आज के समय में आत्महत्या के कई मामले देखने को मिल रहे हैं. कोई जॉब के प्रेशर में अपनी जान दे रहा है तो वहीं कुछ लोग अपने दैनिक जीवन से परेशान होकर सुसाइड जैसा घातक कदम उठा लेते हैं. जीवन में किसी ना किसी मोड़ पर हर व्यक्ति खुद को हताश महसूस करने लगता है. मनचाहे नंबर न आने पर बच्चे निराश हो जाते हैं, नौकरी न मिलने पर युवाओं को जीवन बोझ लगने लगता है और ब्रेकअप के बाद प्रेमी अकेलेपन से भागने लगते हैं. ऐसी बहुत सी परिस्थितियां हैं, जब व्यक्ति परेशान होकर आत्महत्या का कदम उठाने की कोशिश करता है. दरअसल, ये दबाव उनके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने लगता है.
मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक, आत्महत्या के विचार का मन में आना बायपोलर डिसऑर्डर को दर्शाता है. ये डिप्रेशन और मेजर डिप्रेशन में से किसी एक समस्या का कारण बनने लगता है. मानसिक बीमारियों से ग्रस्त लोगों को इसका सबसे ज्यादा सामना करना पड़ता है. बता दें कि हर साल 10 सितंबर को world suicide prevention day मनाया जाता है, जिसका मकसद लोगों को आत्महत्या के विचारों से मुक्त करके हर समस्या का मजबूती से सामना करने के लिए तैयार करना है. इस दिन लोगों को जागरूक करने के लिए कार्यक्रम, वर्कशॉप्स और कैम्प्स लगाए जाते हैं.
आत्महत्या के लिए ये कारण हैं जिम्मेदार
1. डिप्रेशन का शिकार- क्रॉनिक डिप्रेशन के कारण आत्महत्या का विचार मन में पनपने लगता है. व्यक्ति मायूस महसूस करता है और हर समस्या के लिए खुद को जिम्मेदार मानने लगता है. इससे ऐसे लोग छोटी सी बात को बड़ा रूप देकर चिल्लाने लगते हैं.
2. लंबी शारीरिक बीमारियों से ग्रस्त- वे लोग जो लंबे वक्त से किसी शारीरिक बीमारी के शिकार हैं, वे खुद को असहाय मानने लगते हैं. अन्य लोगों की उनके प्रति दया की भावना उनकी परेशानी का कारण बनने लगती है. दूसरों पर अपने कार्यों के लिए निर्भर होने के चलते वे सुसाइड की कोशिश करने लगते हैं.
3. नशा करने वाले लोग- अल्कोहल, स्मोकिंग और नशा करने वाले अधिकतर लोग सुसाइड की कोशिश करते हैं. दरअसल, अत्यधिक नशा शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है. इससे गुर्दे और फेफड़े समेत अन्य शारीरिक अंग प्रभावित होते हैं.
4. इंपल्सिव पर्सनैलिटी- हर बात पर गुस्सा करना और खुद को सही समझने वाले व्यक्ति पर्सनैलिटी डिसऑर्डर का शिकार होते हैं. इंपल्सिव पर्सनैलिटी डिसऑर्डर भी आ्त्महत्या का कारण बन जाता है.
आत्महत्या के विचारों को ऐसे करें कंट्रोल
1. संकेतों की पहचान करें- तनाव के कारण कुछ लोगों के मन में हर पल मरने का ख्याल रहता है. इसके चलते व्यक्ति खुद को बोझिल, निराश और परेशान महसूस करता है. बहुत से लोग खुद को आइसोलेट कर लेते हैं और खानपान की आदतों में भी बदलाव आने लगता है. सोशल सर्कल का कम होना तनाव और एंग्जाइटी को दर्शाता है. ऐसे में इन संकेतों की पहचान करके किसी एक्सपर्ट से जरूर सलाह लेनी चाहिए.
2. लोगों से मिले जुलें- बढ़ती समस्याओं से निराश होने की जगह अन्य लोगों से बातचीत करें और उन्हें अपनी समस्या के बारे में बताएं. इससे मानसिक स्वास्थ्य सही रहता है और समस्या का हल भी मिलने लगता है. ऐसे लोग जो अन्य लोगों से जुड़े रहते हैं, उनमें आत्महत्या के विचारों का खतरा कम होने लगता है. सप्ताह के अंत में आउटिंग के लिए जाएं और वर्कप्लेस पर भी लोगों से मेलजोल जरूर बढ़ाएं.
3. सेल्फ केयर पर ध्यान दें- अन्य लोगों की बातों को मन में बैठाकर उसके बारे में चिंता करने की जगह अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का ख्याल रखें. इससे व्यक्ति खुद को एक्टिव और हेल्दी महसूस करता है. साथ ही आत्महत्या जैसे विचारों से दूरी बनी रहती है. शरीर को हाइड्रेट रखें और पौष्टिक आहार लें. इसके अलावा व्यायाम के लिए समय निकालें. इससे शरीर में हैप्पी हार्मोन रिलीज होते है, जो नकारात्मक विचारों को कम कर देता है.
4. मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें- अगर मन में बार-बार ऐसे विचार उठ रहे हैं, तो उन्हें दबाने की अपेक्षा साइकोलॉजिस्ट से मिलें और कारणों को जानने का प्रयास करें. कई बार लंबे वक्त से चला आ रहा डिप्रेशन इस समस्या का कारण बनने लगता है. इसके लिए थेरेपी लें और डॉक्टर के अनुसार दवाओं का भी सेवन करें.