दिसंबर के आखिर में गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि सीएए के लागू होने को कोई रोक नहीं सकता. इसके बाद से अंदाजा लगाया जा रहा है कि चुनाव से पहले ही एक्ट को लेकर सरकार हरकत में आ जाएगी. इस बीच एक बार फिर एंटी-सीएए तर्क दिए जाने लगे हैं. दरअसल, केंद्र सरकार के एक सीनियर अधिकारी ने कहा है कि लोकसभा चुनाव से पहले इसे नोटिफाई कर दिया जाएगा. इसके बाद से सीएए पर चर्चा गरमाने लगी है.
पहले भी इसका जमकर विरोध हुआ था. खासकर पूर्वोत्तर के सात राज्य इसके खिलाफ हैं.
क्या है सीएए में?
सिटिजनशिप अमेंडमेंट एक्ट के लागू होने पर तीन पड़ोसी मुस्लिम मेजोरिटी देशों से आए उन लोगों को सिटिजनशिप मिल जाएगी, जो दिसंबर 2014 तक किसी न किसी प्रताड़ना का शिकार होकर भारत आए. इसमें गैर-मुस्लिम माइनोरिटी- हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई शामिल हैं.
आवेदन की क्या होगी प्रक्रिया?
सरकारी अधिकारी के मुताबिक पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन होगी. इसके लिए ऑनलाइन पोर्टल भी तैयार किया गया है. आवेदकों को वह साल बताना होगा, जब उन्होंने दस्तावेजों के बिना भारत में प्रवेश किया था.
क्यों हो रहा विरोध?
विपक्ष का कहना है कि इसमें मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है. वे जानबूझकर अवैध घोषित किए जा सकते हैं. वहीं बिना वैध दस्तावेजों के भी बाकियों को जगह मिल सकती है. सीएए की बात शुरू होते ही देशभर में प्रोटेस्ट हुए, लेकिन नॉर्थईस्ट में ये सबसे ज्यादा था. वहां करोड़ों की संपत्ति का नुकसान हुआ, भारी तोड़फोड़ भी हुई. हालांकि पूर्वोत्तर के पास अलग वजह है. वे मानते हैं कि अगर बांग्लादेश से आए अल्पसंख्यकों को नागरिकता मिली, तो उनके राज्य के संसाधन बंट जाएंगे.
कौन कर रहा है प्रोटेस्ट?
पूर्वोत्तर के मूल निवासी यानी वहां बसे आदिवासी लोग सीएए के विरोध में हैं. इन राज्यों में अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड और त्रिपुरा शामिल हैं. इन सातों राज्यों के मूल लोग सजातीय हैं. इनका खानपान और कल्चर काफी हद तक मिलता है. लेकिन कुछ दशकों से यहां दूसरे देशों से अल्पसंख्यक समुदाय भी आकर बसने लगा. खासकर बांग्लादेश और पाकिस्तान के अल्पसंख्यक बंगाली यहां आने लगे.
इसके बाद क्या बदला?
मेघालय में वैसे तो गारो और जैंतिया जैसी ट्राइब मूल निवासी हैं, लेकिन अल्पसंख्यकों के आने के बाद वे पीछे रहे गए. हर जगह माइनोरिटी का दबदबा हो गया. इसी तरह त्रिपुरा में बोरोक समुदाय मूल निवासी है, लेकिन वहां भी बंगाली शरणार्थी भर चुके हैं. यहां तक कि सरकारी नौकरियों में बड़े पद भी उनके ही पास जा चुके. अब अगर सीएए लागू हो गया तो मूल निवासियों की बचीखुची ताकत भी चली जाएगी. दूसरे देशों से आकर बसे हुए अल्पसंख्यक उनके संसाधनों पर कब्जा कर लेंगे. यही डर है, जिसकी वजह से पूर्वोत्तर सीएए का भारी विरोध कर रहा है.
असम के हाल सबसे खराब माने जा रहे हैं
साल 2019 में वहां के स्थानीय संगठन कृषक मुक्ति संग्राम समिति ने दावा किया था कि उनके राज्य में 20 लाख से ज्यादा हिंदू बांग्लादेशी अवैध रूप से रह रहे हैं. यही स्थिति बाकी राज्यों की है. लोक्ल लोगों का दावा है कि साल 2011 में हुई जनगणना से असल स्थिति साफ नहीं होती क्योंकि सेंसस के दौरान अवैध लोग बचकर निकल जाते हैं.
क्यों नॉर्थ-ईस्ट बना अल्पसंख्यक बंगाली हिंदुओं का गढ़?
पाकिस्तान के पूर्वी हिस्से में बड़ी संख्या संख्या में बंगालीभाषी बसे हुए थे, जिनपर लगातार हिंसा हो रही थी. इसी आधार पर युद्ध हुआ और बांग्लादेश बन गया. लेकिन बांग्लादेश में भी हिंदू बंगालियों पर अत्याचार होने लगा क्योंकि ये देश भी मुस्लिम-मेजोरिटी था. इसी दौरान पाकिस्तान और बांग्लादेश से भागकर लोग भारत आने लगे. ये वैसे तो अलग-अलग राज्यों में बसाए जा रहे थे, लेकिन पूर्वोत्तर का कल्चर इन्हें अपने ज्यादा करीब लगा और वे वहीं बसने लगे. वैसे भी पूर्वोत्तर राज्यों की सीमा बांग्लादेश से सटी हुई है इसलिए भी वहां से लोग आते हैं.