US के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने फंड इकट्ठा करने वाले एक इवेंट के दौरान विवादित बयान दे दिया. बाइडेन ने कहा कि भारत समेत चीन, जापान और रूस जेनोफोबिक हैं, और इसी वजह से उनकी आर्थिक तरक्की नहीं हो पा रही. आरोप में घिरा हर देश अपने-अपने ढंग से राष्ट्रपति के बयान पर एतराज जता रहा है. इस बीच समझिए, क्या है जेनोफोबिया. क्या वाकई भारत समेत कटघरे में रखे गए देशों में दूसरे मुल्क से आए लोगों को शरण नहीं दी जा रही.
क्या है जेनोफोबिया शब्द का अर्थ
जेनोज मतलब अजनबी, और फोबोज यानी डर. जेनोफोबिया को बाहरी लोगों, या अजनबियों से डर मान सकते हैं. ये विदेशियों के लिए भी हो सकता है, या उनकी किसी आदत के लिए भी. ये डर केवल डरने तक सीमित नहीं रहता, बल्कि नफरत में बदल जाता है. जेनोफोबिक लोग दूसरों या अपने से अलग लोगों की हर बात को नफरत से देखते हैं.
जो बाइडेन ने अपने देश की तारीफ करते हुए कहा था कि उनकी इकनॉमी मजबूत है क्योंकि वे इमिग्रेंट्स का स्वागत करते रहे. वहीं भारत, चीन और जापान अपने डर की वजह से इकनॉमिक चैलेंज झेल रहे हैं. वे अप्रवासियों को नहीं चाहते हैं.
अमेरिका में सबसे ज्यादा इमिग्रेंट्स
ये बात सही है कि अमेरिका में बाहरी लोगों की संख्या काफी ज्यादा रही. साल 2019 में इस देश में इमिग्रेंट्स की संख्या 5 करोड़ से ज्यादा थी. ये तब दुनिया में कुल आप्रवासियों का 19 प्रतिशत, जबकि अमेरिकी जनसंख्या का 14 प्रतिशत था. इसके बाद बाहरी लोगों को सबसे ज्यादा पनाह देने वालों में जर्मनी और सऊदी अरब हैं.
भारत में क्या हैं हाल
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन ने एक ग्लोबल रिपोर्ट जारी की, जिसमें भारत को शरणार्थियों की टॉप पसंद बताया गया. हमारा देश दक्षिण-पूर्वी एशिया के उन तीन देशों में सबसे ऊपर है, जिसने लगातार सबसे ज्यादा शरणार्थियों को शरण दी. यहां तक कि प्रवासियों की संख्या भी यहां कम नहीं. डब्ल्यूएचओ की मानें तो दुनिया में हर आठ में से एक व्यक्ति प्रवासी है. स्टेटिस्टिका के अनुसार, साल 2020 में भारत में साढ़े 4 मिलियन लोग बाहर से रहने आए.
असल संख्या की सीमित जानकारी
रिफ्यूजियों की असल संख्या में काफी घालमेल हो सकता है. यूनाइटेड नेशन्स हाई कमिश्नर फॉर रिफ्यूजीस (यूएनएचसीआर) नब्बे के दशक से लगातार इसपर नजर रख रहा है कि किस देश में कितने शरणार्थी हैं और किस हाल में रह रहे हैं. ये आमतौर पर एजेंसी के साथ रजिस्टर्ड होते हैं. यही डेटा यूएनएचसीआर के पास होता है. लेकिन शरणार्थियों की काफी आबादी बिना पंजीकरण के भी रह रही है, इनकी कोई पहचान नहीं है.
भारत में अमेरिका की तुलना में रिफ्यूजी कम हैं, इसकी कई वजहें हैं. हमारे देश की खुद की आबादी इतनी ज्यादा है कि ऐसे में बाहरी लोगों को रखना और रिसोर्सेज का बंटवारा करना मुश्किल है. इसी कारण से देश रिफ्यूजी कन्वेंशन 1951 का हिस्सा भी नहीं बना. हालांकि शरण लेने वालों के लिए देश की नीति हमेशा उदार रही.
अब बात करें जापान की
ये देश पहले दूसरे लोगों को अपने यहां एडजस्ट करने से कतराता रहा. हालात इतने एक्सट्रीम थे कि एक समय पर उसने ब्राजील से आए ऑटो चालकों को उनके देश वापस भेजने और वहीं सैटल होने के लिए पैसे दिए थे. ये मामला साल 2009 का है. जापान नहीं चाहता था कि लोग उसके यहां आकर बसें. लेकिन अब तस्वीर बदल रही है. अगस्त 2023 में आए सरकारी डेटा के मुताबिक, आप्रवासियों की संख्या बढ़ रही है. ये कुल आबादी का 2.4 प्रतिशत हो चुके.
नहीं देना चाहता था एंट्री
दूसरे देश के लोग आकर काम के लिए जापान में न बस जाएं, इसके लिए वहां की सरकार ने कड़े नियम बना रखे थे. केवल दो ही इंडस्ट्रीज- कंस्ट्रक्शन और शिपबिल्डिंग के ही लिए लोग बाहर से आ सकते हैं. पिछले साल सरकार ने इसे दो कामों से बढ़ाकर 11 कर दिया. जापान में जिस तेजी से बर्थ रेट कम हो रही है, वहां फॉरेन नेशनल्स को बुलावा देना अकेला रास्ता दिख रहा है. यही वजह है कि लंबे समय तक बाहरियों के दरवाजे बंद रखने के बाद अब जापान भी लोगों को वेलकम कर रहा है.
चीन में बहुत कम हैं इमिग्रेंट
बाकी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं से तुलना करें तो चीन में इमिग्रेंट्स काफी कम हैं. वहां की आबादी का केवल 0.07 प्रतिशत ही विदेशियों का है. यूनाइटेड नेशन्स की मानें तो नॉर्थ कोरिया में भी फॉरेन वर्कर चीन से ज्यादा हैं. इसके कई कारण हैं. बाहरी लोग कम आएं, इसे लेकर चीन काफी सतर्क रहा. वहां वर्क परमिट पाना आसान नहीं. इसके अलावा चीन में रहते बाहरी लोगों को नागरिकता भी आसानी से नहीं मिलती, जब तक कि वे चीनी पेरेंट्स की संतान न हों. चीन के लोग अपनी भाषा और कल्चर को लेकर भी काफी सख्त रहे, और बाहरी लोगों की स्वीकार्यता कम ही रही.
रूस में भी आप्रवासी काफी संख्या में रहे. मई 2022 तक रशियन फेडरेशन में 60 लाख फॉरेनर्स थे. हालांकि पहले ये संख्या कहीं ज्यादा थी. लेकिन बाद में यूएसएसआर से अलग हुए देशों ने अपने लिए एक नई बॉडी बना ली- कॉमनवेल्थ ऑफ इंडिपेंडेंट स्टेट्स. तब रूस में शामिल माने जाने विदेशी इन 11 देशों में बंट गए.