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महिला आरक्षण बिल का परिसीमन दक्षिणी राज्यों के लिए बनेगा सिरदर्द! स्टालिन क्यों बोले- ये सिर पर लटक रही तलवार जैसा?

तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन का कहना है कि महिला आरक्षण बिल चुनावी हथकंडा है, क्योंकि ये जनगणना और फिर परिसीमन के बाद लागू होगा. उन्होंने कहा कि परिसीमन दक्षिणी राज्यों के सिर पर लटक रही तलवार जैसा है. जानते हैं कि आखिर दक्षिणी राज्यों को परिसीमन से दिक्कत क्या है?

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महिला आरक्षण बिल परिसीमन के बाद लागू होगा.
महिला आरक्षण बिल परिसीमन के बाद लागू होगा.

महिला आरक्षण बिल लोकसभा से पास हो गया. अब राज्यसभा में जाएगा. यहां भी पास हो गया तो राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद कानून बन जाएगा. लेकिन कानून बनने के बाद भी ये तुरंत लागू नहीं होगा. पहले जनगणना होगी, उसके बाद परिसीमन होगा और तब जाकर ये लागू होगा. 

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केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को लोकसभा में बताया कि 2024 के चुनाव के बाद जनगणना और परिसीमन का शुरू कर दिया जाएगा. शाह ने कहा, 'तुरंत ही दिन आएगा कि इस सदन में एक तिहाई महिलाएं बैठेंगी. चुनाव के बाद तुरंत ही जनगणना और परिसीमन की प्रक्रिया शुरू की जाएगी.'

महिला आरक्षण बिल को ज्यादातर राजनीतिक पार्टियों ने समर्थन दिया है. लेकिन कुछ हैं जो इसे चुनावी झुनझुना बता रहे हैं. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और डीएमके चीफ एमके स्टालिन ने इसे 'चुनावी हथकंडा' बताया है, क्योंकि ये जनगणना और परिसीमन के बाद लागू होगा. साथ ही उन्होंने एक नई बात भी छेड़ दी. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को भरोसा दिलाना चाहिए कि परिसीमन की प्रक्रिया से उन राज्यों को कोई नुकसान नहीं होगा, जहां जनसंख्या नियंत्रण पर अच्छे से काम किया गया.

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उन्होंने कहा, 'परिसीमन तमिलनाडु और दक्षिणी भारत के सिर पर लटकने वाली तलवार की तरह है. दक्षिण भारत के राजनीतिक प्रतिनिधित्व को कम करने की राजनीतिक साजिश को नाकाम किया जाना चाहिए.'

परिसीमन को लेकर दक्षिणी राज्यों की ये चिंता नई नहीं है. इस साल जब नए संसद भवन का उद्घाटन हुआ था, तब भी विवाद शुरू हो गया था. दरअसल, परिसीमन आबादी के आधार पर होगा और इसी आधार पर लोकसभा सीटों की संख्या बढ़ेगी. 

उस समय हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा था, आप उन राज्यों को सजा नहीं दे सकते, जिन्होंने आबादी नियंत्रित की और जहां फर्टिलिटी रेट कम हुआ है. उन्होंने कहा था कि जिस तरह से आबादी बढ़ रही है, उस हिसाब से 50 फीसदी आबादी तो तीन-चार राज्यों में ही होगी.

फैमिली प्लानिंग और परिसीमन का कनेक्शन

आजादी के बाद 1951 में जब पहली जनगणना हुई तो उस समय देश की आबादी 36 करोड़ के आसपास थी. 1971 तक आबादी बढ़कर करीब 55 करोड़ हो गई. 

लिहाजा, 70 के दशक में सरकार ने फैमिली प्लानिंग पर जोर दिया. इसका नतीजा ये हुआ कि दक्षिण के राज्यों ने तो इसे अपनाया और आबादी काबू में की. लेकिन उत्तर भारतीय राज्यों में ऐसा नहीं हुआ और यहां आबादी तेजी से बढ़ती रही. 

