इकनॉमिक तौर पर बुरी तरह पस्त पाकिस्तान में कुछ समय में चुनाव हो सकते हैं. इमरान खान को पद से हटाए जाने के बाद पीएम का पद खाली था और देश को चलाए रखने के लिए अस्थाई सरकार की जरूरत थी. ऐसे में अनवर उल हक कार्यवाहक पीएम बनाए गए. अब उनपर जिम्मा है कि वे ट्रांसपरेंट चुनाव कराएं. लेकिन सवाल ये है कि इस बीच अगर पाकिस्तान को कोई बड़ा फैसला लेने की जरूरत पड़ जाए तो क्या होगा. क्या कार्यवाहक पीएम के पास इतनी ताकत होती है कि वो अहम फैसले ले सके?
ये लोकतांत्रिक देशों का एक इंतजाम है, जो 3 स्थितियों में अपनाया जाता है
1. जब चुनी हुई सरकार किसी वजह से गिर जाए, तब केयरटेकर सरकार बनाई जाती है. असल में आनन-फानन तो चुनाव हो नहीं सकते. ये एक लंबी प्रोसेस है ताकि देश और पार्टियों को तैयारी का मौका मिले. इसी प्रोसेसिंग टाइम के दौरान एक अस्थाई सरकार बनाई जाती है, जो देश को चलाए रखे. इसमें जो पीएम होता है, उसे अंतरिम या कार्यवाहक या केयरटेकर प्रधानमंत्री कहते हैं.
2. दूसरी स्थिति वो है, जिसमें आम चुनाव के बाद तुरंत सरकार नहीं बनती, तब तक पुरानी सरकार ही केयरटेकर की तरह काम करती है. ये हालात तब आते हैं, जब किसी राजनैतिक पार्टी को क्लियर मेंडेट न मिला हो.
3. एक और स्थिति है, जिसमें इन्कंबेन्ट सरकार के खिलाफ संसद में अविश्वास प्रस्ताव लाया जाए और वो पूरे वोट न जुटा पाए. तब भी सरकार गिर जाती है. यही डिजॉल्व हुई सरकार कुछ समय के लिए केयरटेकर रहती है.
क्या कर सकती है ये सरकार और क्या नहीं?
अक्सर ये सवाल उठता है कि केयरटेकर सरकार और पीएम के पास कितना पावर होता है. क्या वे देश की पॉलिसी में बदलाव ला सकते हैं? इसका जवाब है- नहीं. ये एक तरह की कामचलाऊ सरकार है, जिसे सिर्फ चुनावों तक देश को चलाए रखना है. वो मौजूदा कानूनों में बदलाव नहीं कर सकती. कोई बड़ा फैसला नहीं ले सकती. आयात-निर्यात या फॉरेन पॉलिसी से किसी भी तरह की छेड़छाड़ नहीं कर सकती. वो बड़े पदों पर नियुक्ति भी नहीं कर सकती.
पाकिस्तान में ज्यादा पावर मिली हुई
कार्यवाहक सरकार के मामले में कमोबेश सारे देशों में यही स्थित है, लेकिन पाकिस्तान का केस अलग है. उसने केयरटेकर सरकार को ज्यादा से ज्यादा ताकत दे रखी है. साल 2017 के इलेक्शन एक्ट के मुताबिक, पाकिस्तान में इस टेंपररी सरकार का काम केवल इलेक्शन कमीशन की मदद करना था ताकि चुनाव सही ढंग से हो सके. इसमें साफ निर्देश था कि ये गर्वनमेंट रुटीन फैसले ही लेगी, उससे अलग नहीं जाएगी.
जुलाई को पाकिस्तान सरकार ने इलेक्शन एक्ट 2017 में एक संशोधन किया. इसमें उसने कार्यवाहर सरकार को ये अधिकार दे दिया कि वो आर्थिक फैसले भी ले सके. सामान्य स्थितियों में भी केयरटेकिंग सरकार को इससे दूर रखा जाता है, जबकि पाकिस्तान आर्थिक मोर्चे पर पहले से ही बदहाल है. ऐसे में ये सवाल भी उठ रहा है कि कहीं ये फैसला देश को और गरीब न बना दे.