साल 2018 में देश की एक्ट ईस्ट पॉलिसी के तहत FMR को छूट मिली है. इससे हुआ ये कि भारत और म्यांमार दोनों देशों के लोग एक-दूसरे की सीमा के 16 किलोमीटर तक भीतर आसानी से आने-जाने लगे. इसके लिए उन्हें सिर्फ एक पास लेना होता था. लेकिन अब यही बंदोबस्त पूर्वोत्तर के गले की हड्डी बन चुका है. वहां की सरकारें लगातार ड्रग्स और ह्यूमन ट्रैफिकिंग की शिकायत कर रही हैं. इसी के चलते ये फैसला लिया जा सकता है कि FMR को रोक दिया जाए.
लंबा बॉर्डर साझा करते हैं
मिजोरम, मणिपुर, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश की सीमाएं म्यांमार से सटी हुई हैं. ये बॉर्डर 15 सौ किलोमीटर से भी लंबा है. दोनों ही सीमाओं पर पहाड़ी आदिवासी रहते हैं, जिनका आपस में करीबी रिश्ता रहा. उन्हें मिलने-जुलने या व्यापार के लिए वीजा की मुश्किलों से न गुजरना पड़े, इसके लिए भारत-म्यांमार ने मिलकर ये तय किया कि सीमाएं 16 किलोमीटर तक वीजा-फ्री कर दी जाएं.
इसके लिए जो पास जारी होता, वो सालभर के लिए वैध होता, और एक बार सीमा पार करने वाले 2 हफ्ते तक दूसरे देश में बिना किसी परेशानी के रह सकते थे.
क्यों हटाया जा रहा है
दोनों देशों के बीच ज्यादातर सीमा पर कोई फेंसिंग नहीं. मणिपुर में 10 किलोमीटर का हिस्सा ही बाड़ों से घिरा हुआ है, जबकि बाकी लगभग 4 सौ किलोमीटर का हिस्सा खुला हुआ है. इसी तरह मिजोरम और अरुणालय प्रदेश में 5 सौ से ज्यादा किलोमीटर सीमा खुली हुई है. ये घुसपैठियों के लिए सबसे आसान रास्ता है. यहीं से वे अवैध तौर पर आते रहे, और नशे की तस्करी भी करते रहे.
मणिपुर हिंसा के दौरान लगे आरोप
पिछले साल गर्मियों में शुरू हुई मणिपुर हिंसा के दौरान साफ हुआ कि इसकी एक वजह राज्य में घुसपैठियों का होना भी है. वे अपनी आइडियोलॉजी का असर लोकल लोगों पर डाल रहे हैं. साथ ही हथियारों का लेनदेन भी हो रहा है. पिछले साल मई में हिंसा शुरू होने से ठीक पहले मणिपुर के सीएम एन बीरेन सिंह ने प्रेस कांफ्रेस में म्यांमार से बड़ी संख्या में रिफ्यूजियों के आने की बात कही थी. बहुतों को डिटेन भी किया गया था.
इसे रोकने के लिए ही FMR को खत्म करने पर बात हुई. माना जा रहा है कि अगले कुछ सालों के भीतर दोनों देशों के बीच पूरी तरह घेराबंदी हो जाएगी. हालांकि इसपर कोई पक्की बात अब तक सामने नहीं आई, न ही म्यांमार की तरफ से कोई बयान आया है.
हमेशा उथलपुथल रहती है म्यांमार में
FMR को सस्पेंड कर सकने की एक वजह और भी है. म्यांमार आर्थिक और राजनैतिक तौर पर काफी अस्थिर है. यहां समय-समय पर अलग-अलग गुटों में हिंसा होती रही. इस दौरान कमजोर गुट भागकर भारत में घुसने लगता है. कई मीडिया रिपोर्ट्स दावा करती हैं कि अकेले मिजोरम में ही 40 हजार से ज्यादा म्यांमार के रिफ्यूजी रह रहे हैं. इसके अलावा मणिपुर और बाकी नॉर्थईस्टर्न राज्यों में भी ये आबादी रहती है.
नेपाल का ओपन बॉर्डर भी दे रहा ऐसी ही परेशानी
म्यांमार के अलावा नेपाल से सटी सीमा पर भी यही समस्या होती रही. दोनों देश लगभग 18 सौ किलोमीटर की सीमा साझा करते हैं. हमारे यहां पांच राज्य, उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और सिक्किम इस देश से सटे हुए हैं. इसमें से बड़ा हिस्सा वो है, जिसे हमने ओपन बॉर्डर घोषित कर रखा है.
इंटरनेशनल संधि के तहत नेपाल और भारत ने आपस में भरोसा जताते हुए ये हिस्से खुले रखे. यहां पर उस तरह की सुरक्षा नहीं है, जैसी बाकी हिस्सों में रहती है. यहां तक कि इस रास्ते पर कंटीली बाड़ें भी नहीं हैं. इसे ट्रीटी ऑफ पीस एंड फ्रेंडशिप नाम मिला. इसका मकसद भी यही था, दोनों सीमाओं पर बसे लोगों में रोटी-बेटी का रिश्ता बनाए रखना.
यही ओपन बॉर्डर खतरे की वजह बन चुका
यहां से मानव तस्करी भी हो रही है, फेक करेंसी का लेनदेन भी हो रहा है. हालांकि सबसे बड़ा खतरा जासूसों और आतंकियों के आने-जाने का है. यूएस स्टेट डिपार्टमेंट ने साल 2018 में एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें दावा किया गया कि नेपाल की सीमा फिलहाल भारत में एंट्री के लिए पाकिस्तानी जासूसों का सबसे पसंदीदा बॉर्डर बन चुकी है.