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कभी खुद को सबसे खुशहाल देश मानता था भूटान, अब क्यों वहां के लोग जोखिम उठाकर जा रहे अमेरिका?

डोनाल्ड ट्रंप सरकार ने घुसपैठ रोकने की कड़ी में 40 से ज्यादा देशों की लिस्ट बनाई है, जहां के नागरिकों पर हल्के से सख्त स्तर का ट्रैवल बैन हो सकता है. भूटान इसमें रेड लिस्ट में है, यानी उसके लोगों को अमेरिका में बेहद मुश्किल से एंट्री मिलेगी. अफगानिस्तान और सीरिया जैसे मुल्कों की सूची में भूटान का आना चौंकाता है, जबकि उसे खुशहाल देशों में गिना जाता रहा.

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राष्ट्रपति ट्रंप ने भूटानी नागरिकों के अमेरिका में प्रवेश पर कड़ी पाबंदी लगा दी. (Photo- Pexels)
राष्ट्रपति ट्रंप ने भूटानी नागरिकों के अमेरिका में प्रवेश पर कड़ी पाबंदी लगा दी. (Photo- Pexels)

वाइट हाउस में सत्ता बदलने के बाद से कई ऐसी चीजें हो रही हैं, जो चौंकाने वाली हैं. मसलन, नए ट्रैवल बैन प्रस्ताव में भूटान का भी रेड लिस्ट में शामिल होना. दरअसल अवैध इमिग्रेशन रोकने के अपने वादे को पूरा करने ट्रंप एक नया कदम उठा सकते हैं. इसके तहत 43 देशों की तीन अलग-अलग सूचियां बनाई गईं, जिसमें कम से ज्यादा सख्ती होगी. कम सख्ती वाले देशों के नागरिकों की अमेरिका यात्रा अपेक्षाकृत आसान होगी, वहीं रेड लिस्ट के लोगों के लिए ड्रीम अमेरिका सबसे ज्यादा मुश्किल हो सकता है.

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प्रस्तावित रेड सूची में जिन 11 देशों को शामिल किया गया, उनमें अफगानिस्तान, सोमालिया, सीरिया, उत्तर कोरिया, लीबिया, यमन और सूडान जैसे देशों के अलावा भूटान भी है. इन सारे ही देशों में लंबे समय से सिविल वॉर और अस्थिरता है, जबकि भूटान हैप्पीनेस इंडेक्स में काफी ऊपर रहा.

तब क्यों ट्रंप प्रशासन इस देश पर सख्त हुआ?

भूटान के पास ग्रॉस नेशनल हैप्पीनेस मॉडल है. साल 2008 से चल रहे इस मॉडल में लगभग डेढ़ सौ सवालों के आधार पर तय किया जाता है कि देश के नागरिक कितने खुश या नाखुश हैं. द गार्जियन की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2022 में वहां हुए सर्वे में लोगों ने हर एक नंबर पर 0.781 स्कोर दिया. ये बताता है कि वहां के लोग अपनी सरकार और देश में बहुत खुश हैं. लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू भी है, जो इससे एकदम अलग है. 

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why bhutan is facing immigration crisis amid donald trump to ban bhutanese people photo Pexels

लगातार हो रहा पलायन

इस छोटे से देश को भले ही अपनी खुशहाल छवि के लिए जाना जाता है, लेकिन हकीकत यह है कि देश भारी पलायन के दौर से गुजर रहा है. साल 2023 में पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ने एक घोषणापत्र जारी किया, जिसमें दावा था कि देश के लोग लगातार विदेश जाकर बस रहे हैं. सिर्फ 2022 में भूटान की कुल आबादी का 1.5 प्रतिशत हिस्सा ऑस्ट्रेलिया चला गया. इसमें किसी और देश, खासकर अमेरिका की हम बात ही नहीं कर रहे. 

भूटान का आकार बेल्जियम से थोड़ा बड़ा होगा और आबादी 8 लाख से भी कम है. इतनी कम आबादी में से भी बहुत से लोग विदेश जा चुके, या जाने की कोशिश करते रहते हैं. इसके पीछे कई वजहें हैं. 

राजनैतिक छूट उतनी नहीं

सबसे पहली बात कि भूटान में अब भी राजनैतिक आजादी उस हद तक नहीं, जो किसी लोकतांत्रिक देश में होती है. असल में इस देश में साल 2007 में पहली बार चुनाव हुए, जब तत्कालीन राजा जिग्मे सिंग्ये वांगचुक ने स्वेच्छा से गद्दी छोड़ दी और बेटे को सौंप दी. इसके बाद इलेक्शन तो हुए लेकिन राजनैतिक मुद्दों पर बातचीत या विरोध की उतनी छूट नहीं. यह बात नई पीढ़ी को काफी खटकती है, जबकि सोशल प्लेटफॉर्म पर बाकी देश अपनी राय देते हैं, भूटान के लोगों की राय सीमित या कंट्रोल्ड रहती है. 

