
उत्तर प्रदेश में 3 मार्च को छठे और 7 मार्च को सातवें चरण का मतदान होना है. यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और पूर्व सीएम अखिलेश यादव, दोनों ही पांच चरण के मतदान के बाद अपनी-अपनी जीत का दावा कर रहे हैं.
इन कयासों के बीच सोशल मीडिया पर ‘जी न्यूज’ चैनल के लोगो वाले दो स्क्रीनशॉट वायरल हो रहे हैं. इन दोनों पर ही ‘एग्जिट पोल यूपी’ लिखा हुआ है. बस एक अंतर है. जहां पहले स्क्रीनशॉट में 227-230 सीटों के साथ सपा के यूपी चुनाव जीतने की बात लिखी है, वहीं दूसरे स्क्रीनशॉट में 210-220 सीटों के साथ बसपा के सत्ता में वापस आने का दावा किया गया है.
पहले स्क्रीनशॉट में नीचे लिखा है, ‘यूपी में अखिलेश यादव बना रहे हैं सरकार’. इसी तरह, दूसरे स्क्रीनशॉट में लिखा है, ‘यूपी में बसपा की धमाकेदार वापसी’.
दोनों ही स्क्रीनशॉट फेसबुक पर खूब शेयर किए जा रहे हैं.
हमने पाया कि सोशल मीडिया पर वायरल दोनों ही स्क्रीनशॉट एडिटिंग के जरिये बनाए गए हैं. ‘जी न्यूज’ या किसी भी न्यूज चैनल ने अभी तक यूपी चुनाव संबंधी एग्जिट पोल का प्रसारण नहीं किया है. चुनाव आयोग ने 10 फरवरी की सुबह सात बजे से 7 मार्च के शाम साढ़े छह बजे तक एग्जिट पोल पर प्रतिबंध लगाया हुआ है.
कैसे पता लगाई सच्चाई?
कीवर्ड सर्च के जरिये तलाशने पर हमें ‘जी न्यूज’ की ऐसी कोई भी एग्जिट पोल रिपोर्ट नहीं मिली जिसमें सपा या बसपा के यूपी चुनाव 2022 में जीतने की उम्मीद जताई गई हो.
हमने ‘जी न्यूज’ के एडिटर इनपुट शैलेश रंजन को वायरल स्क्रीनशॉट्स भेजे. उन्होंने ‘आजतक’ को बताया कि ये दोनों ही स्क्रीनशॉट्स फर्जी हैं. उन्होंने कहा, “जी न्यूज पर इस तरह की कोई खबर नहीं दिखाई गई है. हमारी खबरों में इस्तेमाल होना वाला फॉन्ट भी एकदम अलग है.”
वायरल स्क्रीनशॉट की तुलना ‘जी न्यूज’ की एक असली खबर के स्क्रीनशॉट से करने पर दोनों के बीच का फर्क साफ पता लग रहा है.
‘जी न्यूज’ ने 4 फरवरी को यूपी चुनाव से संबंधित ओपिनियन पोल पर रिपोर्ट प्रकाशित की थी. इसमें उम्मीद जताई गई थी कि बीजेपी 241-263 सीटें पाकर जीत हासिल करेगी.
क्या अंतर है एग्जिट पोल और ओपिनियन पोल में?
ओपिनियन पोल वोटिंग से पहले करवाया जाता है. इसमें मतदाताओं का मिजाज भांपने की कोशिश की जाती है. वहीं दूसरी ओर, एग्जिट पोल वोटिंग के बाद करवाया जाता है. इसमें सीधे वोटर्स से पूछा जाता है कि उन्होंने किसे वोट दिया है.
साल 1951 में सेक्शन 126 (A) जोड़कर एग्जिट पोल पर शिकंजा कसने का प्रावधान लागू किया गया था. इसके तहत किसी भी चुनाव के दौरान चुनाव आयोग की तरफ से तय की गई एक समय सीमा खत्म होने तक एग्जिट पोल जारी नहीं किए जा सकते. ऐसा इसलिए किया जाता है, ताकि मतदाताओं की राय प्रभावित न हो.