अयोध्या की विवादित जमीन को लेकर सुप्रीम कोर्ट का बहुप्रतीक्षित फैसला आने के बाद सोशल मीडिया पर भगवान राम, सीता और लक्ष्मण की दो तस्वीरें वायरल हो रही हैं. दावा किया जा रहा है कि ये तस्वीरें उन मूर्तियों की हैं जिन्हें मुगल शासक बाबर के राम जन्मभूमि को अपवित्र करने से पहले ही सुरक्षित स्थान पर रखने के लिए अयोध्या से दक्षिण भारत ले जाया गया था.
इस दावे में आगे कहा जा रहा है कि एक स्वामी ने इन मूर्तियों को हरिहर में तुंगभद्रा नदी के नारायण आश्रम रखा, जो कि आज कर्नाटक में है. तभी से यहां पर इन मूर्तियों की पूजा हो रही है. अब इन मूर्तियों को भगवान की राम जन्मभूमि अयोध्या में वापस लाया जाएगा.
इंडिया टुडे के एंटी फेक न्यूज वॉर रूम (AFWA) ने पाया कि वायरल हो रही ये दोनों तस्वीरें कर्नाटक के दावणगेरे जिले के हरिहर शहर में स्थित श्री सद्गुरु समर्थ नारायण महाराज आश्रम की हैं. हालांकि, इस बात का कोई विश्वसनीय प्रमाण नहीं है जिससे ये स्थापित हो कि ये तस्वीरें बाबर के हमले के पहले अयोध्या से लाई गई थीं.
इन तस्वीरों के साथ किया जा रहा दावा व्हाट्सएप पर भी फॉरवर्ड किया जा रहा है. कई सोशल मीडिया यूजर्स ने इसे फेसबुक और ट्विटर पर भी शेयर किया है.
AFWA की पड़ताल
पड़ताल के दौरान हमने पाया कि पोस्ट में इस्तेमाल की गई दोनों तस्वीरें कन्नड़ टाइम्स की फोटो गैलरी में मौजूद हैं. कन्नड़ टाइम्स के मुताबिक, ये तस्वीरें हरिहर स्थित श्री सदगुरु समर्थ नारायण महाराज आश्रम की हैं, इन्हें चिन्मय एम राव ने खींचा है. AFWA ने इन तस्वीरों के बारे में और खोजबीन की:
पहली फोटो
इस फोटो में देखा जा सकता है कि भगवान राम, लक्ष्मण और सीता की मूर्ति किसी धातु की बनी है. हमने नारायण आश्रम की वर्किंग कमेटी के सदस्य पुरुषोत्म गुप्ता से संपर्क किया. उन्होंने बताया कि 'इन मूर्तियों को उत्सव के दौरान सार्वजनिक दर्शन और पूजन के लिए आश्रम के हॉल एरिया में बाहर लाया जाता है. संभवत: ये मूर्तियां 70 से 80 साल पुरानी हैं. फोटो के साथ जो दावा किया जा रहा है कि ये अयोध्या से लाई गई हैं, सही नहीं है.'
हमने कर्नाटक यूनिवर्सिटी के इतिहास और पुरातत्व विभाग के रिटायर्ड प्रोफेसर अशोक शेट्टार को भी ये तस्वीरें दिखाईं. उन्होंने भी कहा कि तस्वीरों के साथ किया जा रहा दावा झूठा कि ये तस्वीरें अयोध्या से लाई गई थीं. हमने अयोध्या के राम मंदिर में कोर्ट द्वारा अधिकृत पुजारी सत्येद्र दास से भी इस बारे में बात की, जिन्होंने ऐसी किसी कहानी के बारे में जानकारी होने से इनकार किया.
उन्होंने बताया कि राम जन्मभूमि मंदिर 'राम लला' को समर्पित है, जिसका अर्थ हुआ बाल रूप में राम. इसलिए आपको विवादित स्थल पर बने तंबू में भगवान राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न की मूर्तियां मिलेंगी, लेकिन वहां सीता की मूर्ति नहीं है. उन्होंने तर्क दिया कि चूंकि वायरल फोटो में सीता की भी मूर्ति है, इसलिए इसके अयोध्या से होने की संभावना नहीं है.
दूसरी फोटो
इस फोटो में देखा जा सकता है कि भगवान राम, लक्ष्मण और सीता की मूर्ति काले पत्थर की बनी है. आश्रम की वर्किंग कमेटी के सदस्य पुरुषोत्तम गुप्ता ने इसके संबंध में हमें बताया कि 'अयोध्या पर कोर्ट के फैसले के बाद कुछ स्थानीय लोग यह मानने लगे हैं कि ये मूर्तियां अयोध्या से लाई गई हैं. हालांकि, इससे जुड़ा कोई प्रमाण नहीं है. ये मूर्तियां बाद की हैं और आश्रम के गर्भगृह में रखी गई हैं.'
इंडिया टुडे ने दावणगेरे के पत्रकार मोहम्मद नजीर से बात की, जिन्होंने बताया कि अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के पहले हमने यह कहानी कभी नहीं सुनी थी. उन्होंने कहा, 'यहां दावणगेरे में कोर्ट के फैसले के बाद लोगों ने ऐसा विश्वास जताना शुरू कर दिया है कि पत्थर की मूर्तियां अयोध्या से लाई गई हैं. चूंकि दोनों ही तस्वीरें एक ही स्थान से हैं, इसलिए सोशल मीडिया यूजर्स धातु की मूर्तियों की तस्वीरों के साथ भी वही दावा कर रहे हैं.'
हमने दावणगेरे के जिलाधिकारी महंतेश बेलागी से बात की, जिन्होंने कहा कि पत्थर की मूर्तियों को लेकर लोगों नये सिरे से रुचि जागी है, इसलिए वे इतिहासकारों और पुरातत्व विभाग के लोगों से इसकी जांच कराने की योजना बना रहे हैं. इन पत्थर की मूर्तियों के बारे में अयोध्या के महंत सत्येंद्र दास ने हमें बताया कि चूंकि वे कुछ पुरानी दिख रही हैं लेकिन यह कहना कठिन है कि ये मूर्तियां राम जन्मभूमि से हरिहर लाई गई हैं.
निष्कर्ष
इन तथ्यों के आधार पर इंडिया टुडे का निष्कर्ष है कि पत्थर की मूर्तियों को लेकर यह बहस हो रही है कि ये अयोध्या की असली मूर्तियां हो सकती हैं, लेकिन चूंकि दोनों मूर्तियां एक ही आश्रम की हैं, इसलिए लोग दोनों के साथ एक ही दावा कर रहे हैं. कुछ लोग धातु के मूर्ति की भी तस्वीर शेयर करके दावा कर रहे हैं कि वे बाबर के मंदिर गिराने से पहले सुरक्षित रखने के लिए अयोध्या से लाई गई थीं.
हालांकि, अब तक हमें ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिला जिनसे यह साबित हो कि ये मूर्तियां सैकड़ों साल पहले अयोध्या से लाई गई थीं. यह भी गौर करने की बात है कि यह पोस्ट सुप्रीम कोर्ट के अयोध्या विवाद पर फैसले के बाद वायरल होना शुरू हुई है. हालांकि, जब तक इस मामले पर किसी पुरातात्विक विशेषज्ञ द्वारा आधिकारिक रिपोर्ट नहीं दी जाती है, तब तक इस दावे को खारिज करना मुश्किल है.