scorecardresearch
 

कोविड: Blood washing का सहारा ले रहे हैं लोग, पीछा नहीं छोड़ रहा Long covid

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, अधिकांश लोग जो कोरोनो से पीड़ित होते हैं, वे पूरी तरह से तो ठीक हो जाते हैं, लेकिन दुनिया भर के मेडिकल साक्ष्य बताते हैं कि लगभग 10 से 20 फीसदी लोग ऐसे होते हैं जो इस बीमारी से ठीक होने के बाद भी लंबे समय तक इस बीमारी के लक्षणों और प्रभावों से मुक्त नहीं हो पाते हैं.

Advertisement
X
प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर
स्टोरी हाइलाइट्स
  • ब्रिटेन की मेडिकल जर्नल में छपी रिपोर्ट
  • खून से निकाले जाते हैं थक्का जमाने वाले तत्व
  • 10 से 20 फीसदी लोग लॉन्ग कोविड की चपेट में

कोरोना के खतरे से दुनिया अब भी सुरक्षित नहीं हुई है. साल 2020 और 2021 में जो कोरोना से पीड़ित हुए उनमें से दुनिया में कई ऐसे लोग हैं जो इस बीमारी का दुष्प्रभाव अब तक झेल रहे हैं. मेडिकल की भाषा में इसे लॉन्ग कोविड  (Long Covid) कहा जाता है. लॉन्ग कोविड, कोविड की वो अवस्था है जहां मरीज इस बीमारी से ठीक होने के बावजूद इसके लक्षणों से हफ्तों या महीनों तक प्रभावित रहते हैं. ऐसे लोगों को मानसिक और शारीरिक समस्या लगातार होती रहती है. 

Advertisement

ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार ऐसे लोग अब इलाज के तौर पर ब्लड वाशिंग (Blood washing) का सहारा ले रहे हैं. एजेंसी के अनुसार इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इलाज का कोई विकल्प नहीं होने के कारण, यह आश्चर्य की बात नहीं है कि लोग 'Blood washing' जैसी अप्रमाणित इलाज की ओर जा रहे हैं. ब्रिटेन में लॉन्ग कोविड से प्रभावित लोग विदेशों की यात्रा कर रहे हैं और इलाज की इस महंगी पद्धति को अपना रहे हैं. 

कोरोना के लिए प्रयोग के तौर पर इस्तेमाल की जा रही इस इलाज की पद्धति का मेडिकल नाम Apheresis हैं. आम भाषा में कहें तो इस इलाज में शरीर से सारा खून निकाल लिया जाता है और फिर इसे 'फिल्टर' किया जाता है.  

इस उपचार की पद्धति में जब रक्त एक centrifuge में तेजी से घूमता है, तो यह परतों में अलग हो जाता है. फिर आप या तो खास तत्वों को फ़िल्टर कर सकते हैं या कुछ परतों को हटा सकते हैं. या फिर इसे आप अपनी इच्छानुसार या डॉक्टरों की सलाह के आधार पर दूसरे लिक्विड से बदल सकते हैं. इसके बाद इसी रक्त को दूसरी नस के माध्यम से शरीर में वापस कर दिया जाता है.

Advertisement

Apheresis के जरिए इलाज कुछ बीमारियों में कारगर हो सकता है. जैसे Sickle cell disease. जहां लाल रक्त कोशिकाओं को आसानी से हटा लिया जा सकता है. इसके अलावा ये तकनीक ल्यूकेमिया में भी कारगर है. इसमें मरीज अपने खून का सफेद रक्त कोशिकाओं को स्थायी रूप से हटा सकता है या फिर स्वस्थ डोनर से मिले सफेद रक्त कोशिकाओं को अपने खून में ले सकता है. 

लॉन्ग कोविड के उपचार के रूप में Apheresis की सलाह दी जाती है. इसके सूजन और थक्के जमाने के लिए जिम्मेदार तत्वों को फिल्टर कर दिया जाता है. हालांकि इस बीमारी के इलाज में ये तकनीक कितनी कारगर है ये साबित होना अभी बाकी है. इसके अलावा अभी ये भी स्पष्ट नहीं हुआ है कि क्या इलाज के इस तरीके में कोई खतरा नहीं है. फिर भी सोशल मीडिया में चल रही चर्चाओं की वजह से उपचार की इस तकनीक से काफी ध्यान खींचा है. विशेषज्ञों का मानना है कि ब्लड वाशिंग को चिकित्सा पद्धति के तौर पर अपनाने से पहले और ज्यादा रिसर्च और ट्रायल की जरूरत है. 

10 से 20 फीसदी कोविड पीड़ितों पर लंबे समय तक असर 

इस बीच 22 जुलाई को संसद में भारत के स्वास्थ्य राज्य मंत्री भारती प्रवीण पवार ने कहा कि दुनिया भर के प्रमाण बताते हैं कि जिन लोगों को कोरोना हुआ है उनमें से 10 से 20 फीसदी लोग ऐसे हैं जिनपर मिड से लेकर लॉन्ग टर्म तक कोरोना का असर रह सकता है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 21 अक्टूबर, 2021 को पोस्ट-कोविड सीक्वेल के प्रबंधन के लिए व्यापक राष्ट्रीय दिशानिर्देश जारी किए थे. 

Advertisement

लॉन्ग कोविड के लक्षणों में थकान, सांस लेने में तकलीफ या सांस लेने में कठिनाई, याददाश्त में कमी, एकाग्रता या नींद की समस्या, लगातार खांसी, सीने में दर्द, बोलने में कठिनाई, मांसपेशियों में दर्द, गंध या स्वाद की कमी, अवसाद या चिंता और बुखार शामिल हो सकते हैं. 
 

 

Advertisement
Advertisement