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क्या है TAPI पाइपलाइन प्रोजेक्ट, जिस पर इंडिया-PAK मिलकर काम करेंगे, जो तालिबान के इलाके से गुजरेगी

अफगानिस्तान और पाकिस्तान के रास्ते तुर्कमेनिस्तान से भारत पहुंचने वाले गैस पाइपलाइन प्रोजेक्ट पर काम थोड़ा और आगे बढ़ गया है. इस गैस प्रोजेक्ट का नाम है- TAPI यानी तुर्कमेनिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान-इंडिया. क्या है ये प्रोजेक्ट? इससे फायदा क्या होगा?

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तापी प्रोजेक्ट पर चार देश मिलकर काम कर रहे हैं. (फाइल फोटो)
तापी प्रोजेक्ट पर चार देश मिलकर काम कर रहे हैं. (फाइल फोटो)

पिछले कुछ साल से भारत और पाकिस्तान के रिश्ते भले ही तल्ख हों और बातचीत की संभावना दूर-दूर तक नहीं दिख रही हो लेकिन TAPI गैस पाइपलाइन प्रोजेक्ट पर काम आगे बढ़ गया है. चार देशों को शामिल कर शुरू होने वाला ये प्रोजेक्ट रिश्तों में जमी बर्फ को पिघलाने की दिशा में अहम साबित हो सकती है.

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तापी यानी तुर्कमेनिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान-इंडिया. चारों देश मिलकर इस प्रोजेक्ट पर सालों से काम कर रहे हैं.

अरबों डॉलर के इस प्रोजेक्ट पर गुरुवार को एक अहम समझौता हुआ. ये समझौता पाकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के बीच हुआ. समझौते पर पाकिस्तान की तरफ से पेट्रोलियम राज्य मंत्री मुसदिक मलिक और तुर्कमेनिस्तान की तरफ से राज्य मंत्री तुर्कमेनगैस के अध्यक्ष मस्कट बाबायेव ने दस्तखत किए.

इस मौके पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने कहा कि पूरे क्षेत्र के लिए ये अहम प्रोजेक्ट है. उन्होंने कहा कि इस प्रोजेक्ट से पूरे क्षेत्र में सहयोग और समृद्धि का एक नया युग आने की उम्मीद है.

तापी प्रोजेक्ट के 2019 में पूरा होने की उम्मीद थी, लेकिन अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता आने और भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव के चलते इसका काम अटक गया था. 

क्या है तापी प्रोजेक्ट?

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- तापी या TAPI यानी तुर्कमेनिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान-इंडिया. पहले इसको ट्रांस-अफगानिस्तान पाइपलाइन प्रोजेक्ट के नाम से जाना जाता था. लेकिन बाद में पाकिस्तान और भारत के शामिल होने के बाद इसका नाम तापी (TAPI) हो गया. 

- इस पाइपलाइन प्रोजेक्ट के लिए चारों देशों ने मिलकर एक कंपनी भी बनाई है. इस कंपनी का नाम Galkynysh-TAPI पाइपलाइन कंपनी लिमिटेड है. इस प्रोजेक्ट में एशियन डेवलपमेंट बैंक भी पार्टनर है.

- इस प्रोजेक्ट के तहत, तुर्कमेनिस्तान के Galkynysh गैस फील्ड से गैस की सप्लाई होगी. ये दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी गैस फील्ड है. 

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कहां-कहां से गुजरेगी ये पाइपलाइन?

- ये गैस पाइपलाइन अफगानिस्तान और पाकिस्तान से होते हुए तुर्कमेनिस्तान से भारत पहुंचेगी. तुर्कमेनिस्तान की Galkynysh गैस फील्ड से गैस की सप्लाई होगी. ये पूरी पाइपलाइन 1,814 किलोमीटर लंबी होगी.

