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शांतिदूत माने जाते महात्मा गांधी को नोबेल शांति पुरस्कार देने से क्यों मना किया गया? बेहद विवादित है इसका इतिहास

तीन बार चुने जाने के बावजूद महात्मा गांधी को नोबेल शांति पुरस्कार नहीं दिया गया. हर बार नोबेल कमेटी ने अजीबोगरीब वजहें देते हुए इस नाम को खारिज कर दिया. ये तक कह दिया गया कि गांधीजी की शख्सियत में कई लेयर्स हैं, जिनके कारण उन्हें ये नहीं दिया जा सकता. वहीं कई ऐसे लीडर्स को प्राइज मिला, जिन्होंने शांति की बजाए कत्लेआम मचाया था.

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महात्मा गांधी को दुनिया में शांति और अहिंसा का संदेश देने वाले लीडर की तरह जाना जाता है. (Getty Images)
महात्मा गांधी को दुनिया में शांति और अहिंसा का संदेश देने वाले लीडर की तरह जाना जाता है. (Getty Images)

महात्मा गांधी की हत्या को 75 साल हो चुके. उन्हें याद करते हुए नोबेल प्राइज कमेटी ने एक ट्वीट किया, जिसमें कहा गया कि हत्या से कुछ पहले ही गांधीजी को शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था. कमेटी के मुताबिक इससे पहले भी उन्हें तीन बार शांति पुरस्कार के लिए नॉमिनेट किया गया. लेकिन सवाल उठता है कि फिर उन्हें अवॉर्ड मिला क्यों नहीं! कई वजहों से नोबेल शांति पुरस्कार को दुनिया का सबसे विवादित प्राइज भी माना जाता है. 

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नोबेल की वेबसाइट ने गांधीजी का जिक्र करते हुए अपने-आप से ही कई सवाल किए हैं. जैसे क्या नॉर्वे की चुनाव कमेटी का दायरा इतना सीमित है कि वो गैर-यूरोपीय लोगों की आजादी की लड़ाई को भी देख नहीं सके. या वे लोग डरते हैं कि कहीं शांति पुरस्कार देने पर उनके और ब्रिटेन के संबंध खराब न हो जाएं.

महात्मा गांधी, द मिसिंग लॉरिएट के नाम पर नोबेल कमेटी ने लंबा-चौड़ा लेख लिखा है, जिसमें इस फर्क पर बात की है. जिन गांधीजी को पूरी दुनिया शांतिदूत की तरह जानती है, उन्हें ही नॉमिनेशन के बावजूद कभी पुरस्कार नहीं मिल सका. कमेटी की मंशा इससे भी गड़बड़ लगती है कि उसने बहुतों बार ऐसे लोगों को शांति पुरस्कार दिया या फिर नॉमिनेट किया, जिनके बारे में कई सवाल उठते रहे थे. जैसे इसी साल इस रेस में ऑल्ट न्यूज के फाउंडर प्रतीक सिन्हा और मोहम्मद जुबैर का भी नाम था. ये वे लोग हैं, जिनपर धार्मिक भावनाएं आहत करने का आरोप लगता रहा. 

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कहने को तो गांधीजी को 1947 से पहले, साल 1937, 1938 और 1939 में भी पीस प्राइज के लिए नॉमिनेट किया गया था. तीनों ही बार नॉर्वे की संसद के एक सदस्य ओले कॉलबोर्नसन ने उन्हें रिकमंड किया. लेकिन नोबेल कमेटी के एक सदस्य जैकब वॉर्म मुलर ने महात्मा गांधी को सिरे से खारिज कर दिया. मुलर के मुताबिक उनकी शख्सियत में कई लेयर्स थीं, जो उन्हें इतने बड़े अवॉर्ड के लायक नहीं बनाती थीं. वे एक साथ ही 'आदर्शवादी, राष्ट्रवादी, फ्रीडम फाइटर और तानाशाह' सब थे. 

why mahatma gandhi did not get nobel peace prize controversy
नोबेल पीस प्राइज पर लगातार सवाल उठते रहे. (Reuters)

मुलर ने गांधीजी की दक्षिण अफ्रीका यात्रा और उस दौरान उनके संघर्षों तक पर सवाल उठा दिए. एडवाइजरी कमेटी के इस सदस्य का मानना था कि गांधीजी ने सिर्फ भारतीयों के लिए अफ्रीका में भी संघर्ष किया, और अश्वेतों से उनका कोई वास्ता नहीं था. इसके बाद बात खत्म हो गई. फिर कई सालों तक नोबेल के लिए किसी ने उनका नाम नहीं लिया. 

साल 1947 में पहली बार कई भारतीयों ने मिलकर उनका नाम नोबेल के लिए नॉमिनेट किया. लेकिन फिर से कमेटी के सदस्यों ने इसे खारिज कर दिया. इस बार वजह ये दी गई कि भारत के विभाजन और दंगों के लिए वे कहीं न कहीं जिम्मेदार माने जा रहे थे. उस साल शांति पुरस्कार क्वाकर्स को मिला. ये एक धार्मिक समूह है, जो बाइबल का प्रचार-प्रसार करता है और आध्यात्म पर जोर देता है. 

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महात्मा गांधी की मौत के बाद भी कई बार आवाजें उठीं कि उन्हें मरणोपरांत भी तो अवॉर्ड दिया जा सकता था, लेकिन नोबेल कमेटी ने यहां भी हाथ खड़े कर दिए. उसने साफ कहा कि भले ही वे कुछ खास हालातों में मरणोपरांत पुरस्कार देते हैं लेकिन गांधीजी उस श्रेणी में नहीं आते. वे न तो किसी संस्था से थे और न ही उन्होंने कोई विरासत छोड़ी थी. ऐसे में प्राइज मनी किसे दी जाएगी! तो कुल मिलाकर शांति और अहिंसा के पुजारी माने जाते गांधीजी को शांति पुरस्कार नहीं मिल सका. 

लगभग हमेशा ही पीस प्राइज को लेकर विवाद होता रहा. ये दिखता रहा कि अक्सर ये पुरस्कार जीतने वाले लोग या तो राजनीति से होते हैं, या फिर लड़ाई-भिड़ाई के काम में शामिल रह चुके होते हैं. अमेरिका के ही कई नेताओं पर आरोप लग चुका कि शांति के नाम पर उन्होंने कई छोटे देशों में खून बहाया और फिर शांति पुरस्कार ले बैठे.

पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को अवॉर्ड देते हुए कमेटी ने कहा था- 'अंतरराष्ट्रीय सद्भावना और लोगों के बीच मदद का भाव बढ़ाने की कोशिशों के लिए'. ओबामा का बतौर राष्ट्रपति वो पहला साल था और उस दौरान उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया था, जिसे इस श्रेणी में रखा जा सके. ये तो हुआ विवाद का एक हिस्सा. लेकिन 3 नोबेल पीस विनर्स ऐसे भी रहे, जिन्हें जेल की सजा काटने के दौरान ये अवॉर्ड मिल गया. 

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