सोशल मीडिया पर नीली आंखों वाले बच्चे की एक विचलित करने वाली तस्वीर वायरल हो रही है. जिसमें उसकी आंखों के नीचे चोट लगी है और वहां पर टांके लगे हैं. तस्वीर के साथ दावा किया जा रहा है कि 12 साल के स्वीडिश बच्चे को एक मुस्लिम आप्रवासी ने इसलिए पीटा क्योंकि उसकी आंखें नीली थीं.
यह दावा एक वेबसाइट “Daily Political News” ने किया है. वेबसाइट पर अंग्रेजी में प्रकाशित लेख में घायल बच्चे की तस्वीर लगाई है और शीर्षक दिया है, “स्वीडिश बच्चे को नीली आंखों के लिए मुस्लिम आप्रवासी ने पीटा”. लेख में कहा गया है कि यह घटना स्वीडन के शहर हेल्सिंगबर्ग में हुई और “उदारवादी जजों” के चलते यह घटना घृणा अपराध के तौर पर दर्ज नहीं हुई.
इंडिया टुडे के एंटी फेक न्यूज वॉर रूम (AFWA) ने पाया कि यह आर्टिकल भ्रामक है. तस्वीर में जो बच्चा दिख रहा है वह दरअसल एक 4 साल की बच्ची की फोटो है. यूनाइटेड किंगडम के कार्डिफ में उसके घर पर ही उसे रॉटवेलर ब्रीड के कुत्ते ने काट लिया था. यह घटना 2008 की है, जब वह 4 साल की थी.
ट्विटर पर “David Vance” नाम के एक ब्लू टिक वाले यूजर ने यह भ्रामक लेख शेयर करते हुए लिखा, “क्या नीली आंखें हराम हैं?” इस ट्वीट को 8,400 लोगों ने लाइक किया है और इसे 7000 से ज्यादा बार रीट्वीट किया गया है.
Vance के ट्वीट के स्क्रीनशॉट को कुछ फेसबुक पेज और अन्य यूजर्स ने भी शेयर किया है. जब कुछ यूजर्स ने टिप्पणी की कि यह खबर फर्जी है तो Vance ने जवाब दिया कि उन्होंने “स्वीडन में एक छोटे से बच्चे पर हमले को लेकर चिंता जाहिर करते हुए ट्वीट किया है” और “लेख के साथ जो फोटो है वह इससे जुड़ी नहीं है”.Blue eyes are haram? https://t.co/PbaQ8iEAeL
— David Vance (@DVATW) December 31, 2019
Heads up. I shall say this only once.
1. I addressed the UNHRC in Geneva back in Sept 19. Thanks for asking. 2. I tweeted a story concerning the assault of a young boy in Sweden. The accompanying photo is irrelevant to that. 3. Get a life. 👋 https://t.co/E7sLtj2jbP
— David Vance (@DVATW) January 2, 2020
AFWA की पड़ताल
रिवर्स सर्च टूल की मदद से हमने पाया कि वायरल हो रही यह फोटो कई अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थानों में छप चुकी है. बीबीसी के मुताबिक, तस्वीर में घायल बच्ची दिख रही है. वह कार्डिफ की 4 वर्षीय सोफी विलिस है, जिस पर कैजर नाम के रॉटवेलर प्रजाति के कुत्ते ने हमला कर दिया था. यह घटना 2008 की है. डेली मेल ने भी इस बारे में खबर प्रकाशित की थी.
2016 में भी ऐसा ही दावा किया जा चुका है जब अंतरराष्ट्रीय फैक्ट चेक वेबसाइट “Snopes ” ने 2016 में ही इस दावे की पोल खोली थी. “Snopes” की रिपोर्ट कहती है कि बच्चे की नीली आंखों के कारण उसे एक मुस्लिम किशोर के पीटने वाली स्टोरी एक स्वीडिश न्यूजपेपर “Fria Tider ” ने 2013 में छापी थी.
“Fria Tider” के मुताबिक, एक 15 वर्षीय किशोर ने अपने साथी छात्र को आंखों के रंग को लेकर हुए मतभेद के चलते पीटा था. हालांकि, आरोपी ने दावा किया कि भाषा की जानकारी कम होने के चलते उसे भ्रम हुआ क्योंकि उसकी भाषा अरबी है. हालांकि, इस लेख में इस बात का जिक्र नहीं है कि पीटने वाला लड़का मुस्लिम अप्रवासी है या फिर दोनों के बीच हुए झगड़े में किसी को गंभीर चोट आई थी.