरपार 16 किलोमीटर के दायरे में रहने वाले लोग यहां से वहां बिना किसी वीजा या चेकिंग के आ-जा सकते हैं. FMR के तहत ये भी इजाजत है कि आदिवासी अपने साथ हल्का-फुल्का कोई सामान भी ला- ले जा सकते हैं. इन्हीं रियायतों का गलत इस्तेमाल करते हुए लोग ड्रग तस्करी में जुड़ने लगे.
इसी रूट से होती रही तस्करी
यहीं से होते हुए म्यांमार के तस्कर भारत आते या ड्रग्स की सप्लाई करवाते हैं. सटा होने की वजह से म्यांमार और मणिपुर में रोटी-बेटी जैसा रिश्ता भी रहा. इसी वजह से स्थानीय लोग कई संवेदनशील जानकारियां भी साझा कर देते हैं, जो तस्करों के काम आ जाती है. यहां तक कि दूसरे देश से तस्कर अपने लोगों को यहां बसा भी रहे हैं.
अफीम की खेती में जो लोग इन्वॉल्व हैं, उनमें कुकी-चिन-जो एथनिक समूह के लोग ज्यादा हैं. ये वही लोग हैं, जो म्यांमार से आकर अवैध तौर पर यहां बसने लगे. ये वर्ग अफीम की पैदावार के लिए चुरचांदपुर, चंदले जिलों में जंगलों को काटकर खेती की जमीन तक तैयार करता रहा है. बीते सालों में लगभग एक हजार अवैध घुसपैठियों को पकड़ा गया, जो म्यांमार से यहां अफीम उपजाने के लिए आ बसे थे.
पहले भी हुआ था गोल्डन ट्राएंगल का जिक्र
थोड़ा पीछे जाएं तो याद आता है कि सुशांत सिंह राजपूत मामले में भी एनसीबी ने गोल्डन ट्राएंगल की बात की थी. उसने कहा था कि मणिपुर ही नहीं, अरुणाचल, मिजोरम और नागालैंड की सीमाएं भी काफी संवेदनशील हैं. यहीं से अफीम बाहर जाती, और बाकी ड्रग्स अंदर आते हुए देश के बड़े शहरों तक पहुंचते हैं. यहां तक कि असम का गुवाहाटी भी तस्करों की चपेट में आया माना जा रहा है.
म्यांमार से हेरोइन और एंफिटेमाइन-टाइप-स्टिमुलेंट्स (ATS) भामो, लेशिओ और मंडाली के रास्ते होते हुए मणिपुर ही नहीं, मिजोरम और नागालैंड भी पहुंचते रहे. हार्वर्ड की साल 2011 की रिपोर्ट दावा करती है कि मणिपुर ड्रग तस्करों का फेवरेट रहा क्योंकि वहां की सीमा पर जांच उतनी सख्त नहीं रही.