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साझी जरूरत में करीब आए थे यूरोप-अमेरिका, अब ट्रंप की नाराजगी के बीच क्या बेसहारा हो जाएंगे यूरोपियन मुल्क?

यूरोप और अमेरिका के संबंधों में दिन-ब-दिन खटास बढ़ रही है. डोनाल्ड ट्रंप आक्रामक बयान दे रहे हैं, जिससे यूरोपियन यूनियन (ईयू) को चिंता सताने लगी कि कहीं ये जोड़ कमजोर होते-होते टूट तो नहीं जाएगा. माना जा रहा है कि ईयू के लिए ये रूस से भिड़ंत से भी ज्यादा विनाशकारी साबित हो सकती है क्योंकि वो काफी हद तक अमेरिका पर निर्भर हो चुका है.

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यूरोप और अमेरिका के संबंध बदलाव की ओर हैं. (Photo- Getty Images)
यूरोप और अमेरिका के संबंध बदलाव की ओर हैं. (Photo- Getty Images)

डोनाल्ड ट्रंप वाइट हाउस क्या पहुंचे, दुनिया की बंधी-बंधाई रिदम गड़बड़ाने लगी. खासकर यूरोप की. यूक्रेन मुद्दे पर अमेरिकी राष्ट्रपति रूस के साथ दिख रहे हैं. बीच-बीच में वे सीधे यूरोप को भी लताड़ रहे हैं. कुल मिलाकर, यूरोपियन यूनियन की स्थिति घर के काबिल लेकिन कमजोर सदस्य जैसी हो चुकी है, जिसे एकदम से आत्मनिर्भर बनने को कह दिया जाए. लेकिन इस आत्मनिर्भरता से पहले कौन-कौन सी मुश्किलें आ सकती हैं?

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ट्रांसअटलांटिक गठबंधन यानी अमेरिका और यूरोप के रिश्तों को हम जैसा देखते आए हैं, वो हमेशा से वैसे नहीं थे. इसका जो अवतार आज हमारे सामने है, वो दूसरे विश्व युद्ध की देन है. अब डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिका संभालते ही कयास लग रहे हैं कि संबंध दोबारा सत्तर-अस्सी साल पीछे न चला जाए. अमेरिकी प्रशासन साफ कर चुका कि अब वो यूरोप की हां में हां नहीं मिलाएगा, न ही हरदम उसे प्रोटेक्ट करेगा. इस पर पूरे महाद्वीप में खलबली मची हुई है. 

क्या कह रहे हैं एक्सपर्ट

यूरोपियन यूनियन के इंस्टीट्यूट फॉर सिक्योरिटी स्टडीज ने एक स्टडी की, जिसका सबजेक्ट था- वॉट कुड यूएस एबेंडनमेंट ऑफ यूरोप लुक लाइक यानी अमेरिका अगर यूरोप को छोड़ दे तो क्या होगा. इसके लिए चार सौ से ज्यादा यूरोपियन एक्सपर्ट्स से बात की गई. माना जा रहा है कि इससे एक पूरे का पूरा नया चैप्टर शुरू हो जाएगा, जिसमें पुराने दुश्मन दोस्त बन सकते हैं. या फिर दोस्ती दुश्मनी में बदल सकती है. 

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मॉस्को से भिड़ंत से ज्यादा खतरनाक है यूएस से दूरी

स्टडी की एक बात चौंकाने वाली है, जिसके मुताबिक यूएस अगर यूरोप से दूरी बना ले तो इसके नतीजे यूरोपियन देशों के लिए रूस से सीधी लड़ाई से भी ज्यादा खतरनाक हो सकते हैं. यह उसके पैरों के नीचे से जमीन धसकने जैसी स्थिति है, जिसमें उसके पास न सुरक्षा के लिए NATO रहेगा, न ही अमेरिका जैसे दोस्त का साथ. इससे अर्थव्यवस्था से लेकर दुनिया में उसके डिप्लोमेटिक रिश्ते भी प्रभावित होंगे.

what will happen if america donald trump abandon europe photo Pexels

ट्रंप नाराज हैं कि यूरोपियन यूनियन अपनी सेफ्टी से लेकर ज्यादातर मामलों के लिए यूएस पर निर्भर हो चुका है, जिससे अमेरिकी करदाताओं पर एक्स्ट्रा भार बढ़ चुका. वे धमका ही नहीं रहे, जैसे तेवर हैं, वे भविष्य में कई साझा प्रोजेक्ट्स से हाथ खींच सकते हैं. लेकिन इसके बाद यूरोप का क्या होगा. 

