इसी मार्च में खालिस्तान समर्थकों ने लंदन में भारतीय उच्चायोग की इमारत पर हमला किया. वे अपना झंडा लेकर आए थे, और तिरंगे को रिप्लेस करने की कोशिश में थे. हालांकि हाई कमीशन की फुर्ती से ये अपमान रोक लिया गया, लेकिन मांग होने लगी कि फ्लैग प्रोटोकॉल तोड़ने पर प्रदर्शनकारियों को सजा मिलनी चाहिए.
क्या होता है अगर विदेश में ऐसी घटना हो तो
अपने देश में फ्लैग प्रोटोकॉल टूटने पर सजा तय होती है, लेकिन विदेशों में मामला अलग हो जाता है. जैसे कनाडा का ही मामला लें तो वहां भारत या किसी भी देश के जितने प्रतीक और जितनी प्रॉपर्टी है, उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी उस देश के जिम्मे है. अपमान होने पर वहां की सरकार से स्पष्टीकरण मांगा जाता है कि सुरक्षा में चूक कैसे हुई. ये सीधे-सीधे विएना संधि का उल्लंघन है.
डिप्लोमेटिक इम्युनिटी मिलती है
आमतौर पर अपने घर या अपनी प्रॉपर्टी की सुरक्षा की जिम्मेदारी हमें खुद लेनी होती है, लेकिन उच्चायोग के मामले में ऐसा नहीं है. विएना कन्वेंशन ऑन डिप्लोमेटिक रिलेशन्स के तहत कई ऐसे नियम हैं, जिसमें डिप्लोमेटिक प्रॉपर्टी की जिम्मेदारी वो देश लेता है, जहां ये प्रॉपर्टी हो. जैसे भारत में भी अमेरिकी उच्चायोग या कनाडियन कमीशन की सेफ्टी भारत सरकार के जिम्मे है.
क्या कर सकती है सरकार?
अगर कोई नुकसान होता है तो सवाल-जवाब के बाद संबंधित देश की सरकार ऐसे लोगों को सजा दे सकती है, जिनकी वजह से नुकसान हुआ. लेकिन ये पूरी तरह से उस देश पर निर्भर है. इसके लिए सरकार सीधे तौर पर दूसरे देश को बाध्य नहीं कर सकती है, लेकिन अगर अपमान जारी रहे और अगला देश सुरक्षा न दे सके, तो कई बार सरकारें कड़ा रुख भी अपनाती हैं. जैसे मार्च में लंदन में हुई घटना के बाद ये बात भी होने लगी थी कि भारत भी अपने यहां की ब्रिटिश एंबेसी से सुरक्षा ढीली कर दे. हालांकि ये सिर्फ चर्चा थी.
वहीं अगर ऐसा मामला भारत में हो, यानी हमारे यहां ही तिरंगे का अपमान हो तो संबंधित व्यक्ति पर नेशनल फ्लैग कोड के तहत कार्रवाई होती है. इसमें उसे 3 साल की कैद हो सकती है. नेशनल फ्लैग कोड में कई नियम हैं, जिनका पालन करते हुए कोई भी अपने घर या दफ्तर में तिरंगा फहरा सकता है.
तिरंगा फहराने के लिए लड़ी कानूनी लड़ाई
पहले ऐसा नहीं था. सरकारी कार्यालयों और बड़े सरकारी अधिकारियों की गाड़ी पर ही तिरंगा लग सकता था. बिजनेसमैन नवीन जिंदल ने इस नियम के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ी. उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर कर दी. मामला सुप्रीम कोर्ट तक चला गया. आखिरकार साल 2004 में अदालत ने माना कि हर भारतीय तिरंगा फहरा सकता है, अगर वो प्रोटोकॉल का पालन करता है तो.
अमेरिका में झंडे पर गुस्सा उतारना फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन में शामिल
भारत समेत लगभग सारे ही मुल्क अपने झंडे को लेकर काफी संवेदनशील हैं. दूसरी तरफ सुपर पावर अमेरिका में अगर नागरिक फ्लैग जला भी दें तो कोई बवाल नहीं होता. वहां का संविधान इसे अभिव्यक्ति की आजादी मानता है. अगर कोई शख्स सरकार की किसी बात पर गुस्सा जताने के लिए प्रदर्शन करते हुए अमेरिकी फ्लैग जला दे तो ये गैरकानूनी नहीं है, लेकिन इसमें भी अलग-अलग अमेरिकी स्टेट अलग रवैया रखते हैं.
अगर जलाए जा रहे झंडे के आसपास कोई संवेदनशील जगह है, या इससे किसी को खतरा हो सकता हो, तो सजा मिलती है. एक और बात- फ्लैग आपका खुद का खरीदा हुआ हो तो ही आप इसे जलाने का हक रखते हैं. किसी सरकारी दफ्तर, या घर से निकालकर झंडा नहीं जलाया जा सकता. साल 2006 में फ्लैग कोड को ज्यादा सख्त बनाने की बात हुई थी, लेकिन संसद में इसके पक्ष में वोट कम पड़ गए. मतलब सीधी बात है कि फिलहाल यूएस झंडे पर उतना कड़ा रवैया नहीं रखना चाहता.
- यूनाइटेड किंगडम में क्राउन को लेकर तो बहुत से नियम हैं, लेकिन फ्लैग कोड उतना सख्त नहीं.
- ग्रीस में आर्टिकल 188 के तहत फ्लैग के अपमान पर दो साल की कैद और जुर्माना हो सकता है.
- जर्मनी इस मामले में सबसे ज्यादा सख्त है. किसी भी तरीके से झंडे के अपमान पर यहां 5 साल की जेल हो सकती है.
- स्पेन में 7 से 12 महीनों की जेल या जुर्माने का प्रावधान है.