स्पेस में ग्रैविटी नहीं होती, और विकिरणें इतनी खतरनाक होती हैं कि बगैर सुरक्षा के इंसान मिनटभर भी जिंदा न रह सके. फिलहाल धरती के अलावा कोई किसी और ग्रह पर रहने की कल्पना भी नहीं जा सकती, लेकिन एलन मस्क साल 2040 तक मंगल पर कॉलोनी बनाने का टागरेट तय कर चुके, जो पूरी तरह आत्मनिर्भर हो. बकौल मस्क इंसान अब तक जीरो सिविलाइजेशन में अटके हुए हैं.
मंगल को लेकर क्यों इतनी उम्मीद
मस्क एक टाइमलाइन बना चुके, जिसमें छोटे-छोटे टारगेट्स के साथ अगले 15 सालों में मंगल पर पूरी बस्ती बन सकती है. यहां 10 लाख लोग होंगे ताकि एक स्वतंत्र सभ्यता तैयार हो सके.
क्या है टाइमलाइन में
- साल 2029 तक पहली इंसानी लैंडिंग इस ग्रह पर होगी, जो शायद एकाध साल आगे भी खिंच सकती है.
- सालभर के भीतर ही बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार हो जाएगा जैसे बिजली, पानी का उत्पादन.
- साल 2040 तक पूरी सोसायटी होगी, जहां लगभग 10 लाख लोग रह सकें और धरती के बगैर जिनका काम चल सके.
यही ग्रह क्यों चुना गया
ये ग्रह कई मायनों में धरती से मिलता-जुलता है. इसकी धुरी का झुकाव लगभग अर्थ जैसा है, जिससे वहां गर्मी और सर्दी के मौसम आते हैं. वहां बादल, ज्वालामुखी और ध्रुवों पर बर्फ भी मिलेगी. मंगल पर एक दिन हमारे यहां से सिर्फ 40 मिनट लंबा होता है. एक वजह इसका धरती से पास होना भी है.
क्या हो सकती हैं चुनौतियां
मंगल बहुत ठंडा है. इसके पोल्स पर तापमान लगभग 153 डिग्री सेल्सियस तक माइनस में जा सकता है. यहां ऑक्सीजन लगभग नहीं के बराबर है, जिससे प्रोटेक्टिव सूट के बगैर वहां रहना नामुमकिन है. इस ग्रह की मिट्टी में फिलहाल कई टॉक्सिन्स है यानी खेती-किसानी नहीं हो सकती. ग्रैविटी यहां से लगभग 30 फीसदी तक कम हो जाती है, जिसकी वजह से लंबे समय तक वहां रहने हड्डियों और बाकी सेहत पर बुरा असर डाल सकता है.
मस्क इतनी मुश्किलों के बाद भी लगातार इसपर बात कर रहे हैं. उन्हें यकीन है कि कॉलोनी जल्द ही बनेगी. मस्क समेत कई वैज्ञानिक मानते रहे कि फिलहाल हम जीरो सिविलाइजेशन के वक्त में है, जो बहुत खराब है. साइंस की दुनिया में अक्सर सिविलाइजेशन कोलैप्स के डर से मल्टी-प्लानेटरी सर्वाइवल की बात होती रही. यानी धरती पर अचानक खतरा आ जाए तो इंसान दूसरे ग्रहों पर जा सकें, या कई ग्रहों पर रह सकें. फिलहाल हम सिंगल प्लानेटरी हैं और जीरो सिविलाइजेशन में आते हैं.
क्या है टाइप जीरो सभ्यता
साइंस में एक टर्म है- कार्डाशेव स्केल. ये किसी भी सभ्यता की ऊर्जा खपत के आधार पर बताती है कि वो कितनी डेवलप्ड है, या कितनी कमजोर है. इंसान अभी भी सिविलाइजेशन जीरो पर ही अटका हुआ है. इसका मतलब ये कि हम अभी भी बहुत सी कुदरती चीजों का पूरा इस्तेमाल नहीं कर पाते और एनर्जी के लिए तेल-गैस-कोयला पर निर्भर रहते हैं.
सिविलाइजेशन वन में हम न केवल कुदरती मुसीबतों पर कंट्रोल पाना सीख जाएंगे, बल्कि मल्टी-प्लानेटरी भी हो सकते हैं, यानी हम दूसरे ग्रहों पर भी पृथ्वी की तरह मजे में रह सकेंगे. इस पड़ाव में 100 से 200 साल लग सकते हैं.
इसके बाद आता है सिविलाइजेशन टू
ये बेहद बड़ी ताकत है. इसमें इंसान सूर्य की पूरी एनर्जी को कैद करके अपने मुताबिक इस्तेमाल कर सकता है. वो पूरे स्पेस में कॉलोनियां बसा सकेगा. मंगल के अलावा चंद्रमा और गुरु-शुक्र पर भी इंसान रहने लगेंगे. इस स्तर के आने में 1000 या इससे ज्यादा साल लग सकते हैं, या ये भी हो सकता है कि तब तक इंसान खत्म हो चुके हों.
तीसरा फेज भी है, जिसे सिविलाइजेशन जीरो कहते हैं
इसमें इंसान गैलेक्टिक-लेवल की स्पीशीज बन चुका होगा जो पूरी गैलेक्सी में सफर कर सके. लोग ब्लैक होल्स की शक्ति का भी इस्तेमाल कर सकेंगे. ये स्तर हमें लाखों सालों में ही मिल सकता है, या फिर शायद कभी नहीं.
क्या एलियन्स से जंग हो सकती है
यह भी हो सकता है मल्टी प्लानेटरी बनने के दौरान ही हमारी किसी दूसरे ग्रह की ज्यादा विकसित स्पीशीज से भिड़ंत हो और हम खत्म हो जाएं. साइंटिस्ट अक्सर इसपर बात करते रहे. दरअसल यूनिवर्स में 200 अरब से भी ज्यादा गैलेक्सी हैं और हरेक में अरबों ग्रह होंगे. ऐसे में हमारे अकेले होने की संभावना बहुत कम है.
मुमकिन है कि कोई टाइप 1, 2 या 3 सिविलाइजेशन पहले से हो. उनके पास हमसे कहीं बेहतर तकनीक होगी. अगर वे शांतिप्रिय हुए तब तो ठीक है, लेकिन न हुए तो इंसानी सभ्यता पर बड़ा खतरा आ सकता है. हो सकता है कि वे इंसानों को मिटाने का फैसला कर लें, क्योंकि हम उनके लिए खतरा या परजीवी जैसे लग सकते हैं, जैसे हम वायरस को देखते हैं. ये भी हो सकता है कि वे हमें गुलाम बना लें या फिर बेकार भीड़ समझकर ऐसे ही छोड़ दें. एक कयास ये भी लगाया जाता रहा कि वे हमें वॉच कर रहे होंगे.