scorecardresearch
 

मौत को आसान बना रहे 'डेथ कोच', कैसे काम करते हैं, कितनी होती है कमाई? जानिए सबकुछ

मौत का जिक्र भी अपने-आप में परेशान करने वाला है, वहीं एक प्रोफेशन ऐसा है, जो लोगों को इसके लिए तैयार करता है. ये डेथ कोच हैं, जिन्हें डाईंग गाइड या डेथ डूला भी कहा जाता है. कई ऐसे कोर्स हैं, जो प्रोफेशनल डेथ कोच तैयार करते हैं. जितना सुनाई दे रहा है, ये काम उससे कहीं ज्यादा मुश्किल है इसलिए इसमें कमाई भी काफी ज्यादा है.

Advertisement
X
डेथ कोच एक प्रोफेशन बन चुका है. (Photo- Getty Images)
डेथ कोच एक प्रोफेशन बन चुका है. (Photo- Getty Images)

कैंसर या किसी जानलेवा बीमारी की आखिरी स्टेज में पहुंचा शख्स बात-बात पर या तो घबराता है, या नाराज रहने लगता है. वो कई बातों को लेकर डरा हुआ हो सकता है. शारीरिक दर्द भी असहनीय होता है. ऐसे में मेडिकल प्रोफेशनल चाहकर भी एक हद के बाद मदद नहीं कर पाते, तब रोल आता है डेथ कोच का. ये वो लोग हैं, जो किसी को मौत के लिए तैयार करते हैं. 

Advertisement

क्या हैं डेथ कोच

ये मरते हुए आदमी को मानसिक और भावनात्मक तौर पर गुडबाय के लिए तैयार करते हैं. एक तरह से, इनका काम जिंदगी से मौत के बीच के पुल को पार करने का हौसला देना है. कोच का एक काम मौत के बाद अंतिम संस्कार की तैयारी करना भी है. ये सब इसपर तय करता है कि फैमिली ने डेथ कोच को किस काम के लिए हायर किया. ये फैमिली को भी काउंसिलिंग देते हैं. कई बार बहुत सारा पेपरवर्क भी इन्हें दे दिया जाता है ताकि फैमिली सिर्फ और सिर्फ दुख मनाने पर फोकस कर सके. इससे डिप्रेशन का खतरा कम होता है. 

कहां है इनका कंसेप्ट

डेथ गाइड दुनिया के कई देशों में पाए जाते हैं. ब्राजील, कनाडा, चेक रिपब्लिक, जर्मनी, आयरलैंड, जापान, न्यूजीलैंड, रूस, यूके और यूएस में इनकी खूब जरूरत पड़ रही है. इनमें से ज्यादातर देश ऐसे हैं, जहां छोटे परिवार हैं, और देखभाल या मरते हुए तसल्ली देने के लिए भी कोई नहीं. 

Advertisement

death doula or death coach who supports the dying person and family photo Unsplash

भारत में भी डेथ गाइड का जिक्र आ रहा है

केरल में कुछ डॉक्टरों ने मिलकर इसकी शुरुआत की. माना जा रहा है कि अब 3 से ज्यादा ग्रुप स्वैच्छिक तौर पर काम कर रहे हैं. चूंकि ये प्रोफेशनल नहीं, और न ही हमारे यहां इस तरह के कंसेप्ट को पसंद किया जाता है इसलिए ये ग्रुप्स अलग तरह से काम करते हैं. वे ऐसे लोगों की पहचान करते हैं जो जीवन के आखिरी दौर में हों. इसमें बुजुर्ग नहीं, बल्कि गंभीर बीमारी से जूझ रहे लोग होते हैं. इसके बाद वे उन तक दर्द कम करने वाली दवाएं पहुंचाते हैं, या फिर आध्यात्मिक गुरु के प्रवचन की लिंक देते हैं. 

और क्या-क्या करते हैं ये कोच

- एक्टिव डेथ यानी जब मौत के ठीक पहले काउंसलिंग देते हैं. मौत के तुरंत बाद भी इनकी जरूरत पड़ सकती है. 

- जूम कॉल से लेकर घर पहुंचकर भी कंसल्टेशन दिया जाता है. ये पूरी तरह प्रोफेशनल होता है. 

- अगर किसी परिवार वाले युवा की मौत हो रही हो, जहां छोटे बच्चे भी हों तो आर्थिक मदद का तरीका बताते हैं. 

- मरीज की देखभाल करने वाले को भी सपोर्ट करते हैं. घर के कामों में हाथ बंटाते हैं, या उसका दुख सुनते हैं.

- मरने के दौरान क्रिएटिव काम भी हो सकते हैं, अगर मरीज की उसमें दिलचस्पी हो, जैसे ड्रॉइंग या म्यूजिक. कोच मरीज और आर्टिस्ट के बीच ब्रिज बनते हैं.

Advertisement

कहां मिल सकते हैं डेथ गाइड
 

कई देशों में सरकारी हेल्थकेयर सिस्टम ये प्रोवाइड करता है. जैसे ब्रिटेन में NHS से संपर्क करने पर वे ऐसे प्रोफेशनल को भेजते या वीडियो कॉल पर बात कराते हैं. वैसे ज्यादातर देशों में ऑनलाइन ही इन्हें खोजा जा सकता है. बाकी सर्विसेज की तरह ये सुविधा भी मिलती है. 

death doula or death coach who supports the dying person and family photo Getty Images

कितनी होती है कमाई

ये काम काफी मुश्किल और भावनात्मक तौर पर परेशान करने वाला है. यही कारण है कि डेथ कोच को अच्छी-खासी रकम मिलती है. जैसे अमेरिका की बात करें तो ये लोग 50 लाख सालाना से ज्यादा कमाते हैं, जबकि वहां की औसत एनुअल तनख्वाह इससे कम है. बहुत से देशों में कोच अपनी पेमेंट जितनी बताते हैं, मौत अगर सुकून में हो तो परिवार उन्हें इससे ज्यादा पेमेंट करता है. कई जगहों पर एडवांस पेमेंट ही ले ली जाती है.

कैसे बन सकते हैं डेथ गाइड

चूंकि मरते हुए व्यक्ति को शांत रख पाना, और उसके घरवालों को तसल्ली देना काफी चैलेंजिंग काम है, लिहाजा इसके लिए कोर्स और ट्रेनिंग भी मिलती है. ये छोटे से लेकर बड़ा कोर्स कराते हैं. हर कोर्स में एक निश्चित काम को अंजाम देना सिखाया जाता है. 

वाराणसी का मौत के लिए तैयार करता भवन

Advertisement

भारत में डेथ कोच का सीधा कंसेप्ट तो नहीं, लेकिन इससे मिलती-जुलती कई चीजें हैं. मसलन, वाराणसी में एक इमारत है, जहां अंतिम समय का इंतजार करते हुए लोग पहुंचते हैं. काशी मुक्ति भवन में बहुत नॉमिनल कीमत पर कमरा दिया जाता है. यहां सारा माहौल ऐसा होता है जो किसी को सुकून वाली मौत के लिए तैयार कर सके. 

यहां रहने की भी शर्तें हैं

बहुत बीमार और शारीरिक तकलीफ से जूझ रहे लोगों को आमतौर पर यहां नहीं रखा जाता, बल्कि वे ही रहते हैं, जो उम्र की वजह से खाना-पीना छोड़ चुके. एक निश्चित समय के भीतर अगर शख्स की मौत न हो, तो उसे कमरा खाली करना होता है. बता दें कि काशी मुक्ति भवन में अक्सर वेटिंग चलती रहती है.

Live TV

Advertisement
Advertisement