हाल ही में नेटफ्लिक्स में '13 रीज़न्स व्हाइ' नाम की एक सीरीज आई थी. इसमें एक टीनेजर लड़की की काल्पनिक कहानी है. वो लड़की अपनी जान लेने के बाद टेप पर 13 मीडिया रिकॉर्डिंग छोड़ती है. इसमें किसी जीवन के अंत को बहुत विस्तार से चित्रित किया गया है. इसका असर ये हुआ कि सीरीज के बाद अमेरिका में टीनेजर लड़कियों के सुसाइड केस अचानक बढ़ गए. ये चौंकाने वाला था.
इस सीरीज की पटकथा ही अकेला उदाहरण नहीं है. मनो चिकित्सा के क्षेत्र में इससे बहुत पहले वेर्थर इफेक्ट नाम से टर्म खोज लिया था. इस इफेक्ट में ये दिखाया गया कि कैसे आत्महत्या की घटना की सूचनाओं को लोगों तक पहुंचाया जाता है. सुसाइड प्रिवेंशन पॉलिसी पर काम कर रहे वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि कोटा में जिस तरह आत्महत्या की घटनाओं का पैटर्न देखने को मिल रहा है, उसमें यह कहना अनुचित नहीं होगा कि इसमें कहीं न कहीं वेर्थर इफेक्ट काम कर रहा है. इन घटनाओं पर सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म जैसे व्हाट्सऐप, फेसबुक, इंस्टाग्राम से लेकर मेन स्ट्रीम मीडिया खबरें दिखा रहा है. वो सुसाइड प्रिवेंशन के पैमाने पर खरी नहीं उतर रहीं.
कहां से आया वेर्थर इफेक्ट टर्म
ncbi की स्टडी के मुताबिक इस शब्द की उत्पत्ति गोएथे के 1774 के उपन्यास 'द सॉरोज़ ऑफ यंग वेर्थर' से हुई. उपन्यास उनके अपने जीवन के एक प्रेम प्रसंग पर आधारित था. उपन्यास के कथानक में वेर्थर नाम के एक लड़के को एक ऐसी महिला से प्यार हो जाता है जिससे वह शादी नहीं कर सकता. वो लड़की उच्च वर्ग से थी और उसकी पहले से ही सगाई हो चुकी थी. इस सबसे हारकर वेर्थर अपनी जान ले लेता है. यह उपन्यास छपकर जब यूरोप में रिलीज हुआ तो आत्महत्याओं का जैसे एक सिलसिला चल पड़ा. इन मामलों में इस बात के पुख्ता सबूत थे कि इस किताब ने कई व्यक्तियों को उनके अंतिम कदम उठाने में प्रभावित किया था. आत्महत्या करने वालों में से कुछ ने वेर्थर की तरह ही कपड़े पहने हुए थे. यही नहीं, कुछ ने वेर्थर की तरह ही अपनी जान लेने के लिए पिस्तौल का इस्तेमाल किया था. वहीं कुछ लोगों की सुसाइड प्लेस पर उपन्यास की एक प्रति मिली थी. इन सभी युवाओं के जीवन की समस्या भी वेर्थर से मिलती जुलती थी. इस घटना के कुछ साल बाद ही वेर्थर इफेक्ट टर्म के साथ इस तरह के कंटेंट के प्रस्तुतीकरण का आत्महत्या के केसेज में प्रभाव पर विश्लेषण किया.
कोटा से कैसा है कनेक्शन
डॉ सत्यकांत कहते हैं कि अगर आप हाल के दिनों में कोटा में सुसाइड केसेज के पैटर्न का विश्लेषण करें तो इनमें से ज्यादातर वो छात्र हैं जो कुछ दिन पहले ही यहां आए. इनके सुसाइड का तरीका भी एक दूसरे से काफी मिलता जुलता है. अब अगर इसमें वेर्थर इफेक्ट को लेकर बात की जाए तो एक ही जगह अगर सुसाइड केसेज में सेम पैटर्न है तो कहीं न कहीं सुसाइडल टेंडेसी से जूझ रहे या वैसी ही समस्याओं से दो चार हो रहे युवाओं तक आत्महत्याओं का जस्टिफिकेशन और इसे करने के तरीके की पूरी सूचना पहुंच रही है. डॉ सत्यकांत आगे कहते हैं कि जब कोई व्यक्ति आत्महत्या के विचारों से परेशान होता है, उसे अपने जैसे लोगों के साथ हुई घटनाएं प्रेरित करती हैं. जब आसपास का संचार तंत्र इन घटनाओं को ऐसे पेश करता है, मानो आत्महत्या करने वाले व्यक्ति के साथ उसकी पूरी सहानुभूति है. उसके जीवन की घटनाओं का विश्लेषण भी बढ़ा-चढ़ाकर किया जाता है. इस तरह की सूचनाएं सुसाइडल टेंडेंसी वाले लोगों को एक अनकहा संदेश भेजती हैं. उन्हें लगता है कि एक यही रास्ता है जब उनकी समस्याओं के बारे में बात की जाएगी. उनको समझा जाएगा.