उसकी स्थिति को थोड़ा घरेलू होते हुए समझते हैं. अभी यूरोप अमीर माता-पिता की उस संतान की तरह है, जिसके साथ अमीरी का टैग चल रहा है. वो जहां भी जाता है, पूछ-परख रहती है. लेकिन पेरेंट्स अगर उसे जायदाद और अपने नाम से भी बेदखल कर दें तो उसका क्या होगा! कुछ यही हाल यूरोप का हो सकता है. 

साझी जरूरतों के चलते आए थे पास

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यूरोप और यूएस की दोस्ती उतनी भी कुदरती नहीं, जितनी आज दिखती है. इसकी नींव दूसरे वर्ल्ड वॉर के बाद पड़ी, जब यूरोप खंडहर बन चुका था और रूस लगातार आगे बढ़ रहा है. तभी अमेरिका और यूरोपियन  मुल्कों ने मिलकर नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन (NATO) की नींव रखी. ये सिर्फ एक सैन्य गठबंधन नहीं था, बल्कि वेस्ट की शेयर्ड वैल्यूज को दिखाता था. इसके बाद रूस कमजोर पड़ने लगा.

यूरोप को रूस से बचाव के लिए अमेरिका की जरूरत थी, और अमेरिका को सुपर पावर बनने के लिए रूस को कमजोर करना था. जरूरतें शेयर्ड थीं. तो दोनों के बीच रिश्ते भी मजबूत दिखने लगे. हालांकि वॉशिंगटन चूंकि इकनॉमिक तौर पर ज्यादा मजबूत था, लिहाजा वो आर्थिक मदद करता रहा और यूरोप उसपर निर्भर होता चला गया. 

what will happen if america donald trump abandon europe photo Getty Images

किन-किन मामलों में यूरोप है अमेरिका के सहारे

- सैन्य सुरक्षा के लिए नाटो उसका सबसे बड़ा आसरा है. अगर यूरोप के किसी देश पर हमला हो तो अनुच्छेद 5 के तहत अमेरिका को उसकी सेफ्टी देखनी होगी. यूक्रेन युद्ध के बाद यूरोप वैसे ही डरा हुआ है, तिसपर ट्रंप प्रशासन नाटो से दूरी की बात कह चुका. अब यूरोप को डिफेंस की नए सिरे से तैयारी करनी होगी. 

- रूस से गैस आयात कम करने के बाद यूरोप को अमेरिका से लिक्विफाइड नेचुरल गैस की सप्लाई पर बहुत हद तक निर्भर रहना पड़ा. यूएस किसी भी वजह से सप्लाई घटा दे तो यूरोप में एनर्जी क्राइसिस आ सकता है. 

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- ग्लोबल बाजार में यूएस करेंसी डॉलर की भूमिका सबसे ज्यादा है. यूरोपियन करेंसी भी मजबूत है, लेकिन डॉलर के मुकाबले कुछ कमतर ही है. ऐसे में वॉशिंगटन अपने व्यापारिक नियम सख्त करे या ब्याज बढ़ाए तो इसका असर यूनियन की इकनॉमी पर दिखेगा. 

आपदा तो है लेकिन यूरोप इसे अवसर में भी बदल सकता है अगर वो सुरक्षा से लेकर अर्थव्यवस्था का अलग ढांचा खड़ा करना चाहे. हालांकि ये भी आसान नहीं होगा. युद्ध के दौर में जब रूस और अमेरिका करीब आते दिख रहे हैं, यूरोप को भी नया साथी तलाश करना होगा. ये चीन भी हो सकता है. हाल में म्यूनिख कॉन्फ्रेंस के दौरान बीजिंग ने ऐसे संकेत भी दिए, लेकिन बीजिंग खुद विस्तारवादी नीतियों वाला रहा, ऐसे में ईयू को देखना होगा कि वो कितना सावधान रह सकता है.

भारत इस तस्वीर में नहीं आता. वो अमेरिका और रूस दोनों से मिलता-जुलता है, साथ ही यूरोप के लिए भी उसकी नीति संतुलन वाली है. ऐसे में कम से कम नई दिल्ली तो यूरोप के लिए अमेरिका की जगह नहीं ले सकती. 

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