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फैक्ट चेक: उपद्रवियों ने लाल किले पर ना तो तिरंगा हटाया, ना ही खालिस्तानी झंडा फहराया

इंडिया टुडे के एंटी फेक न्यूज वॉर रूम (AFWA) ने पाया कि प्रदर्शनकारियों ने लाल किले पर जो झंडा फहराया, वह खालिस्तानी झंडा नहीं बल्कि सिखों का धार्मिक झंडा निशान साहिब था.

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आजतक फैक्ट चेक

दावा
गणतंत्र दिवस के मौके पर प्रदर्शनकारी किसानों ने लाल किले पर खालिस्तानी झंडा फहराया. ये भारत के लिए काला दिन है.
सोशल मीडिया यूजर्स
सच्चाई
लाल किले पर प्रदर्शनकारियों ने जो झंडा फहराया, वह खालिस्तानी झंडा नहीं बल्कि‍ सिखों का धार्मिक झंडा निशान साहिब है. निशान साहिब में प्रतीक चिन्ह के रूप में ‘खंडा’ (दोधारी तलवार) होता है जबकि खालिस्तानी झंडे पर ‘खालिस्तान’ लिखा होता है.

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में दो महीने से चल रहा किसानों का आंदोलन गणतंत्र दिवस के मौके पर हिंसक हो गया. इस दौरान कुछ प्रदर्शनकारियों ने लाल किले पर धावा बोल दिया और इसकी प्राचीर पर एक अपना भी झंडा फहरा दिया. इसके तुरंत बाद इंटरनेट पर झंडे को लेकर बहसें शुरू हो गईं.

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भारत के लिए इसे काला दिन बताते हुए कुछ टि्वटर और फेसबुक यूजर्स ने दावा किया कि लाल किले पर खालिस्तानी झंडा फहराया गया है. कुछ ने दावा किया कि भारतीय तिरंगे झंडे को हटाकर वहां पर किसानों से अपना झंडा फहरा दिया. हालांकि, इनमें से कई पोस्ट बाद में डिलीट कर दी गईं.

इंडिया टुडे के एंटी फेक न्यूज वॉर रूम (AFWA) ने पाया कि प्रदर्शनकारियों ने लाल किले पर जो झंडा फहराया, वह खालिस्तानी झंडा नहीं बल्कि सिखों का धार्मिक झंडा निशान साहिब था. निशान साहिब में प्रतीक चिन्ह के रूप में ‘खंडा’ (दोधारी तलवार) होता है जबकि खालिस्तानी झंडे पर ‘खालिस्तान’ लिखा होता है.

कुछ वायरल पोस्ट के आर्काइव यहां , यहां और यहां देखे जा सकते हैं.

क्या प्रदर्शनकारियों ने तिरंगा हटाया? 
ज्यादातर सोशल मीडिया यूजर्स ने समाचार एजेंसी एएनआई के वीडियो को शेयर करते हुए ऐसे दावे किए हैं. हमने एजेंसी के इस वीडियो को गौर से देखा. इस वीडियो में एक व्यक्ति एक पोल पर चढ़कर झंडा फहराता दिख रहा है. इस पोल पर कोई दूसरा झंडा नहीं था. वीडियो में वह व्यक्ति कोई झंडा हटाते हुए नहीं दिख रहा है.

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लाल किले पर सबसे ऊंचे खंभे पर जो तिरंगा पहले से झंडा फहरा रहा था, वीडियो में उसके साथ कोई छेड़छाड़ होती नहीं दिख रही है.

इस बात की पुष्टि करने के लिए हमने इंडिया टुडे की रिपोर्टर नवजोत कौर से बात की जो इस घटना के वक्त वहीं पर मौजूद थीं. नवजोत ने बताया कि उन्होंने लाल किले पर किसी को भी तिरंगा हटाते हुए नहीं देखा. उन्होंने बताया,  “एक खंभा खाली था, जिस पर एक शख्स चढ़ गया और एक झंडा फहरा दिया.”

क्या ये खालिस्तानी झंडा था? 
एएनआई वीडियो में झंडे को ज़ूम करने पर हमने पाया कि झंडे का रंग हल्का पीला है और इस पर एक 'खंडा' बना हुआ है. 'खंडा' सिख धर्म में इस्तेमाल होने वाला एक प्रतीक चिन्ह है, जिसमें दोधारी तलवार, चक्र और दो एक धार वाली तलवारें होती हैं. यह प्रतीक चिन्ह गुरु गोबिंद सिंह के समय से ही इस्तेमाल होता आ रहा है.