सूचनाएं और वेर्थर इफेक्ट...
आत्महत्या की घटनाओं का सनसनीखेज तरीके से प्रस्तुतीकरण और उसके बाद आत्महत्या की दर में वृद्धि का अध्ययन सबसे पहले मनोचिकित्सक फिलिप्स द्वारा किया गया था. उन्होंने अपने अध्ययन में पाया कि उन महीनों में आत्महत्या की दर अधिक बढ़ी जब अमेरिकी प्रेस में आत्महत्या पर पहले पन्ने पर लेख छपे. उसकी तुलना में जब ऐसे कोई लेख नहीं छपे तब घटनाओं में कमी आई. तभी उन्होंने 'वेर्थर इफेक्ट' शब्द गढ़ा. फिलिप के अध्ययन के बाद से ऐसे कई अध्ययन हुए जिन्होंने सूचनाओं के प्रस्तुतीकरण और बढ़ती घटनाओं की पुष्टि की.
प्रेरित करता है पैपेजेनो इफेक्ट
मनोवैज्ञानिकों ने आगे शोधों में पाया कि वेर्थर इफेक्ट के ठीक उलट काम करता है पैपेजेनो इफेक्ट(Papageno effect). सर गंगाराम हॉस्पिटल दिल्ली के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ राजीव मेहता कहते हैं कि जिस तरह वेर्थर इफेक्ट का असर नकारात्मक प्रभाव देता है, वहीं इसका सकारात्मक पहलू इस इफेक्ट के अंतर्गत देखा गया. पहले आप समझिए कि ये पैपेजेनो इफेक्ट है क्या? किस घटना के संदर्भ में पैपेजेनो इफेक्ट गढ़ा गया. बता दें कि पैपेजेनो मोजार्ट के एक ओपेरा 'द मैजिक फ्लूट' का एक पात्र है. अपने हालातों के चलते वो आत्मघाती हो जाता है. उसे अपने सच्चे प्यार पैपेजेना को खोने का डर है. अब वो अपनी जान लेने की सोचता है. ओपेरा के दृश्यों में जब वो अपनी जान लेने ही वाला होता है कि तभी उसके तीन दोस्त आते हैं. वो उसे जीवन जीने की जिजीविषा देते हैं. उससे बातचीत करते हैं. फिर वो अपना निर्णय बदल देता है. ये ओपेरा एक सकारात्मक संदेश देता है.
डॉ राजीव मेहता कहते हैं कि आत्महत्या की घटनाओं को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना जैसे सुसाइड का तरीका बताना, उसके हालातों पर चर्चा करना आदि चीजें सुसाइडल विकार वाले लोगों को प्रेरित करती हैं. वहीं, अगर आत्महत्या की सूचना के साथ ऐसे लोगों की कहानियां प्रचारित हों जिन्होंने कठिन समस्याओं का सामना किया. उन्होंने मृतक व्यक्ति जैसे या उससे खराब हालात होने पर भी आत्महत्या का विकल्प नहीं चुना.
जयपुर के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ अनिल शेखावत कहते हैं कि आत्महत्या की घटनाएं जब आप व्हाट्सऐप पर शेयर कर रहे हैं तो इससे पहले कई बार सोचें. इससे कहीं ज्यादा जरूरी है कि आप ऐसी सूचनाओं के साथ हेल्पलाइन नंबरों और सुसाइड प्रिवेंशन के तरीकों को प्रमुखता से साझा करें. ऐसे में सुसाइडल टेंडेंसी से जूझ रहे लोगों के सामने भी नये विकल्प खुलते हैं.