
न्यायालय को न्याय का मंदिर कहा जाता है और लोगों का भरोसा है कि यहां हमेशा सच की ही जीत होती है, यानी ‘सत्यमेव जयते’. लेकिन इन दिनों सोशल मीडिया पर तमाम लोग यह दावा कर रहे हैं कि देश की सबसे बड़ी अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट ने ही खुद अपने motto यानी ध्येयवाक्य से ‘सत्यमेव जयते’ को हटा दिया है. अब सुप्रीम कोर्ट का ध्येयवाक्य सत्यमेव जयते से बदलकर ‘यतो धर्मस्ततो जय:’ कर दिया गया है, जिसका अर्थ होता है जहां धर्म है, वहां जीत है.
इस पोस्ट का आर्काइव्ड वर्जन यहां देखा जा सकता है.
इंडिया टुडे के एंटी फेक न्यूज वॉर रूम (AFWA) ने पाया कि यह दावा गलत है. सुप्रीम कोर्ट का ध्येयवाक्य हमेशा से ही ‘यतो धर्मस्ततो जय:’ ही रहा है.
ट्विटर पर कई यूजर्स ने पोस्ट डालकर ऐसा ही दावा किया है.
एक यूजर ने इसे शेयर करते हुए लिखा, “मनुवादी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का चिन्ह बदल कर ‘सत्यमेव जयते’ की जगह ‘यतो धर्मस्ततो जय:’ कर दिया हैं!”
इन पोस्ट्स के नीचे कमेंट करने वाले बहुत सारे लोग इस बात पर नाराजगी जता रहे हैं.
क्या है सच्चाई
हमने जब यह खोजने की कोशिश की कि सुप्रीम कोर्ट के लोगो से ‘सत्यमेव जयते’ हटाने की बात शुरू कहां से हुई, तो हमने पाया कि सबसे पहले यह दावा करने वाले लोगों में वरिष्ठ पत्रकार पुण्य प्रसून बाजपेयी भी शामिल थे. हालांकि कुछ समय बाद ही उन्होंने हुए अपना पोस्ट डिलीट कर दिया और गलत जानकारी के लिए अफसोस भी जताया. लेकिन इसके बाद यह दावा सोशल मीडिया पर वायरल हो गई कि सुप्रीम कोर्ट ने अपना ध्येयवाक्य बदलकर ‘यतो धर्मस्ततो जय:’ कर लिया है.
हमें सुप्रीम कोर्ट के इतिहास से जुड़ा एक दस्तावेज मिला, जिसमें ये बताया गया है कि ‘यतो धर्मस्ततो जय:’ ध्येयवाक्य होने के पीछे वजह क्या है. इसके मुताबिक, प्राचीन भारत में ‘धर्म’ शब्द को ‘कानून’ के लिए इस्तेमाल किया जाता था. यह भी लिखा है कि ‘यतो धर्मस्ततो जय:’ का मतलब है- “यहां पर सिर्फ सत्य की ही जीत होती है.”
भारत सरकार के सूचना विभाग प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो ने भी इस दावे का खंडन किया है. 21 अगस्त को पीआईबी ने ट्विटर पर जारी अपने बयान में कहा, “सुप्रीम कोर्ट का चिह्न नहीं बदला है. सुप्रीम कोर्ट का ध्येयवाक्य हमेशा ही ‘यतो धर्मस्ततो जय:’ रहा है.”
हमने सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील और राज्यसभा सांसद केटीएस तुलसी से भी इस बारे में पूछा. उनका कहना था कि सुप्रीम कोर्ट का ध्येयवाक्य बदलने की बात बिल्कुल निराधार है.
महाभारत से है ‘यतो धर्मस्ततो जय:’
आज तक की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ‘यतो धर्मस्ततो जय:’ महाभारत के श्लोक ‘यतः कृष्णस्ततो धर्मो यतो धर्मस्ततो जयः’ से लिया गया है जो अर्जुन ने महाभारत युद्ध के दौरान युधिष्ठिर से कहा था. इसका मतलब है, “जहां कृष्ण हैं, वहां धर्म है और जहां धर्म है, वहां जीत है”.
कुल मिलाकर यह बात साफ है कि सोशल मीडिया पर किया जा रहा दावा कोरी अफवाह है. सुप्रीम कोर्ट का ध्येयवाक्य हमेशा से ही ‘यतो धर्मस्ततो जय:’ रहा है.