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फैक्ट चेक: नूपुर शर्मा मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में नहीं किया है कोई बदलाव

इंडिया टुडे की फैक्ट चेक टीम ने पाया कि सुप्रीम कोर्ट ने नूपुर शर्मा को लेकर जो टिप्पणी की थी, वो सिर्फ मौखिक थी. लिखित ऑर्डर में इसका कोई जिक्र नहीं था. जाहिर है, ऐसी स्थिति में इसे हटाए जाने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता.

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आजतक फैक्ट चेक

दावा
सुप्रीम कोर्ट ने नूपुर शर्मा पर की गई टिप्पणी को जजों की व्यक्तिगत राय मानते हुए उसे लिखित ऑर्डर से हटा दिया है.
सोशल मीडिया यूजर्स
सच्चाई
सुप्रीम कोर्ट की नूपुर शर्मा पर की गई जिस टिप्पणी पर विवाद चल रहा है, उसका लिखित ऑर्डर में कोई जिक्र नहीं है. जाहिर है, इसे हटाने का सवाल ही पैदा नहीं होता.

सुप्रीम कोर्ट की नूपुर शर्मा पर की गई टिप्पणी को लेकर देश के 15 पूर्व न्यायाधीशों, 77 पूर्व नौकरशाहों और सेना के 25 पूर्व अधिकारियों ने सार्वजनिक तौर पर विरोध जताया है. इन लोगों ने एक खुला खत लिखा है और आरोप लगाया है कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने लक्ष्मण रेखा पार कर दी. 

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इस मामले को लेकर एक याचिका भी दायर हुई है, जिसमें मांग की गई है कि शीर्ष न्यायालय को अपनी मौखिक टिप्पणी वापस ले लेनी चाहिए. और अब कुछ लोग ऐसा कह रहे हैं कि भारी विरोध के चलते सुप्रीम कोर्ट ने नूपुर शर्मा पर की गई टिप्पणी को जजों की व्यक्तिगत राय बताते हुए उसे लिखित ऑर्डर से हटा दिया है.

मिसाल के तौर पर एक फेसबुक यूजर ने लिखा, “सुप्रीम कोर्ट ने नूपुर शर्मा पर की गई टिप्पणी को व्यक्तिगत राय मानते हुए हटा दिया. यह हैं हमारी एकता का पावर. जय श्री राम.”

'क्राउडटैंगल टूल' के मुताबिक खबर लिखे जाने तक ऐसे पोस्ट पर पिछले सात दिनों में तकरीबन 40 हजार लोग अपनी राय जता चुके थे.

 

इंडिया टुडे की फैक्ट चेक टीम ने पाया कि सुप्रीम कोर्ट ने नूपुर शर्मा को लेकर जो टिप्पणी की थी, वो सिर्फ मौखिक थी. लिखित ऑर्डर में इसका कोई जिक्र नहीं था. जाहिर है, ऐसी स्थिति में इसे हटाए जाने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता.

खबर लिखे जाने तक नूपुर शर्मा को फटकार लगाने वाले जस्टिस सूर्यकांत या जस्टिस जेबी पारदीवाला की तरफ से अपना बयान वापस लेने जैसी कोई जानकारी सामने नहीं आई है.

कोर्ट ने क्या कहा था नूपुर मामले में ?

नूपुर शर्मा के वकीलों ने उनके खिलाफ देश के अलग-अलग शहरों में दर्ज FIR को दिल्ली ट्रांस्फर करने की याचिका दायर की थी. इसे 1 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज  कर दिया. साथ ही नूपुर को कड़े शब्दों में फटकार भी लगाई कि उनके भडकाऊ बयान की वजह से देश में एक के बाद एक हिंसा की घटनाएं हो रही हैं.

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इस मामले से जुड़ा आदेश सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर देखा जा सकता है. इसमें नूपुर शर्मा पर की गई टिप्पणियों का कोई जिक्र नहीं है. 

जाहिर है, जो बात लिखी ही नहीं है, उसे हटाए जाने का सवाल ही पैदा नहीं होता.


क्या कभी किसी जज ने अपना बयान वापस लिया है? 

जवाब है, हां. ‘इंडिया टुडे’ की 5 जुलाई, 2022 की एक रिपोर्ट में तीन ऐसे वाकयों के बारे में बताया गया है.

इनमें से एक वाकया साल 2015 का है जब नूपुर मामले वाले जज जेबी पारदीवाला ने गुजरात हाईकोर्ट के जज रहते हुए आरक्षण की आलोचना की थी. उस वक्त उनके इस बयान से कुछ सांसद इतने नाराज हो गए थे कि उन्होंने जस्टिस पारदीवाला के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने की अर्जी भी दे दी थी. इसके बाद पारदीवाला ने अपना बयान वापस लिया था तब जाकर मामला शांत हुआ था. 

नूपुर को फटकारने वाले जज क्या बोले? 

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, नूपुर पर की गई टिप्पणी को लेकर हो रहे विरोध के मद्देनजर जस्टिस जेबी पारदीवाला ने चिंता जाहिर की है. उन्होंने कहा है कि जजों पर हो रहे व्यक्तिगत हमलों से एक खतरनाक माहौल पैदा होगा. इसमें जजों का ध्यान फैसले से ज्यादा इस बात पर होगा कि उसके बारे में मीडिया क्या सोचता है. 

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क्या कहते हैं एक्सपर्ट?

इस बारे में और जानकारी पाने के लिए हमने सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट सुबोध मार्कंडेय से संपर्क किया. उन्होंने ‘आजतक’ को बताया कि जजों की मौखिक टिप्पणियों को वापस लेने के लिए कानून में कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है.

वो कहते हैं, “कोर्ट में वकीलों और जजों के बीच जो बातचीत होती है, जरूरी नहीं है कि उसे अंतिम ऑर्डर में भी शामिल किया जाए. इस बातचीत के दौरान जज जो मौखिक टिप्पणी करते हैं, एक तरह से वो उसके जरिये अपनी बात को स्पष्ट करते हैं.” 

हाल ही में नूपुर शर्मा पर टिप्पणी करने वाले दो जजों में से एक जेबी पारदीवाला के पूर्व कांग्रेस विधायक होने की अफवाह फैली थी. उस वक्त भी हमने इसकी सच्चाई बताई थी.

कुल मिलाकर, हमारी पड़ताल से ये बात साबित हो जाती है कि सुप्रीम कोर्ट के नूपुर शर्मा संबंधी टिप्पणी वापस लेने की बात गलत है.

( यश मित्तल के इनपुट के साथ )

 

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