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क्या होता है अगर मृत्युदंड पाया अपराधी पहली बार बच जाए, क्या दोबारा सजा मुमकिन है?

अमेरिका में नाइट्रोजन गैस के जरिए एक अपराधी को मौत की सजा दी जाएगी. पहले भी उसे मृत्युदंड देने की कोशिश हुई थी, जो नाकामयाब रही. अब दोबारा सजा को अमानवीय के साथ असंवैधानिक भी कहा जा रहा है. क्या होता है अगर एक मृत्युदंड के दौरान पहली बार में अपराधी की मौत न हो सके? क्या इसके बाद उसे सजा से राहत मिल जाती है?

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अमेरिका में घातक इंजेक्शन के जरिए मृत्युदंड दिया जाता है (Photo- Unsplash)
अमेरिका में घातक इंजेक्शन के जरिए मृत्युदंड दिया जाता है (Photo- Unsplash)

अमेरिकी शख्स कैनेथ स्मिथ को करीब 4 दशक पहले हुई एक हत्या का दोषी पाया गया. इसके लिए उसे मृत्युदंड मिला. अब इसी महीने के आखिर में स्मिथ को अलबामा में नाइट्रोजन हाइपोक्सिया के जरिए मौत दी जाएगी. साल 2022 में भी उसे जहरीला इंजेक्शन देकर मौत देने की कोशिश हुई थी, जो असफल रही. 

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सजा के दौरान यातना के आरोप

स्मिथ पर इंट्रावेनस यानी नसों के जरिए केमिकल डालने का प्रयास हुआ. हाथ से लेकर गले की नसों तक में आईवी फेल हो गया. कई घंटों की कोशिश के बाद भी एक्सपर्ट उसकी नसों तक नहीं पहुंच सके. इसके बाद कुछ समय के लिए सजा टाल दी गई थी. ये सब कुछ डेथ चैंबर के भीतर हुआ, जिसमें मेडिकल और पुलिस अधिकारियों के अलावा कोई नहीं था. इसके बाद से ही मानवाधिकार आयोग इसपर बात करने लगा.अब यूनाइटेड नेशन्स के एक्सपर्ट स्मिथ की सजा का विरोध कर रहे हैं. 

इसके दो कारण हैं

- पहली वजह ये है कि एक्सपर्ट नाइट्रोजन से मौत को बेहद क्रूर मान रहे हैं. उनका कहना है कि इससे अपने आखिरी समय में भी शख्स काफी तकलीफ में रहेगा.

- विरोध का दूसरा कारण ये है कि स्मिथ को पहले ही मौत की सजा देने की एक कोशिश हो चुकी है. इससे बचने के बाद दोबारा सजा देने का जिक्र संविधान में नहीं. 

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what if a criminal survives death penalty photo Unsplash

घातक इंजेक्शन से दी जाती रही मौत

अमेरिका में दशकों से घातक इंजेक्शनों के जरिए मौत की सजा दी जाती रही. इसमें सोडियम थियोपेंटल सबसे कॉमन केमिकल रहा. इसकी बहुत कम मात्रा भी कुछ ही सेकंड्स के भीतर ब्रेन से लेकर मुख्य अंगों तक पहुंच जाती है और मौत हो जाती है. ज्यादातर अमेरिकी राज्य इसका 5 ग्राम एक बार में इस्तेमाल करते हैं. कई राज्यों में छोटी-छोटी मात्रा में कई डोज दिए जाते हैं. इसके बाद बार्बिट्यूरेट्स का उपयोग किया जाने लगा.

अमेरिका के अलावा बहुत देशों में दयामृत्यु के लिए इसी केमिकल का इंजेक्शन मिलता है. लेकिन दयामृत्यु में जहां छोटी डोज दी जाती है, वहीं मृत्युदंड के दौरान मेगा-डोज दिया जाता है ताकि सजा असफल न हो. 

क्यों बताया जा रहा असंवैधानिक?

अमेरिकी संविधान में मौत की सजा का प्रावधान तो है लेकिन एक व्यक्ति को एक ही बार ये सजा दी जा सकती है. अगर पहली बार में सजा देने की कोशिश नाकामयाब रहे तो उसे दूसरी बार मृत्युदंड नहीं दिया जा सकता. 

पहले भी हो चुकी कोशिश फेल

स्मिथ के अलावा एक और शख्स एलन मिलर के साथ भी ऐसा हो चुका है. ये केस भी अलबामा राज्य का है. तीन हत्याओं के दोषी मिलर को 22 सालों की कैद के बाद मौत की सजा मिली. बीते साल सितंबर में उसे डेथ चैंबर ले जाकर आईवी देने की कोशिश असफल रही. लगभग 90 मिनट तक उसकी नसों तक पहुंचने की कोशिश की गई, जिसमें कैदी बुरी तरह से घायल हो गया. उसकी भी डेथ पेनल्टी आगे बढ़ा दी गई.

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what if a criminal survives death penalty photo Pixabay

क्या कहता है कानून?

अब इसी बात का विरोध हो रहा है. मानवाधिकार एक्सपर्ट्स का तर्क है कि एक बार सजा के बाद किसी को उसी क्राइम के लिए दोबारा सजा नहीं दी जा सकती. इसे डॉक्ट्रिन ऑप डबल जेपर्डी कहते हैं. 

भारत में क्या होता है?

भारत को देखें तो यहां मौत की सजा देते हुए साफ किया जाता है कि मरते तक फांसी पर लटकाया जाएगा. पहले कहा जाता था- टू बी हैंग्ड बाय नेक. अगर रस्सी टूट जाए या किसी भी तरह से फांसी की सजा फेल हो जाए तो उसे दोबारा दंडित नहीं किया जा सकता. बाद में इसे ज्यादा ध्यान से लिखा गया- टू बी हैंग्ड बाय नेक, टिल डेथ. यानी मौत तक फांसी पर लटकाए रखना है. 

यही कारण है कि फांसी देने के लिए एक्सपर्ट जल्लाद ही काम करते हैं. वे रस्सी तैयार करते हैं. यहां तक कि हर सजा से पहले कैदी का वजन लिया जाता है और उतने ही वजन के पुतले को फांसी पर चढ़ाने की प्रैक्टिस की जाती है ताकि सजा दी जा सके. फिलहाल फांसी के बहुत से मामले पेंडिंग पड़े हैं क्योंकि सजा देने के लिए पर्याप्त जल्लाद नहीं हैं. 

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