लोकसभा चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी ने भोपाल से 2008 में हुए मालेगांव बम धमाकों की आरोपी साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को चुनावी रण में उतारा है. पार्टी की इस घोषणा के बाद से ही सोशल मीडिया पर घमासान जारी है. जहां एक तरफ कुछ यूजर्स बम धमाकों की आरोपी को टिकट देने के लिए बीजेपी को कोस रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग ये दावा कर रहे हैं कि कोर्ट ने साध्वी प्रज्ञा को इन आरोपों से बरी कर दिया है. ऐसा दावा करने वालों में बीजेपी दिल्ली के सोशल मीडिया हेड पुनीत अग्रवाल और वरिष्ठ पत्रकार अमीष देवगन भी शामिल हैं.
Sadhvi Pragya was just accused and has been acquitted by NIA court. And everyone knows she was framed while This man goes to the court in midnight to defend a convicted terrorist. The condition of our judiciary is such because these hypocrites unfortunately became lawyers. https://t.co/SKVeJgPVn7
— Chowkidar Punit Agarwal (@Punitspeaks) April 18, 2019
इंडिया टुडे एंटी फेक न्यूज वॉर रूम (AFWA) ने पड़ताल में पाया कि वायरल पोस्ट का दावा भ्रामक है. कोर्ट ने मालेगांव ब्लास्ट केस से महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ ऑग्रेनाइज्ड क्राइम एक्ट (MCOCA) हटा लिया था, लेकिन इस मामले में गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (Unlawful Activities Prevention Act - UAPA) के तहत साध्वी पर अब भी मुकदमा चल रहा है.
पोस्ट का अर्काइव्ड वर्जन यहां देखें.
चौकीदर पुनीत अग्रवाल ने ट्वीट किया जिसका हिंदी में अनुवाद है: 'साध्वी प्रज्ञा पर केवल आरोप लगे थे और उन्हें एनआईए कोर्ट ने बरी कर दिया है.हर कोई जानता है कि उन्हें फंसाया गया था, ये व्यक्ति आधी रात को कोर्ट में दोषी करार दिए गए आतंकवादी की पैरवी करने पहुंच गया था. हमारे देश की न्यायपालिका की ऐसी स्थिति इसी वजह से है क्योंकि इस तरह के ढोंगी लोग वकील बन जाते हैं.'
कई ट्विटर यूजर्स जैसे कि वरिष्ठ पत्रकार अमीष देवगन , चौकीदार दीपज्योति पाल , पूर्व पत्रकार मोनिका, टीवी चैनल आज तक, फेसबुक यूजर्स अंशुमन गुप्ता और शुभम सिंह ने भी ये दावा किया कि साध्वी प्रज्ञा को कोर्ट ने बरी कर दिया है. खबर लिखे जाने तक अमीष के ट्वीट पर 6000 से ज्यादा रीट्वीट्स और 15000 से ज्यादा लाइक्स आ चुके थे.
तथ्य ये है कि साध्वी पर 2008 मालेगांव ब्लास्ट केस में फिलहाल गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम के तहत मुकदमा चल रहा है. हालांकि कोर्ट ने इस केस से मकोका के चार्ज हटा लिए हैं. साध्वी अप्रेल 2017 से ही जमानत पर जेल से बाहर हैं.
साल 2017 में मध्यप्रदेश के देवास कोर्ट ने साध्वी प्रज्ञा और सात लोगों को पूर्व आरएसएस प्रचारक सुनील जोशी की हत्या के केस से बरी किया था. साध्वी प्रज्ञा पर 2007 के इस मर्डर केस में षड्यंत्र रचने के आरोप लगे थे.
2008 मालेगांव ब्लास्ट केस
2008 मालेगांव ब्लास्ट केस में महाराष्ट्र एंटी-टेररिज्म स्कवाड (ATS) ने चार्जशीट दायर करते हुए साध्वी प्रज्ञा को इस केस में प्रथम आरोपी बनाया था. 29 सितंबर 2008 को मोटरसाइकल में आईईडी से हुए बम धमाकों में छह लोगों की मौत हो गई थी, जबकि करीब 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे. यह मोटरसाइकल (रजिस्ट्रेशन नंबर GJ-05-BR-1920) साध्वी के नाम पर रजिस्टर्ड थी.
