पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर करीब दो महीनों से हिंसा की आग में जल रहा है. इसी बीच सोशल मीडिया पर एक वीडियो काफी वायरल हो रहा है. इसमें देखा जा सकता है कि लोगों के एक समूह को कुछ लोग दौड़ा-दौड़ा कर पीट रहे हैं. ऐसा कहा जा रहा है कि ये नजारा मणिपुर का है जहां आदिवासियों ने बीजेपी नेताओं को पीटा.
मिसाल के तौर पर, एक ट्विटर यूजर ने इसे शेयर करते हुए लिखा, "मणिपुर में कई दिनों से हिंसा जारी है उसी के बीच ये वीडियो सामने आया है जिसमे आदिवासी क्षेत्र में भाजपा नेता बिन परमीशन के घुसे तो लोगो ने लातों और जूतों से पीटा, गो बैक गो बैक के नारे भी लगाए."
फेसबुक पर भी कई लोग इसे मणिपुर में बीजेपी नेताओं पर हमला बता रहे हैं. आज तक फैक्ट चेक ने पाया कि ये वीडियो करीब छह साल पुराना है और पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग में हुई एक घटना से संबंधित है.
कैसे पता लगाई सच्चाई?
वायरल वीडियो के कीफ्रेम्स को रिवर्स सर्च करने पर हमें छह अक्टूबर, 2017 को आउटलुक में छपी एक रिपोर्ट मिली. इस रिपोर्ट के मुताबिक, ये घटना पश्चिम बंगाल के शहर दार्जिलिंग का है. भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष जब दशहरे के समारोह में हिस्सा लेने गए थे, तब दार्जिलिंग की स्थानीय पार्टी गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएम) के कार्यकर्ताओं ने उन पर और उनके साथियों पर हमला बोल दिया था.
इस घटना के बाद जीजेएम ने ये बात मानी थी कि उन्हीं के कार्यकर्ताओं ने दिलीप घोष और उनके काफिले पर हमला किया. वहीं जीजेएम नेता विनय तमांग ने हमले की निंदा करते हुए कहा था कि बीजेपी ने गोरखालैंड मुद्दे पर दार्जिलिंग के लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है.
वहीं, दिलीप घोष ने इस हमले के तार सत्ताधारी पार्टी तृणमूल कांग्रेस से जुड़े होने का अंदेशा जताया था. घोष ने उस वक्त बयान दिया था, "इस हमले की योजना पहले से बनाई गई थी. मुझे लगता है कि इसकी जड़ें कोलकाता से जुड़ी हैं. प्रशासन और पुलिस सिर्फ मूकदर्शक बने रहे और हमारे समर्थकों को पीटा गया, मेरे साथ दुर्व्यवहार किया गया. घटना के लेकर मैंने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है."
हमें एबीपी न्यूज और एनएमएफ न्यूज के यूट्यूब चैनलों पर अपलोड किया गया इस हमले का वीडियो भी मिला. अक्टूबर 2017 में द इंडियन एक्सप्रेस और नवभारत टाइम्स जैसी वेबसाइट्स ने भी इस घटना के बारे में रिपोर्ट्स छापी थीं.
क्या है गोरखालैंड का मुद्दा?
दरअसल, दार्जिलिंग, कालिंपोंग और पश्चिम बंगाल के उत्तरी क्षेत्र में रहने वाले नेपाली भाषी गोरखालैंड नाम का एक अलग राज्य चाहते हैं. इस मांग को लेकर बंगाल के पहाड़ी इलाकों में कई बार हड़ताल और खूनी विरोध प्रदर्शन हो चुके हैं. ये मांग सन 1907 से चली आ रही है. तभी से बंगाल की सियासत कई बार इस मुद्दे को लेकर गरमा चुकी है. हालांकि अभी तक इसका कोई स्थायी समाधान नहीं निकला है.
(रिपोर्ट- ऋद्धीश दत्ता)