सोमवार को पश्चिमी सिडनी के उपनगर वेकले में लाइव स्ट्रीम के दौरान हुए हमले में असीरियन क्राइस्ट द गुड शेफर्ड चर्च के पादरी समेत चार लोग गंभीर रूप से घायल हो गए. घटना के तुरंत बाद भीड़ और पुलिस में झड़प भी हुई. भीड़ का आरोप था कि पुलिस ऐसे हमलों को रोक नहीं पा रही. दूसरी तरफ सिडनी पुलिस ने सीधे कहा कि ये मामूली रंजिश में हुआ अटैक नहीं, बल्कि टैरर अटैक था. हमलावर से शुरुआती पूछताछ के बाद पुलिस ने ये बयान दिया.
किसे कहते हैं आतंकवाद
किसी खास राजनीतिक या धार्मिक मकसद के लिए सरकारों को डराना-धमकाना या हिंसा करना आतंकवाद के दायरे में आता है. सरकार की किसी पॉलिसी का विरोध करने के लिए हिंसा का रास्ता अपनाना भी आतंकवाद है. कई बार ये देखा गया है कि पॉलिटिकल विरोध के नाम पर गुट बनते हैं, जो आगे चलकर हिंसक हो जाते हैं. वे सशस्त्र ट्रेनिंग करने और इस नाम पर सरकार को डराने लगते हैं. तब ऐसा पूरा संगठन की आतंकी संगठन कहलाने लगता है.
क्या है आतंकी हमला
टैररिस्ट अटैक या इसकी धमकी में ये भाव होता है कि जनता और सरकारें डरकर कोई न कोई बात मान लें. ये आमतौर पर कोई पॉलिटिकल, धार्मिक या वैचारिक डिमांड होती है. इसी मांग को लेकर हमला किया, या हमले की धमकी दी जाती है. किसी खास पॉलिसी के आधार पर तख्तापलट की धमकी या ऐसी तैयारी भी इसकी के तहत आती है.
इन तरीकों से होते हैं आतंकी हमले
कई बार वैचारिक या धार्मिक विरोध रहता है लेकिन ये विरोध आतंकवाद की श्रेणी में तब तक नहीं आता, जब तक कि इससे पब्लिक के जान-मान को नुकसान न हो. सरकारी प्रॉपर्टी का नुकसान भी इसी श्रेणी में आता है, जैसे अगर किसी इमारत, पुल, सड़क या ट्रांसपोर्ट को नुकसान पहुंचाया जाए. संचार के माध्यम या बिजली को नुकसान पहुंचाना भी टैरर अटैक में आ सकता है. इससे न केवल रुटीन पर असर होता है, बल्कि कामकाज ठप हो जाता है. जैविक, रासायनिक हमला और साइबर अटैक भी इस कैटेगरी का है, भले ही इससे बड़ा नुकसान हो, या न हो.
टैररिस्ट अटैक कब साबित होता है
- जब कोई संगठन इसकी जिम्मेदारी ले लेता है.
- जब पहले से ही इस तरह की धमकियां कहीं से आ रही हों.
- जब पूछताछ में मिले सुराग इस तरफ इशारा करें.
- जब घटनास्थल पर ऐसे सुराग मिल जाएं.
- जब घटनास्थल के आसपास आतंकी गुटों की भनक सरकार के पास हो.
लो-कॉस्ट अटैक का पता लगाना मुश्किल
ऑस्ट्रेलियाई खुफिया एजेंसी ने नेशनल टैररिज्म थ्रेट लेवल बनाया है. इसमें अलग स्तर होते हैं जो तय करते हैं कि आतंकी अपने इरादों में पूरी तरह कामयाब हो चुके, आधा-अधूरा काम हुआ, या मिशन पूरी तरह फेल हो गया. चर्च में हुई चाकूबाजी को पॉसिबल अटैक की श्रेणी में रखा गया. ये वो हमला है, जो सीधे कोई बड़ा आतंकी समूह नहीं करता, बल्कि उससे प्रभावित कोई व्यक्ति या छोटा समूह करता है. हालांकि इस तरह के हमलों के साथ अक्सर ये होता है कि इसकी कोई वॉर्निंग या सुराग खुफिया एजेंसियों के पास नहीं होता.
कई बार आतंकी संगठन सीधे हमला करने की बजाए अस्थिरता पैदा करने से शुरुआत करते हैं. वे युवाओं को टारगेट करते हैं. उन्हें बहलाकर हथियारों की ट्रेनिंग देते और अपने मकसद के लिए इस्तेमाल करते हैं. अगर कोई संगठन आसपास के लोगों को सरकार में अस्थिरता लाने के लिए इस्तेमाल करने लगे तो भी इसे टैररिस्ट गुट कहते हैं. उसके जरिए होने वाला छोटा हमला भी टैरर अटैक कहलाता है, चाहे वो चाकूबाजी हो, या गाड़ी लेकर सड़क चलते लोगों पर चढ़ा देना.
हमारे यहां क्या कानून?
भारत में आतंकवाद को लेकर सरकार काफी सतर्क रही. इसकी वजह भी है. हमारे यहां सीमापार से आतंकी काफी सक्रिय रहे. कई बड़ी आतंकी घटनाएं भी हो चुकीं. इसे रोकने के लिए भारत सरकार भी आतंकवाद को लेकर आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1987 लाया गया था. ये टैरर के साथ ऑर्गेनाइज्ड क्राइम से भी निपटता था, जैसे नशा और मानव तस्करी. इसके बाद कई और कानून आए.
केंद्रीय स्तर पर भी एजेंसी
फिलहाल आतंकवाद विरोधी दस्ता भी है, जो कई ऐसे राज्यों में एक्टिव है, जो या तो सीमा से सटे हैं, या जहां पर संदिग्ध गतिविधियां होती रहीं. साथ ही आतंकवाद से जुड़ी घटनाओं की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) करती है. ये सेंट्रल बॉडी है जिस काम करने के लिए राज्यों से अलग से इजाजत लेने या दूसरे कई प्रोटोकॉल फॉलो करने की जरूरत नहीं. मुंबई आतंकी हमले के बाद इसका गठन हुआ था.