उद्योगपति एलन मस्क की कंपनियां एक के बाद एक कई कमाल कर रही हैं. लेकिन हम-आप जैसे आम लोग जिसकी तारीफ कर रहे हैं, वैज्ञानिक तबके में वही बात नाराजगी ला रही है. यहां तक कि उनपर साइंस से जुड़ी गलत जानकारी फैलाने का भी आरोप लग चुका. अब इसी बात पर दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित वैज्ञानिक संस्थानों में से एक रॉयल सोसायटी मस्क की सदस्यता रद्द कर सकती है. बता दें कि न्यूटन, आइंस्टीन और डार्विन जैसे साइंटिस्ट इसके सदस्य रह चुके. ऐसे में मस्क की मेंबरशिप जाने का क्या मतलब है?
रॉयल सोसाइटी के अध्यक्ष एड्रियन स्मिथ को लिखे ओपन लेटर में लगभग साढ़े तीन हजार वैज्ञानिकों ने मस्क की फेलोशिप रद्द करने की मांग की. यह विवाद तब शुरू हुआ, जब एआई के गॉडफादर कहे जाने वाले नोबेल पुरस्कार विजेता और रॉयल सोसाइटी के फेलो ज्योफ्री हिन्टन ने मस्क को सोसाइटी से निकालने की मांग की. हिन्टन का आरोप है कि मस्क की वजह से यूएस की साइंटिफिक संस्थाओं को भारी नुकसान हो रहा है. इधर मस्क ने एक्स पर रिएक्शन देते हुए कहा कि असुरक्षित लोग ही पुरस्कार और सदस्यता की परवाह करते हैं.
जब से मस्क ने एक्स (पहले ट्विटर) को लिया, वैज्ञानिकों के मुताबिक, तब से गलत सूचनाओं में भारी बढ़त हुई. खुद मस्क ने अपने अकाउंट के जरिए कोविड 19 वैक्सीन, अबॉर्शन और कई गंभीर मामलों में भ्रम पैदा करने वाली जानकारियां फैलाईं.
कई फैलोज इसलिए भी नाराज हैं क्योंकि मस्क ब्रिटिश राजनेताओं पर टिप्पणी कर रहे हैं, जो कि रॉयल सोसायटी के कोड ऑफ कंडक्ट से खिलाफ है. दरअसल जनवरी में मस्क ने ब्रिटिश पीएम कीर स्टार्मर की खुलकर आलोचना की. उनका कहना था कि पीएम ग्रूमिंग गैंग स्कैंडल को जान-बूझकर अनदेखा करते रहे, जिसकी वजह से बाल यौन शोषण बढ़ा. बता दें कि यह मामला साल 1997 से 2013 के बीच का है, जिसमें ब्रिटेन में करीब डेढ़ हजार बच्चियों का यौन शोषण कथित तौर पर एक खास धार्मिक समुदाय से इमिग्रेंट्स ने किया था.
कई वैज्ञानिक परेशान हैं कि ट्रंप प्रशासन में मिली हुई भारी ताकत का मस्क गलत इस्तेमाल करते हुए साइंस से जुड़ी रिसर्च के लिए फंड में भारी कटौती कर रहे हैं. इसका लंबा और घातक असर हो सकता है. एक तरफ तो मस्क पर बाकी वैज्ञानिकों को रोकने का आरोप है, दूसरी तरफ उनकी कंपनी न्यूरालिंक एक के बाद एक बड़े प्रयोग कर तो रही है लेकिन उसे जांचने के लिए बाहरी वैज्ञानिकों को एंट्री नहीं दे रही. ये लैबोरेटरी प्रैक्टिस रेगुलेशन के खिलाफ है.
मस्क को अब तक क्यों नहीं निकाला गया
सोसाइटी के सभी वैज्ञानिक मस्क को हटाने के पक्ष में नहीं. बहुत से लोग उनके साइड दिखते हैं. नोबेल प्राइज विजेता आंद्रे गीम के मुताबिक, मस्क सनकी भले ही हों लेकिन उन्होंने जो किया, जो बहुत कम लोग कर सकते हैं. ऐसे में सोसायटी को उनकी मेंबरशिप रद्द नहीं करनी चाहिए.
साल 2018 में उन्हें वैज्ञानिक कंट्रीब्यूशन्स के लिए रॉयल सोसायटी की फैलोशिप मिली. उन्होंने स्पेसएक्स में लीड डिजाइनर के तौर पर रियूजेबल रॉकेट और स्पेसक्राफ्ट तैयार किए. ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस विकसित किया, जिससे इंसानी दिमाग को कंप्यूटर से जोड़ा जा सके. मस्क के मुताबिक ये कई बीमारियों में काम आएगा और युद्ध का ट्रॉमा झेल रहे सिपाही भी इसकी मदद से मानसिक तकलीफों से छुटकारा पा सकेंगे.
अब तक किन वैज्ञानिकों को सोसायटी ने निकाला
जर्मन साइंटिस्ट रुडोल्फ एरिक रास्पे को धोखाधड़ी के आरोप में साल 1775 में रॉयल सोसाइटी से हटाया गया. उन्होंने रॉयल संग्रहालय से कीमती पत्थर चुराए और बेचने की कोशिश की थी. फ्रॉड का पता लगने पर वे ब्रिटेन भाग गए लेकिन संस्थान ने खुद उनकी सदस्यता रद्द कर दी. इस संस्था से वैज्ञानिकों को हटाना बहुत रेयर माना जाता है और कम ही ऐसे उदाहरण सार्वजनिक हैं.
क्या होगा अगर मस्क को हटा दिया जाए
यह संकेत ऐसे समय में सामने आया है, जब अमेरिका और ब्रिटेन के रिश्ते पहले जैसे गरमाहट भरे नहीं रहे, बल्कि यूक्रेन मामले को लेकर दोनों दो तरफ दिख रहे हैं. ऐसे में रॉयल सोसायटी का यह कदम दोनों देशों के डिप्लोमेटिक संबंध पर डेंट लगा सकता है. इसी महीने की शुरुआत में सोसाइटी ने मस्क की फैलोशिप को बनाए रखने का फैसला किया लेकिन साथ ही एक बयान भी दिया, जिसमें कहा गया कि संस्था साइंस और साइंटिस्ट्स पर पर वैचारिक हमलों और गलत सूचना का मुकाबला करने के लिए संभावित कदमों पर सोच रही है. यानी भविष्य में किसी कार्रवाई से इनकार नहीं किया जा सकता.
इसका बड़ा असर ये भी हो सकता है कि अमेरिका इसे अपने वैज्ञानिक पर हमले की तरह देखे और ब्रिटेन के साथ मिलकर किसी शोध से इनकार कर दे. दूसरी तरफ, जहां तक मस्क की बात है, उनकी कंपनियां निजी इनवेस्टमेंट और सरकारी फंडिंग से काम करती हैं, लिहाजा सोसायटी से एक्सपेल होने का उनपर कोई आर्थिक असर तो नहीं ही होगा.
क्या है रॉयल सोसायटी
17वीं सदी के मध्य में बनी संस्था को दुनिया की पहली वैज्ञानिक एकेडमी भी कहा जाता है. ये शोध कार्य को बढ़ावा देने के अलावा सरकारों को भी विज्ञान और तकनीक पर सलाह देती रही. न्यूटन, डार्विन, आइंस्टीन और स्टीफन हॉकिंग जैसे वैज्ञानिक इसके सदस्य रह चुके हैं. फिलहाल सोसायटी AI से लेकर क्लाइमेट चेंज और बायो टेक्नोलॉजी पर फोकस किए हुए हैं.