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Explainer: कितना खतरनाक है West Nile fever, जिससे केरल में पहली मौत हुई है?

What is West Nile Fever: केरल में 47 साल के एक व्यक्ति की वेस्ट नाइल फीवर से मौत हो गई. ये बीमारी मच्छरों के जरिए इंसान में फैलती है. ये बीमारी सबसे पहले 1937 में सामने आई थी.

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मच्छरों से इंसान में फैलता है वेस्ट नाइल वायरस. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
मच्छरों से इंसान में फैलता है वेस्ट नाइल वायरस. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • 1937 में सामने आया था इसका पहला मामला
  • 150 में से 1 संक्रमित को होती है गंभीर बीमारी
  • अपने आसपास सफाई रख बचा जा सकता है इससे

What is West Nile Fever: केरल में टोमैटो फ्लू (Tomato Flu) के बाद अब वेस्ट नाइल वायरस (West Nile Virus) भी फैलने लगा है. केरल में 47 साल के एक व्यक्ति की वेस्ट नाइल फीवर (West Nile Fever) से मौत हो गई है. इस वायरस से केरल में तीन साल बाद कोई मौत हुई है. इससे पहले 2019 में एक 6 साल के बच्चे की मौत भी इसी फीवर से हुई थी. 

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न्यूज एजेंसी ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि जिस व्यक्ति की इससे मौत हुई है, उसमें 17 मई को बुखार और दूसरे लक्षण दिखने शुरू हुए थे. लक्षण सामने आने के बाद कई अस्पतालों में इलाज कराने के बाद उन्हें थ्रिसूर के सरकारी मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया था, जहां उनकी मौत हो गई.

वेस्ट नाइल फीवर से मौत होने के बाद हेल्थ डिपार्टमेंट भी अलर्ट पर आ गया है. इसके बाद एक मेडिकल टीम को भी उस जगह भेजा गया है, जहां वो व्यक्ति रहता था. यहां सैम्पल लिए जा रहे हैं. चूंकि ये वायरस मच्छरों से फैलता है, इसलिए मच्छर पैदा होने वाली जगहों को खत्म किया जा रहा है. 

केरल की स्वास्थ्य मंत्री वीना जॉर्ज ने बताया कि मच्छरों को पैदा होने से रोकना होगा. हर किसी को इसकी जिम्मेदारी लेनी होगी और अपने आसपास सफाई रखनी होगी. ड्रेनेज और जमे हुए पानी को साफ करना होगा.

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क्या है ये वेस्ट नाइल वायरस?

- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, वेस्ट नाइल का पहला मामला 1937 में सामने आया था. तब युगांडा की रहने वाली एक महिला इससे संक्रमित हुई थी.

- 1953 में उत्तरी मिस्र के नाइल डेल्टा रीजन में पक्षियों में इस वायरस की पहचान हुई थी. तब कौओं और कबूतरों में ये वायरस मिला था. 

-  1997 से पहले तक इस वायरस को पक्षियों के लिए ज्यादा खतरनाक नहीं माना जाता था, लेकिन इसके बाद इजरायल में इस वायरस का एक खतरनाक स्ट्रेन सामने आया था, जिससे कई पक्षियों की मौत हो गई थी.

- विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, 50 साल में कई देशों में इस वायरस से इंसानों के संक्रमित होने के मामले सामने आ चुके हैं.

इंसानों में कैसे फैलता है ये वायरस ?

- आमतौर पर इस वायरस के इंसान में फैलने की वजह मच्छरों को माना जाता है. ये वायरस पक्षियों में फैलता है. ये वायरस पक्षियों से होते हुए मच्छरों तक और मच्छरों से इंसानों में आता है.

- मच्छर जब किसी संक्रमित पक्षी को काटते हैं तो ये वायरस उनमें आ जाता है और जब यही संक्रमित मच्छर इंसानों को काटते हैं तो इससे इंसान संक्रमित हो जाते हैं. हालांकि, कई बार दूसरे जानवरों से भी इंसानों में संक्रमण फैलने का खतरा रहता है.

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- कई बार ऑर्गन ट्रांसप्लांट, ब्लट ट्रांसफ्यूजन और ब्रेस्ट मिल्क से भी ये वायरस फैल सकता है. अब तक मां से बच्चे में इस वायरस के फैलने का एक मामला सामने आया है.

- हालांकि, अभी तक इंसान से इंसान में इस वायरस के फैलने का कोई मामला सामने नहीं आया है. संक्रमितों का इलाज करने वाले डॉक्टरों में ये नहीं फैलता है. 

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क्या हैं इसके लक्षण?

- WHO के मुताबिक, इस वायरस की चपेट में आने वाले 80 फीसदी से ज्यादा संक्रमितों में कोई लक्षण नहीं दिखते हैं. बाकी 20 फीसदी संक्रमित वेस्ट नाइल फीवर के शिकार हो जाते हैं.

- वेस्ट नाइल फीवर होने पर बुखार, सिरदर्द, थकान, उल्टी और कभी-कभी त्वचा पर लाल चिकत्ते पड़ जाते हैं. 150 संक्रमितों में से सिर्फ 1 में ही इसके गंभीर लक्षण दिखते हैं.

- गंभीर बीमारी होने पर तेज बुखार, सिरदर्द, गर्दन में अकड़न, कंपकंपी, ऐंठन, मांसपेशियों में कमजोरी और पैरालिसिस हो सकता है.

- इस वायरस से संक्रमित होने के बाद किसी भी उम्र के लोगों में गंभीर बीमारी हो सकती है. हालांकि, 50 साल से ज्यादा उम्र के लोग और ट्रांसप्लांट करवा चुके लोगों को ज्यादा खतरा होता है.

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क्या है इसका इलाज और कैसे बचें?

- अभी इंसानों के लिए इस वायरस से बचने की कोई वैक्सीन नहीं है. बुखार होने पर और वायरस की पुष्टि होने के बाद इलाज किया जा सकता है. 

- इस वायरस से बचने के लिए जरूरी है कि अपने आसपास साफ-सफाई रखें और मच्छरों को पनपने न दें. 

- एनिमल-टू-ह्यूमन ट्रांसमिशन को रोकने के लिए जरूरी है कि बीमार जानवरों का इलाज करते समय ग्लव्स या प्रोटेक्टिव कपड़े पहनकर रखें.

- इसके अलावा अगर कहीं ये वायरस फैल रहा है, तो वहां ऑर्गन ट्रांसप्लांट करने से पहले लैब में उसकी जांच कर ली जाए.

 

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