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ऐसे में उस समय भी दक्षिणी राज्यों की ओर से सवाल उठाया गया कि उन्होंने तो फैमिली प्लानिंग लागू करके आबादी कंट्रोल की और उनके यहां ही सीटें कम हो जाएंगी. सीटें कम होने का मतलब संसद में प्रतिनिधित्व कम होना. 

इसलिए विवाद हुआ. इसके बाद 1976 में संविधान में संशोधन कर तय कर दिया कि 2001 तक 1971 की जनगणना के आधार पर ही लोकसभा सीटें होंगी. लेकिन 2002 में अटल सरकार ने दोबारा संशोधन कर इसकी सीमा 2026 तक बढ़ा दी.

आबादी और लोकसभा सीटों में कनेक्शन क्या? 

जिन राज्यों में आबादी कम होगी, वहां सीटों की संख्या कम होगी. और जिन राज्यों में आबादी बढ़ी होगी, वहां सीटों की संख्या भी बढ़ेगी.

इस बात को ऐसे समझिए, अभी तमिलनाडु की अनुमानित आबादी 7.68 करोड़ है और वहां लोकसभा की 39 सीटें हैं. जबकि, मध्य प्रदेश की आबादी 8.65 करोड़ है और यहां 29 लोकसभा सीटें हैं. परिसीमन होता है तो अभी की आबादी के हिसाब से मध्य प्रदेश में 86 लोकसभा सीटें हो जाएंगी और तमिलनाडु में 76 सीटें होंगी. सीटों की ये संख्या हर 10 लाख आबादी पर एक सांसद वाले फॉर्मूले के हिसाब से है. 

एक और उदाहरण देखिए. केरल की अनुमानित आबादी 3.57 करोड़ है. अभी यहां 20 लोकसभा सीटें हैं. उत्तर प्रदेश की आबादी 23.56 करोड़ है और यहां 80 सांसद हैं. अगर वही 10 लाख वाला फॉर्मूला लागू किया जाए तो केरल में लोकसभा सीटों की संख्या बढ़कर 35 या 36 होगी. जबकि, उत्तर प्रदेश में लोकसभा सीटों की संख्या 235 या उससे ज्यादा भी हो सकती है. 

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इसी वजह से दक्षिणी राज्यों को आपत्ति है. उनका यही कहना है कि हमने आबादी नियंत्रित की, केंद्र की योजनाओं को लागू किया और उनके ही यहां लोकसभा सीटें कम हो जाएंगी.

इसलिए दक्षिणी राज्य आबादी के हिसाब से सीटों के बंटवारे के विरोध में हैं. क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो उत्तर भारतीय राज्यों में सीटों की संख्या दोगुनी-तिगुनी या चौगुनी तक बढ़ जाएगी. जबकि, दक्षिण भारतीय राज्यों में सीटें बढ़ेंगी तो, लेकिन बहुत ज्यादा नहीं.

25 लाख आबादी पर एक सांसद

वैसे तो हर 10 लाख की आबादी पर एक सांसद होना चाहिए. लेकिन भारत में ऐसा है नहीं. लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों को मिलाकर कुल 793 सांसद हैं. इस समय अनुमानित आबादी 140 करोड़ से ज्यादा है. लिहाजा, हर साढ़े 25 लाख आबादी पर एक सांसद है.

जबकि, देखा जाए तो आबादी के मामले में चीन और भारत में बहुत ज्यादा अंतर नहीं है. लेकिन वहां साढ़े चार लाख आबादी पर एक सांसद है. चीन में लगभग तीन हजार सांसद हैं.

अमेरिका में भी दोनों सदनों को मिलाकर कुल 535 सांसद हैं और वहां हर 7.33 लाख आबादी पर एक सांसद है. यूके में एक सांसद के हिस्से में एक लाख से भी कम आबादी है.

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