हाल में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने बड़ा बयान दिया. उन्होंने कहा कि जब तक हमास बंधकों को छोड़ नहीं देता, शांति नहीं आएगी. बाइडेन ये बात इजरायल के मित्र और रक्षक के नाते कर रहे हैं. अमेरिका ने इजरायल के बनने में बड़ा रोल निभाया था. वैसे कोई साथ दे, या न दे, इजरायल के इरादे साफ हैं. वो हमास को मटियामेट करने की पूरी कोशिश करेगा. ये एक लंबी प्रोसेस है, जिसके बाद इजरायल के सामने कई रास्ते खुल जाएंगे.
दी जा रही अमेरिका की मिसाल
अमेरिका ने 9/11 में खत्म हुए अपने लोगों का बदला लेने और ISIS को खत्म करने के लिए जमीन-आसमान एक कर दिया. उसने अफगानिस्तान पर हमला किया और लगभग 2 दशक तक उसके सैनिक वहां रहे. इस दौरान सैकड़ों अमेरिकियों की जान गई और अमेरिका के कितने पैसे खर्च हुए, इसका कोई हिसाब-किताब नहीं है. यहां तक कि लोग कहने लगे थे कि दूसरे के घर की आग बुझाने के लिए अमेरिकी सरकार अपना घर जलाने पर तुली है.
देश में फैल गया था असंतोष
गुस्सा इतना बढ़ा कि पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को वादा करना पड़ा कि वे अफगानिस्तान से आर्मी को वापस बुला लेंगे. बाद में ये वादा पूरा भी किया गया. ये सारी कथा-कहानी इसलिए कि इजरायल ने भी हमास को खत्म करने का बीड़ा उठाया है. हमास की तुलना ISIS से हो रही है. यानी इजरायल के लिए उसे जड़ से मिटाना आसान नहीं है.
गाजा में आबादी आएगी आड़े
वो अगर पूरी ताकत लगाएगा, तो हो सकता है कि गाजा पट्टी में हमास कमजोर हो जाए. मगर, ये लड़ाई लंबी रहेगी. गाजा में काफी घनी बस्ती है. यहां आतंकी आम लोगों के बीच ही बसे हुए हैं. ऐसे में हमला करना मुश्किल है. आतंकी आम नागरिकों को ह्यूमन शील्ड बना सकते हैं, जैसा कि अभी भी दिख रहा है.
सुरंगें भी बन सकती हैं रुकावट
ये भी हो सकता है कि जमीनी लड़ाई में आतंकियों का पलड़ा भारी पड़ जाए क्योंकि वो इस जगह को भी जानते हैं और लोगों को भी. गाजा में सुरंगों के होने की बात भी कही जा रही है. टैररिस्ट खुद को बचाकर इजरायली आर्मी पर हमलावार हो सकते हैं. यानी बाजी पलट भी सकती है. इजरायल ये झेल भी चुका है.
साल 2009 में जमीनी हमले के दौरान उसे काफी नुकसान झेलना पड़ा था क्योंकि इस दौरान कथिततौर पर आतंकी आम लोगों के बीच घुल-मिल गए थे. यहां तक कि वे रिहायशी इलाकों में घुस गए थे. इससे चाहकर भी इजरायली फोर्स उस तरह से हमलावर नहीं हो सकी.
क्यों हमास को खत्म करना आसान नहीं
ISIS की तरह इसके मिलिटेंट भी कई देशों में बिखरे हुए हैं. अगर इन्हें गाजा पट्टी से हटा भी दिया जाए, तो ये पड़ोसी मुल्कों जैसे लेबनान, ईरान, जॉर्डन और कतर जैसे देशों में फलते-फूलते रहेंगे. वहां की सरकारें या फिर चरमपंथी लोग इन्हें पैसों से मदद करते रहेंगे.
क्या अपने सैनिकों को वहीं छोड़ सकता है इजरायल?
एक ऑप्शन यह है कि गाजा पट्टी से इजरायल लंबे समय तक अपने सैनिक न हटाए. ये रास्ता भी पहले आजमाया हुआ भी है. इससे गाजा में तो शांति आ जाएगी, लेकिन इजरायल पर काफी आर्थिक बोझ पड़ सकता है. साथ ही उसके सैनिक भी परेशान होंगे. इसका सीधा असर इजरायल की स्थिरता पर होगा. अफगानिस्तान में यूएस आर्मी का उदाहरण दुनिया के सामने है.
तीसरा रास्ता भी है
हो सकता है कि हमास को कमजोर करने के बाद इजरायली सेना लौट आए. मगर, इससे पहले एक सिस्टम बना दे. मसलन, वेस्ट बैंक में सारा एडमिनिस्ट्रेशन तो फिलिस्तीन के पास है, लेकिन अंतिम फैसला इजरायल ही लेता है. ये भी आजमाया हुआ मॉडल है, जो काफी हद तक कारगर है.
यही तरीका चीन भी अपने कंट्रोल वाले इलाकों में अपनाता रहा है. इससे उस इलाके में हो रहे बदलाव या हलचल की जानकारी तुरंत इजरायल को मिल जाएगी और हमास या कोई भी टैररिस्ट गुट पनप नहीं सकेगा. हालांकि, इस कदम का भी गाजा पट्टी के लोग काफी विरोध कर सकते हैं.
क्या अरब देशों की मदद लेनी होगी?
चौथा और आखिरी विकल्प भी है, लेकिन ये पड़ोसी अरब देशों की मर्जी पर निर्भर है. फिलहाल अरब फिलिस्तीनियों के पक्ष में तो बोल रहा है. मगर, कोई भी गाजा के लोगों को शरण देने को तैयार नहीं. वे किसी न किसी बहाने से इससे बच रहे हैं.
इससे साफ है कि कोई भी मुल्क फिलिस्तीनियों को लेकर अपने यहां अस्थिरता नहीं चाहता. इजरायल अगर चाहे, तो इन देशों से मदद लेकर कोई ऐसा सिस्टम तैयार कर सकता है, जिसमें गाजा पर चारों तरफ से निगरानी भी रहे और वो खुद को आजाद भी महसूस करता रहे.
डिफेंस मिनिस्टर ने दिया संकेत
इजरायली रक्षा मंत्री योव गैलेंट ने हाल में इजरायली सेना के हमले को चरणों में बांट दिया. उन्होंने कहा कि युद्ध के 3 स्टेप होंगे. पहले चरण में हमास के ठिकानों को खत्म किया जाएगा. दूसरे कदम का मकसद उसे गाजा से पूरी तरह से मिटाना होगा. तीसरे स्टेप के तहत फौज गाजा को छोड़ देगी, लेकिन इससे पहले एक ऐसा सिस्टम बनाएंगे, जिससे गाजा आतंकियों के हाथ में न पड़े. यानी कुल मिलाकर सरकारी इशारा भी गाजा छोड़ने की तरफ है.