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गरीब देशों में जंग को हवा देकर विदेशी ताकतों को क्या फायदा होता है, UN ने सूडान पर किसे घेरा?

यूनाइटेड नेशन्स ने हाल में आरोप लगाया कि अफ्रीकी देश सूडान में चल रही लड़ाई में फॉरेन प्लेयर्स आग में घी डाल रहे हैं. पिछले साल अप्रैल में दो सेनाध्यक्षों के बीच शुरू हुई जंग में विदेशी ताकतें भी शामिल हो गईं. इसके बाद से तनाव बढ़ता ही जा रहा है. लेकिन सवाल ये है कि सूडान की आपसी खींचातान से जुड़कर दूसरे देशों को क्या फायदा हो सकता है?

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सूडान में पिछले साल अप्रैल से सिविल वॉर जारी है. (Photo- Reuters)
सूडान में पिछले साल अप्रैल से सिविल वॉर जारी है. (Photo- Reuters)

इन दिनों दुनिया के कई देशों में जंग छिड़ी हुई है. वहीं कई मुल्क ऐसे भी हैं, जहां अंदरुनी फसाद ही सालभर से ज्यादा खिंच चुकी, लेकिन खत्म होने का नाम नहीं ले रही. हाल में यूनाइटेड नेशन्स ने आरोप लगाया कि गृहयुद्ध के लंबा चलने के पीछे बाहरी शक्तियां काम कर रही हैं. वे किसी एक पक्ष को हथियार, सैनिक तक मुहैया करा रही हैं. कथित तौर पर यूनाइटेड अरब अमीरात इसमें मुख्य प्लेयर है. लेकिन लगभग 3 हजार किमोमीटर दूर बसे यूएई को सूडान की लड़ाई से क्या मिलेगा? क्यों छोटे देशों की लड़ाई में अक्सर बड़ी शक्तियां दखल देती रहीं?

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क्या चल रहा है सूडान में

पचास के दशक में आजादी के बाद से ही इस देश में अस्थिरता रही. लोकल समूह वहां सत्ता के लिए लड़ते रहे. पिछले साल अप्रैल में ये लड़ाई बेहद खतरनाक हो गई, जब दो सैन्य गुट के जनरल ही आपस में भिड़ गए. सूडान सेना के कमांडर जनरल अब्देल फतह अल बुरहान और अर्धसैनिक रैपिड सपोर्ट फोर्स के कमांडर जनरल मोहम्मद हमदान दगालो के बीच शुरू जंग सत्ता को लेकर थी. जैसा कि आमतौर पर होता है ये लड़ाई-भिड़ाई एक समय के बाद रुक जाती, जब दोनों के पास हथियार या बाकी रिसोर्सेज कम पड़ने लगते. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. 

अभी कैसे हैं हालात

यूएन शरणार्थी एजेंसी के अनुसार, 7 मिलियन से ज्यादा लोग देश के भीतर ही विस्थापित हो चुके हैं, वहीं लगभग 2 मिलियन पड़ोसी देशों में भाग गए. अनुमान है कि पिछले अप्रैल में युद्ध शुरू होने के बाद से 20 हजार से ज्यादा मौतें हो चुकीं. इसके बाद भी मानवीय मदद दूर, दूसरे देश लड़ाई को कुछ हद तक भड़का ही रहे हैं. यानी आने वाले समय में भी शांति की संभावना कम ही दिखती है.

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why foreign powers provoke civil war in poor nations what is happening in sudan photo Reuters

आग में घी डालने का काम कथित तौर पर इन देशों ने किया

द कन्वर्सेशन की रिपोर्ट के मुताबिक, यूनाइटेड नेशन्स ने यूएई पर आरोप लगाया कि वो मुख्य खिलाड़ी है, जो लड़ाई को उकसा रहा है. कथित तौर पर वो रैपिड फोर्स के सपोर्ट में उन्हें जंग के लिए हथियार, गोलाबारूद, ड्रोन और यहां तक कि मानवीय मदद भी दे रहा है. माना जा रहा है कि जंग में सबसे ज्यादा उसी ने पैसे लगाए. यूएन के अलावा इंटरनेशनल एनजीओ एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भी इसे लेकर यूएई को घेरा. 

यूएई के पास इसकी क्या वजहें हो सकती हैं?

इस देश ने सूडान को ऐसे मौके की तरह देखा जो मिडिल ईस्ट से लेकर ईस्ट अफ्रीका में उसकी जड़ें मजूबत कर सकता है. यही वजह है कि इस देश ने साल 2018 से सूडान में भारी निवेश शुरू कर दिया. यूएई ने वहां रेड सी के साथ बंदरगाहों और खेती में भी जमकर इनवेस्ट किया. बता दें कि यूएई 90 फीसदी से ज्यादा फूड सप्लाई आयात करता है. उसके पास जमीन नहीं. अब उसका फोकस इस बात पर है कि सूडान की जमीनों को वो खेती-बाड़ी के लिए इस्तेमाल करे ताकि आयात कम से कम हो जाए. 

मौका देखते हुए यूएई ने आर्मी और पैरामिलिट्री के साथ भी मेलजोल बढ़ाया. ये उसे सूडान में बने रहने में मदद कर सकता था. यही हुआ. सिविल वॉर शुरू होने पर यूएई ने खुलकर रैपिड सपोर्ट फोर्स का पक्ष लिया. 

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why foreign powers provoke civil war in poor nations what is happening in sudan photo Unsplash

इनपर भी लगता रहा आरोप

इसी साल यूएनएससी ने भी यूएई पर सूडान में लड़ाई भड़काने का आरोप लगाया लेकिन वो इससे इनकार करता रहा. संयुक्त अरब अमीरात के अलावा लीबिया और रूस भी रैपिड फोर्स को अप्रत्यक्ष रूप से मदद देते रहे. रूस की प्राइवेट आर्मी वैगनर ग्रुप सूडान में सक्रिय रही, जिसका मकसद वहां की गोल्ड माइन्स पर कंट्रोल हासिल करना रहा. 

लड़ाई कर रहा दूसरा समूह भी फॉरेन मदद पा रहा है. एमनेस्टी इंटरनेशनल के अनुसार, ईरान सूडानी सेना को ड्रोन और हथियार सप्लाई कर रहा है. 

क्यों चलता आ रहा है अफ्रीकी महाद्वीप में संघर्ष

अफ्रीका में सूडान अकेला नहीं, जिसकी भीतरी लड़ाई में बाहरी लोग घुस आए. अफ्रीकी मामलों के जानकार अक्सर ये संदेह जताते रहे कि महाद्वीप पर दिखता अंदरुनी संघर्ष असल में इंटरनेशनल स्तर की साजिश है ताकि वहां के कच्चे माल और मैनपावर का फायदा पश्चिम ले सके. जर्नल ऑफ मॉडर्न अफ्रीकन स्टडीज की रिसर्च में सिलसिलेवार ढंग से दावा किया गया कि अफ्रीका में चल रही सिर्फ 30% लड़ाई ही आपसी है, जबकि बाकी 70% इंटरनेशनल देन है. पश्चिमी या दूसरे ताकतवर देश अफ्रीका के कुदरती संसाधनों पर कब्जा करने की नीयत से वहां अस्थिरता बनाए रखने में फायदा देखते हैं. 

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