
अनुसूचित जाति व जनजाति (एससी-एसटी) के छात्रों को लेकर सोशल मीडिया पर एक पोस्ट तेजी से वायरल हो रही है. पोस्ट में "अमर उजाला" अखबार की एक कटिंग और योगी आदित्यनाथ की तस्वीर के जरिये ऐसा बताने की कोशिश की गई है कि उत्तर प्रदेश के निजी शिक्षण संस्थानों में एससी-एसटी छात्रों के लिए निशुल्क प्रवेश की व्यवस्था खत्म कर दी गई है. सोशल मीडिया यूजर्स इस पोस्ट के कैप्शन में कह रहे हैं कि सरकार दलित समुदाय के लोगों के अधिकार खत्म कर रही है.
साथ ही, पोस्ट में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर तंज करते हुए लिखा गया है, "ये चमार, पासी, भंगी, धोबी......SC/ ST के बच्चे पढ़ लिख गए तो हम ठाकुरों के खेतों में हल कौन चलाएगा ? इसलिए ख़त्म करो इनके सारे अधिकार".

इंडिया टुडे एंटी फेक न्यूज़ वॉर रूम (AFWA) ने पाया कि वायरल पोस्ट पूरी सच्चाई नहीं बताती. अखबार की ये कटिंग अक्टूबर 2019 की है जब योगी सरकार ने ये फैसला लिया था. ये सच है कि योगी सरकार ने निजी शिक्षण संस्थानों में एससी-एसटी छात्रों के निशुल्क प्रवेश को खत्म कर दिया था, लेकिन साथ ही ये भी कहा था कि ये शुल्क बाद में छात्रों के बैंक खातों में भेज दिया जाएगा. यूपी सराकर ने ये फैसला निजी शिक्षण संस्थानों में शुल्क भरपाई के नाम पर हो रहे फर्जीवाड़े को देखते हुए लिया था.
फेसबुक पर ये पोस्ट काफी शेयर हो चुकी है. इसमें लिखी बात को लेकर यूपी सरकार और योगी आदित्यनाथ की कड़ी आलोचना की जा रही है. वायरल पोस्ट का आर्काइव यहां देखा जा सकता है.
क्या है सच्चाई?
कुछ कीवर्ड की मदद से हमें अखबार की कटिंग में लिखी जानकरी अमर उजाला की एक वेब रिपोर्ट में मिली. ये रिपोर्ट 6 अक्टूबर 2019 को प्रकाशित हुई थी. यहां बताया गया है कि यूपी में अनुसूचित जाति व जनजाति के छात्रों को प्राइवेट संस्थानों में अब फीस देकर प्रवेश लेना पड़ेगा. सरकार ने ऐसा शुल्क भरपाई योजना में गड़बड़ियों की शिकायतें मिलने के बाद किया था.
खबर के मुताबिक, निजी शिक्षण संस्थान सरकार से प्रवेश शुल्क भरपाई की रकम हड़पने के लिए एससी-एसटी छात्रों के फर्जी एडमिशन दिखा देते थे. शिक्षण संस्थानों में 50 प्रतिशत तक छात्र फर्जी पाए गए थे. ऐसे कई मामले सामने आ चुके थे. इसी के चलते "जीरो फीस" की इस व्यवस्था को बदलकर यूपी सरकार ने शुल्क प्रतिपूर्ति व्यवस्था लागू कर दी थी.

क्या थी ये "जीरो फीस" व्यवस्था?
दरअसल, 2002-03 में केंद्र सरकार ने सरकारी, सहायता प्राप्त और निजी शिक्षण संस्थानों में एससी-एसटी छात्रों को निशुल्क प्रवेश की व्यवस्था लागू की थी. इसे यूपी में भी लागू किया गया था जिसके तहत एससी-एसटी छात्रों को शिक्षण संस्थानों में प्रवेश के लिए फीस नहीं देनी होती थी और शिक्षण संस्थानों को इस फीस की भरपाई सरकारी धन से होती थी. इस व्यवस्था को "जीरो फीस" भी कहा जाता है. लेकिन निजी शिक्षण संस्थानों द्वारा फर्जी एडमिशन दिखाने के मामले आने लगे, जिसके बाद यूपी सरकार ने ये व्यवस्था खत्म कर दी.
राज्य सरकार ने ये कदम सिर्फ निजी शिक्षण संस्थानों के लिए उठाया था, सरकारी और सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थानों में एससी-एसटी वर्ग के छात्रों को निशुल्क ही प्रवेश मिलने की बात कही गई थी.
अमर उजाला की खबर में ये साफतौर पर लिखा है कि नियमानुसार सरकार बाद में एससी-एसटी छात्रों को प्रवेश शुल्क की भरपाई या प्रतिपूर्ति करेगी. इस मामले पर कुछ और मीडिया संस्थानों ने भी खबर प्रकाशित की थी. पत्रिका की एक रिपोर्ट के मुताबिक, उस समय समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने योगी सरकार के इस फैसले पर नाराजगी व्यक्त की थी. उन्होंने कहा था कि सरकार अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के छात्रों को मुख्यधारा से वंचित कर रही है.
यहां ये साफ हो जाता है कि वायरल पोस्ट में दी गई जानकरी अधूरी है जिससे भ्रम फैल रहा है. यूपी सरकार ने निशुल्क प्रवेश या जीरो फीस को लेकर ये फैसला जरूर लिया था लेकिन इसमें छात्रों की ओर से जमा शुल्क लौटाने की व्यवस्था भी लागू की थी.