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भारत के गुस्से को अनदेखा कर क्यों खालिस्तानियों को पाल-पोस रहा है कनाडा, क्या सरकार से भी ताकतवर हो चुका ये गुट?

कनाडा में भारत के बाद सबसे ज्यादा सिख आबादी है. ये लोग मेहमानों की तरह अलग-थलग नहीं रहते, बल्कि राजनीति में भी एक्टिव हैं, और व्यापार में भी. हालात ये हैं कि वहां के पीएम को मजाक में जस्टिन सिंह ट्रूडो भी कह दिया जाता है. बाकी माइनोरिटी को छोड़कर ट्रूडो सिखों के लिए ज्यादा उदार रहे. यहां तक कि इसके लिए वे भारत की नाराजगी भी उठा रहे हैं.

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कनाडा में खालिस्तानी आंदोलन लगातार फल-फूल रहा है. सांकेतिक फोटो (AP)
कनाडा में खालिस्तानी आंदोलन लगातार फल-फूल रहा है. सांकेतिक फोटो (AP)

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की मुश्किल कम होने का नाम नहीं ले रहीं. भारत में G20 के दौरान उन्हें बाकी नेताओं से कम अहमियत मिली. वापसी में विमान खराब हो गया. और अब देश पहुंचने पर खुद उनके मुल्कवासी लताड़ रहे हैं. माना तो ये तक जा रहा है कि अभी चुनाव हुए तो सत्ता उनके हाथ से चली जाएगी.

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इसके पीछे दो वजहें हैं- बढ़ती महंगाई और खालिस्तानियों के लिए उनका नरमी. भारत भी लगातार चरमपंथियों को पनाह देने के लिए कनाडाई सरकार को घेरता रहा. लेकिन ऐसा क्या है जो भारत जैसे ताकतवर देश को नजरअंदाज करके कनाडा एक छोटे चरमपंथी गुट को सपोर्ट कर रहा है? 

ऑपरेशन ब्लू स्टार के मौके पर होता है सालाना प्रोटेस्ट

हर साल ऑपरेशन ब्लू स्टार के मौके पर कनाडा में सिख एक जगह जमा होते हैं. इस दौरान सफेद साड़ी में एक महिला के पोस्टर पर लाल रंग लगाया जाता है. साथ में लिखा होता है- दरबार साहिब पर हमले का बदला. ये पोस्टर कथित तौर पर भूतपूर्व पीएम इंदिरा गांधी का है, जिन्होंने मिलिट्री ऑपरेशन का आदेश दिया था ताकि खालिस्तानी लीडर भिंडरावाले को खत्म किया जा सके. ये अपनी तरह की अलग नफरत है, जो शायद कोई भी देश बर्दाश्त न करे. लेकिन कनाडा में हर साल ये आयोजन होता है और सरकार की नाक के नीचे होता है.

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why khalistani separatists are safe in canada justin trudeau seems soft on anti india movement photo AFP

क्या सरकार से भी ज्यादा ताकतवर हो चुके कनाडाई सिख

फिलहाल जो हालात हैं, वो कुछ ऐसे हैं कि सरकार और सिख संगठनों दोनों को ही एक-दूसरे की जरूरत है. साल 2019 में चुनाव के दौरान लिबरल पार्टी मेजोरिटी से 13 सीट पीछे थी. ये जस्टिन ट्रूडो की पार्टी थी. तब सरकार को न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी ने सपोर्ट दिया, जिसके लीडर हैं जगमीत सिंह धालीवाल. ये खालिस्तानी चरमपंथी है, जिसका वीजा साल 2013 में भारत ने रिजेक्ट कर दिया था. सिखों की यही पार्टी ब्रिटिश कोलंबिया को रूल कर रही है. इससे साफ है कि ट्रूडो के पास एंटी-इंडिया आवाजों को नजरअंदाज करने के अलावा कोई विकल्प नहीं. 

काफी बड़ा वोट बैंक 

कनाडा में भारतीय मूल के 24 लाख लोग हैं. इनमें से करीब 7 लाख सिख ही हैं. इनकी ज्यादा जनसंख्या ग्रेटर टोरंटो, वैंकूवर, एडमोंटन, ब्रिटिश कोलंबिया और कैलगरी में है. चुनाव के दौरान ये हमेशा बड़े वोट बैंक की तरह देखे जाते हैं. यहां तक कि वहां के मेनिफेस्टो में इस कम्युनिटी की दिक्कतों पर जमकर बात होती है. 

why khalistani separatists are safe in canada justin trudeau seems soft on anti india movement photo AP

क्या कभी कनाडा ने सिखों का विरोध भी किया 

हां. शुरुआत में जब खालिस्तान का एजेंडा भी नहीं था, तब ये समुदाय वहां काफी भेदभाव झेलता रहा. वहां के लोगों को बाहरियों का आकर नौकरियां और जगह लेना रास नहीं आ रहा था. एक मौके पर तो सिखों को जबर्दस्ती भारत भी भेज दिया गया था. ये साल 1914 की बात है, जब सिखों समेत भारतीयों से भरा हुआ एक जहाज कोलकाता के बंदरगाह पर लगा था. ये शिप कनाडा से लौट आई थी क्योंकि कनाडाई लोगों को भारतीय नहीं चाहिए थे. इसपर काफी बहसाबहसी भी हुई. साल 2016 में ट्रूडो ने संसद में इसपर माफी मांगी थी. 

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कैसे सेफ हाउस बन गया चरमपंथियों के लिए
 

60 के दशक में वहां लिबरल पार्टी की सरकार आई. उसे मैनपावर की जरूरत थी, जो हिंदुस्तान जैसे देश से उसे कम कीमत पर मिल रहा था. इसी दौरान सिखों में चरमपंथी समुदाय भी बन चुका था. खालिस्तान की मांग को लेकर आंदोलन हो रहे थे. तभी ऑपरेशन ब्लू स्टार चला, जिसके बाद खालिस्तानी भागकर कनाडा में शरण लेने लगे. 

why khalistani separatists are safe in canada justin trudeau seems soft on anti india movement photo Getty Images

वहां बसे हुए खालिस्तानी सोच वाले लोग जमकर पैसे कमाते और भारत में आतंकी गतिविधियों को फंड करने लगे. कनाडा की सरकार तब भी उनपर एक्शन नहीं ले पाती थी क्योंकि लॉ उतना सख्त नहीं था. 

क्यों बेअसर है प्रत्यर्पण संधि

वैसे तो भारत और कनाडा के बीच फरवरी 1987 में प्रत्यर्पण संधि हो चुकी है. इसके तहत दोनों देश एक-दूसरे के अपराधियों को अपने यहां शरण नहीं दे सकते. लेकिन ये ट्रीटी उतनी प्रभावी नहीं. कई चरमपंथी वहां खुलेआम घूम रहे हैं लेकिन कनाडाई सरकार उन्हें भारत नहीं भेज रही. खुद विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कई बार इस द्विपक्षीय संधि का हवाला देते हुए खालिस्तानी नेताओं को देश भेजने की अपील की थी लेकिन कुछ हुआ नहीं.

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