 

एएनआई के वीडियो में दिख रहे झंडे के बारे में और ज्यादा जानकारी के लिए इंडिया टुडे ने सिख धर्म के जानकार और दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के वरिष्ठ सदस्य हरिंदर पाल सिंह से बात की. इस घटना की निंदा करते हुए हरिंदर पाल सिंह ने बताया,  “हम लाल किले पर हुई घटना का समर्थन नहीं करते और हम मानते हैं कि लाल किले पर किसी भी धार्मिक झंडे का फहराया जाना गलत है.” 

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इसके साथ ही उन्होंने बताया कि लाल किले पर जो झंडा फहराया गया, वह खालिस्तान का झंडा नहीं बल्कि निशान साहिब है. हरिंदर सिंह ने कहा, “मैंने इसे गौर से देखा और साफ तौर पर ये निशान साहिब है जो कि सिख अध्यात्म का प्रतीक है. ये खालिस्तान का झंडा नहीं है.”

उस वक्त लाल किले पर मौजूद रहीं इंडिया टुडे की रिपोर्टर नवजोत कौर ने भी पुष्टि की कि प्रदर्शनकारियों ने जो झंडा फहराया, वह निशान साहिब ही था. उन्होंने ये भी कहा कि लाल किले पर निशान साहिब के अलावा किसानों के आंदोलन से जुड़ा एक और झंडा फहराया गया था.

क्या है निशान साहिब? 
निशान साहिब हल्के पीले रंग का झंडा है जो नानकसरियों को छोड़कर हर गुरुद्वारे में फहराया जाता है. इसे सिखों के छठवें गुरु हरगोबिंद सिंह ने शुरू किया था, जिन्होंने 17वीं सदी की शुरुआत में सिख समुदाय का सैन्यीकरण किया और मुगल सम्राट शाहजहां के खि‍लाफ अपनी पहली लड़ाई लड़ी थी. निशान साहिब के उस संस्करण में कोई प्रतीक चिन्ह नहीं था.

बाद में गुरु गोबिंद सिंह के समय में इसमें एक प्रतीक चिन्ह के रूप में ‘खंडा’ जोड़ दिया गया. निशान साहिब का रंग केसरिया या नीला भी हो सकता है. खालिस्तान के समर्थक भी अपने प्रतीक के तौर पर निशान साहिब का इस्तेमाल करते हैं.

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खालिस्तान आंदोलन 1970 के दशक में शुरू हुआ सिख अलगाववादियों का एक आंदोलन था. खालिस्तान के समर्थक जो झंडा इस्तेमाल करते हैं, उसमें आमतौर पर ‘खालिस्तान’ लिखा होता है. इसमें ‘खंडा’ हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता है. साथ ही इसका रंग भी पीला, केसरिया या नीला हो सकता है.  

 

26 जनवरी को प्रदर्शन कर रहे किसान संगठनों के अपने-अपने कई तरह के झंडे थे. सोशल मीडिया भी सवालों और जवाबों से भर गया. प्रदर्शन स्थल पर जितने झंडे दिख रहे थे, हम उनमें से प्रत्येक की तस्दीक नहीं कर सकते. लेकिन लाल किले पर जिस झंडे को लेकर सबसे ज्यादा विवाद छिड़ा है, उसके बारे में ये कहा जा सकता है कि लाल किले पर जो झंडा फहराया गया वह खालिस्तान का नहीं बल्कि सिखों का धार्मिक झंडा निशान साहिब है. इसके अलावा, घटना के दौरान तिरंगे झंडे को भी अपनी जगह से नहीं हटाया गया था.

अपडेट: 26 जनवरी को ये स्टोरी प्रकाशि‍त होने के बाद सोशल मीडिया पर कई और वीडियो ये दावा करते हुए सामने आए कि लाल किले पर खालिस्तानी झंडा फहराया गया था. हम इस बात को स्पष्ट करते हैं कि इस स्टोरी में हमने सिर्फ एक वीडियो विशेष की जांच की है, जिसमें एक आदमी को पोल पर चढ़ते और लाल किले पर झंडा फहराते दिखाया गया है. ये स्टोरी दूसरे किसी वीडियो या झंडे के बारे में नहीं है.

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