बांग्लादेश फिलहाल अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है. सत्ता से हटाई जा चुकी पूर्व पीएम शेख हसीना सुरक्षा के मद्देनजर देश छोड़कर भारत आ गईं. 5 अगस्त से वे यहीं हैं. लेकिन ये बंदोबस्त अस्थाई है. दरअसल रिफ्यूजी कन्वेंशन पर साइन न करने से भारत के पास कोई औपचारिक रिफ्यूजी पॉलिसी नहीं. लेकिन सवाल ये है कि बिना इसके कैसे हमारे यहां करोड़ों शरणार्थी ठहरे हुए हैं?
क्या देश में शरणार्थी नीति वाकई नहीं?
भारत हमेशा से ही अपने यहां ठौर लेने आने वालों के लिए उदार रहा. यहां रोहिंग्याओं समेत कई दूसरी नेशनेलिटी के लोग रह रहे हैं. हालांकि ये भी सच है कि उदारता के बाद भी हमने कोई औपचारिक रिफ्यूजी पॉलिसी नहीं रखी. असल में हम रिफ्यूजी कंवेंशन और 1967 प्रोटोकॉल का हिस्सा नहीं.
क्या है 1951 रिफ्यूजी कन्वेंशन
पहले और दूसरे विश्व युद्ध के बाद करोड़ों की संख्या में लोगों ने दूसरे देशों में शरण ली. लेकिन तब तक इसके लिए कोई औपचारिक गाइडलाइन नहीं बन सकी थी. साल 1951 में लीग ऑफ नेशन्स (अब यूनाइटेड नेशन्स) ने इसपर पूरा काम किया और शरणार्थी पॉलिसी बनाई. हालांकि शुरुआत में ये केवल यूरोपियन शरणार्थियों तक सीमित थी. बाद में साल 1967 में प्रोटोकॉल बना, जो पूरी दुनिया के शरणार्थियों पर लागू हुआ.
कौन से देश इसमें शामिल नहीं.
यूएनएचसीआर के मुताबिक, अब तक 149 देश इनका हिस्सा बन चुके हैं. वहीं भारत के अलावा कई दक्षिण एशियाई देश, जैसे बांग्लादेश, पाकिस्तान, श्रीलंका, मलेशिया और इंडोनेशिया इसमें भागीदार नहीं.
क्यों नहीं किए हमने दस्तखत
तत्कालीन सरकार ने कन्वेंशन 1951 पर साइन नहीं किए क्योंकि वे साउथ एशियाई सीमाओं की अस्थिरता को देख रहे थे, और नहीं चाहते थे कि देश की सुरक्षा खतरे में आए. भारत की सीमाएं वैसे भी काफी पोरस हैं, यानी बॉर्डर पार करके आना-जाना चलता रहता है. ऐसे में कन्वेंशन पर भी दस्तखत कर देने का मतलब था, आंतरिक सुरक्षा के साथ खिलवाड़. फिलहाल भारत के पास हक है कि वो तय करे कि किसे रहने दिया जाए, और किसे नहीं.
कब से आ रहे हैं शरणार्थी
वैसे तो देश में लगातार शरणार्थी आते रहे लेकिन साल 1971 में सबसे ज्यादा रिफ्यूजी बांग्लादेश से भारत आए थे. एक अंदाजे के मुताबिक उस साल के आखिर तक 10 मिलियन लोग यहां आ चुके थे. तब इंदिरा गांधी सरकार थी. उन्होंने इन लोगों की देखभाल और उन्हें बसाने के लिए इंटरनेशनल समुदाय से मदद चाही, जैसा कि बाकी सारे देशों में होता रहा. तब यूएनएचसीआर ने लंबे समय तक टालमटोल के बाद केवल 70 मिलियन डॉलर की सहायता दी थी. बता दें कि तब यूएनएचसीआर के हेड सदरुद्दीन आगा खान थे, जिन्होंने शुरुआत में किसी मदद से साफ इनकार कर दिया था. इसके बाद भी भारत ने शरण दी और लगातार देता रहा.
कितने रिफ्यूजी रह रहे हैं
साल 2020 में वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन ने एक ग्लोबल रिपोर्ट जारी की, जिसमें भारत को शरणार्थियों की टॉप पसंद बताया गया. हमारा देश दक्षिण-पूर्वी एशिया के उन तीन देशों में सबसे ऊपर है, जिसने इसी एक साल में सबसे ज्यादा शरणार्थियों को शरण दी. यहां तक कि प्रवासियों की संख्या भी यहां कम नहीं. डब्ल्यूएचओ की मानें तो दुनिया में हर आठ में से एक व्यक्ति प्रवासी है.
हमारे यहां कितने शरणार्थी हैं, इसपर पक्का डेटा कहीं नहीं दिखता.
अलग-अलग एजेंसियां अलग दावे करती हैं. यूएनएचसीआर नब्बे के दशक से नजर रख रहा है कि किस देश में कितने शरणार्थी हैं और किस हाल में रह रहे हैं. रिफ्यूजी आमतौर पर एजेंसी के साथ रजिस्टर्ड होते हैं. यही डेटा यूएनएचसीआर के पास होता है. लेकिन शरणार्थियों की काफी आबादी बिना पंजीकरण के भी रह रही है, इनकी कोई पहचान नहीं. कई बार ये आरोप भी लगता रहा कि घुसपैठिए भारत आकर अवैध तौर पर यहीं के दस्तावेज बना लेते और घुलमिल जाते हैं. इस बात को भी ट्रैक करना मुश्किल है.
घुसपैठियों पर नहीं मिला कोई डेटा
साल 2020 में इंडिया टुडे ने इस बारे में मिनिस्ट्री ऑफ होम अफेयर्स में एक आरटीआई लगाई. इसका जवाब काफी गोलमाल था, जिससे साफ नहीं हो सका कि असल में कितनी संख्या अवैध रूप से रह रहे लोगों की होगी. ये लोग पहचान छिपाकर रहते हैं और कुछ इस तरह से घुलमिल जाते हैं कि पता ही नहीं लग सके कि ये बाहर से हैं. कई बार नकली पहचान पत्र और बाकी प्रमाण-पत्र बनाकर रखने की खबरें भी आती रहीं.
हम क्या एक्शन ले सकते हैं शरण के लिए आने वालों पर
भारत के पास ऑप्शन है कि वो रिफ्यूजियों को लेकर क्या तय करे. पॉलिसी का हिस्सा न होने की वजह से सरकार अगर ये आइडेंटिफाई कर ले कि फलां शख्स बगैर दस्तावेजों के देश के भीतर घुस आया है, तो फॉरेनर्स एक्ट के तहत उसे गिरफ्तार किया जा सकता है. दोष साबित होने पर 3 महीने से लेकर 8 साल की सजा भी हो सकती है. साथ ही उसे वापस उसके देश भेजने की कार्रवाई भी की जा सकती है. ये किसी भी देश के शरणार्थियों के मामले में लागू हो सकता है लेकिन सरकार तब तक एक्शन नहीं लेती, जब तक किसी के चलते मुश्किल न खड़ी हो जाए.
हाल में भारत में नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 आया, जो रिफ्यूजियों को धर्म के आधार पर भेदभाव के कारण देश की नागरिकता देने की बात करता है. ये एक तरह की घरेलू शरणार्थी नीति है.