हेमंत करकरे (जिन्हें 26/11 मुंबई हमलों में लश्कर-ए-तैयबा के आतंकियों ने मार दिया था) के नेतृत्व में एटीएस की टीम ने साध्वी को गिरफ्तार किया था. एटीएस की चार्जशीट के अनुसार साध्वी ने वो मोटरसाइकल रामचंद्र कलसांगर को दी थी, जिसने संदीप डांगे के साथ मिलकर इन धमाकों को अंजाम दिया था. चार्जशीट में यह भी कहा गया कि उसी साल भोपाल में 11 अप्रैल को इस धमाके का षड्यंत्र रचने के लिए हुई मीटिंग में साध्वी मौजूद थी और उसने धमाकों को अंजाम देने के लिए आदमी मुहैया करवाने की जिम्मेदारी भी ली थी.
कोर्ट ने हटाया मकोका
नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) के बनने के बाद यह केस अप्रैल 2011 में एनआईए को सौंपा गया. एनआईए ने 2016 में चार्जशीट दायर की जिसमें कहा कि एजेंसी को साध्वी प्रज्ञा के इस केस से जुड़े होने के कोई सबूत नहीं मिले, जिसके कारण उन्हें बरी किया जाना चाहिए. एजेंसी ने केस से मकोका हटाने की भी सिफारिश की जिसे कोर्ट ने मान लिया, लेकिन कोर्ट ने एजेंसी की साध्वी प्रज्ञा को केस से बरी करने की दलील को खारिज कर दिया.
साध्वी पर तय हुए आरोप
अप्रैल 2017 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने साध्वी को जमानत दे दी. एनआईए ने साध्वी की जमानत की अर्जी पर कोई आपत्ति दर्ज नहीं की थी. वहीं कोर्ट ने भी इस तथ्य पर गौर किया कि साध्वी को हॉस्पिटल में दाखिल करवाया गया था और उनका इलाज चल रहा था. जमानत के ऑर्डर में वजह बताते हुए लिखा गया कि साध्वी 'स्तन कैंसर से पीड़ित है' और 'इतनी कमजोर हो चुकी है कि बिना सहारे के चल भी नहीं सकती'. साध्वी को जमानत मिलने के कारणों में उनकी बीमारी भी एक वजह थी.
एनआईए ने ये कहते हुए साध्वी को क्लीन चिट दी थी कि उनके खिलाफ पुख्ता सबूत नहीं हैं, लेकिन एनआईए स्पेशल कोर्ट ने एजेंसी की इस दलील को अस्वीकार करते हुए दिसंबर 2017 में यह साफ कर दिया कि साध्वी पर UAPA के तहत मुकदमा चलेगा. इसके बाद अक्टूबर 2018 में कोर्ट ने साध्वी और छह लोगों पर UAPA की धारा 16 और 18, इंडियन पीनल कोड की धारा 120बी (आपराधिक साज़िश), 302 (हत्या), 307 (हत्या की कोशिश) और 326 (इरादतन किसी को नुकसान पहुंचाना) के तहत आरोप तय किए. प्रमुख मीडिया संस्थानों ने इस खबर को भी प्रमुखता से प्रकाशित किया था.
क्या साध्वी लड़ सकती है चुनाव?
द रिप्रिजेंटेशन ऑफ द पीपल एक्ट 1951 की धारा 8(3) के अनुसार अगर किसी व्यक्ति को अदालत ने दोषी करार दिया है और उसे दो साल या इससे ज्यादा की सजा सुनाई गई है, तो वह व्यक्ति चुनाव नहीं लड़ सकता. साध्वी प्रज्ञा को अभी तक किसी भी कोर्ट में दोषी करार नहीं दिया गया है, लिहाजा वो कानूनी तौर से चुनाव लड़ सकती हैं.