- तुर्कमेनिस्तान से अफगानिस्तान तक इस पाइपलाइन की लंबाई करीब 214 किलोमीटर होगी. इसके बाद ये पाइपलाइन अफगानिस्तान के हेरात और कंधार प्रांत से गुजरेगी. अफगानिस्तान में इस पाइपलाइन की लंबाई करीब 774 किमी होगी.

- अफगानिस्तान से होते हुए पाइपलाइन पाकिस्तान के क्वेटा और मुल्तान से गुजरेगी. आखिरी में ये पाइपाइलाइन भारत के पंजाब के फजिल्का शहर तक पहुंचेगी. पाकिस्तान से भारत तक इस पाइपलाइन की लंबाई 826 किमी होगी.

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खर्च कितना आएगा?

- इस पाइपलाइन प्रोजेक्ट की अनुमानित लागत 10 अरब डॉलर है. इस प्रोजेक्ट के पूरे होने के बाद गैस के लिए चीन और रूस पर डिपेंडेंसी कम होगी.

- इस प्रोजेक्ट के लिए नवंबर 2014 में तापी पाइपलाइन कंपनी बनाई गई थी. इस कंपनी में 85% हिस्सेदारी तुर्कमेनिस्तान की सरकारी कंपनी तुर्कमेनगैस की है. 

- इसके अलावा इस कंपनी में 5-5% की हिस्सेदारी अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत की है. अफगान गैस (अफगानिस्तान), इंटरस्टेट गैस सर्विस (पाकिस्तान) और गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया एंड इंडियन ऑयल (भारत) इसमें हिस्सेदार है.

किसको कितनी गैस मिलेगी?

- एशियन डेवलपमेंट बैंक के मुताबिक, इस गैस के खरीदार अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत होंगे. इन्हें ये गैस तुर्कमेनगैस से मिलेगी.

- पाइपलाइन के जरिए हर साल 33 अरब क्यूबिक मीटर गैस की सप्लाई होगी. इसमें से 5 अरब क्यूबिक मीटर गैस अफगानिस्तान को मिलेगी. जबकि, पाकिस्तान और भारत को 14-14 अरब क्यूबिक मीटर गैस की सप्लाई होगी.

प्रोजेक्ट से फायदा क्या होगा?

- इस पाइपलाइन गैस प्रोजेक्ट का सबसे बड़ा फायदा ये होगा कि अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत की गैस के लिए चीन और रूस पर निर्भरता कम होगी.

- अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत के 1.5 अरब से ज्यादा लोगों को इससे फायदा होने की उम्मीद है. इस प्रोजेक्ट से रोजगार पैदा होने की भी उम्मीद है.

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- गैस बेचने से तुर्कमेनिस्तान का रेवेन्यू तो बढ़ेगा ही, साथ ही साथ अफगानिस्तान और पाकिस्तान को हर साल ट्रांजिट फीस भी मिलेगी. 

- भारत सरकार के मुताबिक, फजिल्का शहर में इस पाइपलाइन के आने से इलाके में इंडस्ट्रियल और कमर्शियल एक्टिविटी बढ़ने की उम्मीद है. 

क्या है इसका इतिहास?

- 90 के दशक में इस प्रोजेक्ट पर चर्चा शुरू हुई थी. तुर्कमेनिस्तान ने अपने गैस भंडार से अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत को गैस सप्लाई करने का प्रस्ताव रखा.

- हालांकि, चारों देशों के बीच समझौता होने में 20 साल का समय लग गया. 2010 में जाकर इंटर-गवर्नमेंटल एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर हुए. मई 2012 में जाकर बायलेटर सेल एग्रीमेंट पर दस्तखत हुए.

- 2013 में चारों देशों की सरकारी गैस कंपनी को तापी पाइपलाइन कंपनी का हिस्सेदार बनाया गया. दिसंबर 2015 में तुर्कमेनिस्तान में इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू हुआ. 2019 में ये प्रोजेक्ट पूरा होना था, लेकिन भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव और अफगानिस्तान में तालिबान के आने के कारण अटक गया. 

 

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