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why bhutan is facing immigration crisis amid donald trump to ban bhutanese people photo Pexels

पर्यटन पड़ चुका कमजोर

भूटान की इकनॉमी काफी हद तक टूरिज्म पर निर्भर रही. लेकिन कोविड के दौर में इसमें काफी कमी आ गई. यहां तक कि पर्यटन इस झटके से अभी तक पूरी तरह उबर नहीं पाया है. ऐसे में भूटान के लोग वैकल्पिक काम की कमी से बाहर का रास्ता तलाश रहे हैं. 

वे ऑस्ट्रेलिया से लेकर अमेरिका तक जा रहे हैं. खासकर ऑस्ट्रेलिया उनका पहला डेस्टिनेशन है. यहां वीजा मिलना आसान है और  यहां की नीतियां भी विदेशियों के लिए बेहतर होती हैं. इसके अलावा हाल के सालों में हजारों भूटानी नागरिकों ने गैरकानूनी तरीके से अमेरिका पहुंचने की कोशिश की.

डंकी रूट का ले रहे सहारा

इसके लिए उन्होंने डंकी रूट अपनाया, यानी मध्य और दक्षिण अमेरिका के खतरनाक जंगलों, मानव तस्करी के गिरोहों और हिंसक इलाकों से होते हुए यूएस की सीमा तक पहुंचना. बहुत से लोग टूरिस्ट वीजा लेकर पहुंचे लेकिन समय खत्म होने के बाद भी वापस न लौटकर गायब हो गए. इन्हीं सब बातों की वजह से नई अमेरिकी सरकार नाराज है और वीजा नियम कड़े कर रही है. 

नेपाल से लाकर बसाए हुए लोग सबसे ज्यादा परेशान

एक बड़ा कारण और भी है. ऊपर-ऊपर से शांत और खुशहाल दिखता भूटान लंबे समय से शरणार्थी संकट झेलता रहा. इसकी जड़ें अस्सी के दशक में जाती हैं, जब भूटान सरकार ने अपने यहां रहते नेपाली बोलने समुदाय ल्होत्संपा के खिलाफ कड़े कदम उठाने शुरू किए. ये कम्युनिटी नेपाल से आकर वहां बसी हुई थी.

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why bhutan is facing immigration crisis amid donald trump to ban bhutanese people photo Pexels

सरकार ने वहां वन नेशन, वन पीपल पॉलिसी लागू कर दी. इसके तहत नेपाली मूल के लोग भूटानी नागरिकता से वंचित हो गए. साथ ही उन्हें भूटानी भाषा बोलने और वहां का रहन-सहन अपनाने को कहा गया. जो लोग विरोध करते, उन्हें जेल में डाला जाने लगा. दस सालों के भीतर लगभग एक लाख ल्होत्संपा शरणार्थी नेपाल भाग गए. नेपाली सरकार ने उन्हें शरण तो दी लेकिन नागरिकता वहां भी नहीं मिली. 

लंबे समय तक शरणार्थी कैंपों में रहते इन लोगों को साल 2007 में अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और कुछ यूरोपीय देशों ने अपने यहां बसाने का प्रस्ताव दिया. अमेरिका ने करीब एक लाख भूटानी रिफ्यूजियों को अपनाया. लेकिन इससे संकट कम होने की बजाए बढ़ने लगा. भूटान में रहते और गरीबी झेलते लोगों को लगने लगा कि वेस्ट में जाना एक बढ़िया तरीका हो सकता है. तब बचे-खुचे लोग भी देश से जाने के तरीके खोजने लगे. पिछले कुछ सालों में अवैध ढंग से अमेरिका जाने वाले भूटानी नागरिक इतने बढ़े कि नतीजा ट्रंप के गुस्से के रूप में दिख रहा है. यहां तक कि इस शांतिप्रिय देश को आतंक फैलाने वाले देशों की लिस्ट में डाल दिया गया. 

ल्होत्संपा कौन हैं जो नेपाल और भूटान के बीच झूल रहे 

ल्होत्संपा भूटान के नेपाली मूल के लोगों को कहा जाता है. इसका मतलब दक्षिणी लोग हैं, क्योंकि ये भूटान के इसी हिस्से में बसाए गए. नेपाल से ये लोग खास बुलाकर लाए गए थे ताकि भूटान के मुश्किल भाग में खेतीबाड़ी कर सकें. लेकिन बाद में इसी देश में उन्हें लेकर असंतोष पैदा हो गया और हिंसा होने लगी. फिलहाल यूएस, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा में बसे ज्यादातर भूटानी शरणार्थी ल्होत्संपा ही हैं. 

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