पूर्व सांसदों और पूर्व विधायकों की पेंशन को लेकर समय-समय पर सवाल उठते रहे हैं. इस बीच अब सोशल मीडिया पर एक पोस्ट वायरल हो रहा है. इसके जरिए दावा किया जा रहा है कि मोदी सरकार ने 10 करोड़ रुपए की संपत्ति वाले नेताओं की पेंशन बंद कर दी है.
इंडिया टुडे के एंटी फेक न्यूज वॉर रूम (AFWA) ने पड़ताल में पाया कि वायरल हो रहा दावा गलत है. केंद्र सरकार की तरफ से इस तरह का कोई आदेश नहीं दिया गया है.
पोस्ट का आर्काइव्ड वर्जन यहां देखा जा सकता है.
फेसबुक पर वायरल पोस्ट में लिखा जा रहा है: "10 करोड़ संपत्ति वाले नेता की आज से हर तरह की पेंशन बंद, मोदी सरकार का शानदार फैसला." खबर लिखे जाने तक यह पोस्ट 25000 से ज्यादा बार तक शेयर की जा चुकी थी.
दावे का सच जानने के लिए हमने इंटरनेट पर इससे जुड़ी मीडिया रिपोर्ट और सरकारी आदेश की खोज की, लेकिन हमें ऐसा कोई सरकारी आदेश या मीडिया रिपोर्ट नहीं मिली जिससे दावे की पुष्टि होती हो.
किसे मिलती है पेंशन
यहां यह जानना बेहद जरूरी है कि "नेता" शब्द आम बोलचाल की भाषा में सांसद, विधायक और हर उस व्यक्ति के लिए इस्तेमाल किया जाता है जिसने कभी कोई चुनाव लड़ा हो. केंद्र और राज्य सरकारें नेताओं को किसी तरह की पेंशन नहीं देती. पेंशन केवल पूर्व सांसदों व पूर्व विधायकों को ही दी जाती है.
पूर्व सांसद को कितनी पेंशन
इस समय हर पूर्व सांसद को 25000 रुपए प्रति माह पेंशन मिलती है. अगर कोई नेता पांच साल से ज्यादा सांसद रह चुका है तो उसकी पेंशन, हर साल के हिसाब से दो हजार रुपए प्रति माह बढ़ जाती है.
लोक सभा ने अगस्त 2018 में नोटिस जारी करते हुए सैलेरी, अलाउंसेस एंड पेंशन ऑफ मेंबर्स ऑफ पार्लियामेंट एक्ट 1954 के सेक्शन 8A में किए गए इस संशोधन की जानकारी दी थी.
पूर्व विधायक को कितनी पेंशन
पूर्व विधायकों को पेंशन राज्य सरकार देती है, इसमें केंद्र सरकार का सीधे तौर पर कोई दखल नहीं होता. हालांकि अगर केंद्र सरकार पूर्व विधायकों की पेंशन में कोई बदलाव लाना चाहे तो उसके लिए उन्हें नया कानून लाना होगा. हर राज्य में विधायकों की अलग अलग पेंशन तय है. किस राज्य में वहां की सरकार विधायकों को कितनी पेंशन दे रही है, हमने इसकी जांच नहीं की है.
सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की याचिका
पिछले साल सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल की गई थी. इसमें सांसदों को मिलने वाली पेंशन व अन्य भत्तों को खत्म करने की मांग की गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने 16 अप्रैल 2018 को इस याचिका को खारिज कर दिया था. कोर्ट ने केंद्र सरकार के तर्क को सही ठहराया था कि पूर्व सांसदों को कार्यकाल समाप्त होने के बाद, पद की गरिमा को बनाए रखने के लिए पेंशन व अन्य भत्ते दिया जाना उचित है.
पड़ताल में साफ हुआ कि वायरल हो रहा दावा पूरी तरह गलत है, मोदी सरकार ने इस तरह का कोई आदेश जारी नहीं किया है.