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फैक्ट चेक: किसान आंदोलन की सफलता को लेकर टाइम मैग्जीन ने कवरपेज पर नहीं छापी ये तस्वीर

फैक्ट चेक के दौरान हमने पाया कि सोशल मीडिया पर वायरल फोटो ‘टाइम मैग्जीन’ की असली कवर फोटो नहीं है. मैग्जीन की प्रवक्ता ने ‘आजतक’ से इस बात की पुष्टि की है.

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आजतक फैक्ट चेक

दावा
कृषि कानून वापस होने के बाद अंतरराष्ट्रीय मैग्जीन टाइम ने अपने कवरपेज पर ये फोटो लगाई और इसके जरिये भारत के किसानों की तारीफ की.
सोशल मीडिया यूजर्स
सच्चाई
ये टाइम मैग्जीन का असली कवर नहीं है. मैग्जीन की प्रवक्ता ने खुद इस बात की पुष्टि की है.

कई सोशल मीडिया यूजर ऐसा कह रहे हैं कि ‘टाइम मैग्जीन’ ने इस बार किसान आंदोलन की एक तस्वीर को अपने कवर पेज पर छापा है. मैग्जीन के एक कथित कवर को शेयर करते हुए लोग लिख रहे हैं कि ‘टाइम मैग्जीन’ ने इस कवर के जरिये भारत के किसान आंदोलन की सफलता को पहचाना है और सम्मान दिया है.

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जाहिर है, इस कवर को पीएम मोदी के कृषि कानून वापस लेने से जोड़ा जा रहा है. वायरल हो रहे कवर  में झंडा पकड़कर मुस्कुराते दो सिख युवकों की तस्वीर दिख रही है. बड़े अक्षरों में ‘TIME’ लिखा है. साथ ही, अंग्रेजी में कुछ स्लोगन भी लिखे हैं जिनका हिंदी अनुवाद है, ‘इनसानी इतिहास का सबसे बड़ा आंदोलन’, ‘2021 भारत में किसानों का साल था’. एक जगह ‘पर्सन ऑफ द ईयर’ भी लिखा हुआ है.

हमने पाया कि सोशल मीडिया पर वायरल फोटो ‘टाइम मैग्जीन’ की असली कवर फोटो नहीं है. मैग्जीन की प्रवक्ता ने ‘आजतक’ से इस बात की पुष्टि की है. हालांकि ये बात सच है कि इस साल मार्च में ‘टाइम मैग्जीन’ के इंटरनेशनल इश्यू का कवर किसान आंदोलन से जुड़ी महिलाओं पर आधारित था.

क्या है सच्चाई

हमने ‘टाइम मैग्जीन’ की वेबसाइट पर मौजूद साल 2021 के सभी अंकों के कवर देखे. इनमें कहीं भी हमें वायरल पोस्ट वाला कवर नहीं दिखा. हमें ‘टाइम मैग्जीन’ का 13 दिसंबर, 2021 को किया गया एक ट्वीट मिला जिसके मुताबिक मैग्जीन ने टेस्ला कंपनी के मालिक एलन मस्क को ‘पर्सन ऑफ द ईयर’ घोषित किया है.

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हमने पाया कि इसी साल मार्च के महीने में किसान आंदोलन में अहम भूमिका​ निभाने वाली कुछ महिलाओं की तस्वीर टाइम मैग्जीन के इंटरनेशनल कवर पर छपी थी. साथ ही, इन महिलाओं का इंटरव्यू भी छपा था.

 

अगर सचमुच मुस्कुराते सिख युवकों वाली ये तस्वीर ‘टाइम मैग्जीन’ के किसी कवर पर छपी होती तो ये यकीनन मैग्जीन की वेबसाइट या सोशल मीडिया पेजों पर मौजूद होती. इसे लेकर मीडिया में चर्चा भी होती. पर हमें ऐसा कुछ भी नहीं मिला.

कुछ दिनों पहले यह दावा पंजाबी भाषा में भी वायरल हुआ था. उस वक्त ‘न्यूजचेकर’ वेबसाइट  ने इसकी सच्चाई बताई थी.

इसी साल जनवरी में ‘नेशनल ज्योग्राफिक’ मैग्जीन के नाम पर भी एक फर्जी कवर किसान आंदोलन से जोड़कर वायरल  हुआ था. उस वक्त भी हमने इसकी सच्चाई बताई थी. पड़ताल से ये बात साफ हो जाती है कि वायरल तस्वीर टाइम मैग्जीन का असली कवर नहीं है.

 

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