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फैक्ट चेक: भगत सिंह की नहीं है कोड़े की मार खाते हुए व्यक्ति की ये वायरल तस्वीर

भारत अपना 74वां स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहा है. इसके ठीक पहले सोशल मीडिया पर एक ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीर वायरल हो रही है. तस्वीर में दिख रहा है कि एक व्यक्ति के हाथ पैर रस्सी से बंधे हुए हैं और यूनिफॉर्म पहने एक व्यक्ति उसे कोड़े से मार रहा है.

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आजतक फैक्ट चेक

दावा
ये तस्वीर भगत सिंह की है जिसमें अंग्रेज सिपाही उन्हें कोड़े मार रहा है.
फेसबुक यूजर
सच्चाई
तस्वीर में कोड़े की मार खा रहा व्यक्ति शहीद भगत सिंह नहीं हैं. ये तस्वीर 1919 में कसूर रेलवे स्टेशन पर (अब पाकिस्तान में) ली गई थी. उस समय भगत सिंह 12 साल के थे और लाहौर के डीएवी स्कूल में पढ़ रहे थे. 1920 से पहले भगत सिंह स्वतंत्रता संग्राम में ​सक्रिय नहीं थे.

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भारत अपना 74वां स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहा है. इसके ठीक पहले सोशल मीडिया पर एक ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीर वायरल हो रही है. तस्वीर में दिख रहा है कि एक व्यक्ति के हाथ पैर रस्सी से बंधे हुए हैं और यूनिफॉर्म पहने एक व्यक्ति उसे कोड़े से मार रहा है. दावा किया जा रहा है कि ये स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भगत सिंह हैं जिन्हें कोड़े मारे जा रहे हैं.

ये मैसेज वॉट्सएप के अलावा फेसबुक पर भी शेयर किया जा रहा है. इस फोटो के एक कोने पर एक अखबार की ​कटिंग भी लगी है. तस्वीर के साथ हिंदी में लिखा है, “भगत सिंह जी की कोड़े से मार खाते हुए ये दुर्लभ फोटो कभी अखबार में छपी थी। और हमको पढ़ाया जाता है कि हमें आजादी नेहरू और गांधी ने दिलाई थी।”

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fact-1_081420090718.jpgवायरल तस्वीर

इंडिया टुडे के एंटी फेक न्यूज वॉर रूम (AFWA) ने पाया कि तस्वीर के साथ किया जा रहा दावा गलत है. तस्वीर में कोड़े की मार खाते हुए दिख रहा व्यक्ति भगत सिंह नहीं हैं. ये तस्वीर करीब 1919 में कसूर रेलवे स्टेशन (अब पाकिस्तान में) पर खींची गई थी. उस समय भगत सिंह सिर्फ 12 साल के थे और लाहौर के डीएवी स्कूल में पढ़ाई कर रहे थे. 1920 से पहले भगत सिंह ने न तो स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया था और न ही इससे पहले कभी अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार ही किया था.

वायरल पोस्ट का आर्काइव्ड वर्जन यहां देखा जा सकता है.

रिवर्स इमेज सर्च की मदद से हमें एक ट्वीट मिला, जिसे 2018 में Kim A. Wagner ने पोस्ट किया था. ट्विटर बायो के मुताबिक, Wagner लंदन की क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी में ग्लोबल एंड इंपीरियल हिस्ट्री के प्रोफेसर हैं.

उन्होंने अपने इस ट्वीट में एक अन्य तस्वीर के साथ ये वायरल तस्वीर भी पोस्ट की है और लिखा है, “पंजाब के कसूर में सार्वजनिक रूप से सजा देने की ये दो तस्वीरें हैं, इन्हें भारत से ले जाकर बेंजामिन हॉरमन ने 1920 में प्रकाशित की थी. #अमृतसरनरसंहार."

हमें बेंजामिन हॉरमन की किताब ‘अमृतसर एंड अवर ड्यूटी टू इंडिया’ का आर्काइव वर्जन मिला. इसके 120वें पेज पर वायरल फोटो छपी है, जिसका कैप्शन है, “भारत की एक और तस्वीर, जिसमें कसूर रेलवे स्टेशन पर सीढ़ी से बंधे हुए व्यक्ति को कोड़े मारे जा रहे हैं.” यहां भगत सिंह के नाम का कोई जिक्र नहीं है.

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fact-2_081420090826.jpgवायरल तस्वीर

यही तस्वीर हमें “सबरंग” नाम की वेबसाइट पर एक ​लेख के साथ मिली. ये लेख जलियांवाला बाग नरसंहार के सौ साल पूरे होने पर 2019 में छपा है. ये लेख दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रहे शम्सुल इस्लाम ने लिखा है.

इस लेख में राष्ट्रीय अभिलेखागार के रिकॉर्ड में रखे गए ब्रिटिश युग के दमन और यातना के दस्तावेजों और तस्वीरों के बारे में बताया गया है, जिसे अब जनता के लिए खोल दिया गया है. इस लेख में वायरल तस्वीर भी मौजूद है, जिसके कैप्शन में लिखा है, “1919 के पंजाब में सार्वजनिक सजा”.

भूपेंद्र हूजा के संपादन में छपी भगत सिंह की किताब “द जेल नोटबुक एंड अदर राइटिंग्स” के मुताबिक, 1919 में भगत सिंह सिर्फ 12 साल के थे और लाहौर के डीएवी स्कूल में पढ़ रहे थे.

अप्रैल, 1919 में ब्रिटिश सैनिकों द्वारा हजारों निहत्थे भारतीयों की हत्या करने वाले जलियांवाला बाग नरसंहार के कुछ ही दिन बाद भगत सिंह वहां गए थे. 1919 में ब्रिटिश सैनिकों ने भगत सिंह को गिरफ्तार किया हो या उन्हें सार्वजनिक तौर पर सजा दी हो, इस बारे में कोई जानकारी इस किताब में नहीं है.

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भारत सरकार की ओर से प्रकाशित किताब “Dictionary of Martyrs. India’s freedom struggle (1857-1947)” के मुताबिक, भगत सिंह स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से 1920 में शामिल हुए.

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हालांकि, हम ये पता नहीं कर सके कि वायरल तस्वीर में जिसे सजा दी जा रही है, वह व्यक्ति कौन है, लेकिन ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर ये जरूर कहा जा सकता है कि ये तस्वीर भगत सिंह की नहीं है.

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