दुनिया में मंकीपॉक्स के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. 75 देशों तक यह वायरस फैल चुका है. भारत में भी इसके चार मामले सामने आ चुके हैं. अब इन बढ़ते मामलों के बीच लोगों के मन में यह सवाल है कि क्या कोरोना की तरह मंकीपॉक्स की भी कोई वैक्सीन आने वाली है? क्या एक बार फिर दो डोज के फेर में फंसना पड़ेगा? आजतक ने इस पर कई एक्सपर्ट से बात की है और सरकार का भी रुख समझने की कोशिश की.
केंद्र सरकार ने साफ कर दिया है कि अभी के लिए मंकीपॉक्स के लिए कोई टीकाकरण अभियान शुरू नहीं किया जाएगा. उसने जोर देकर कहा है कि मंकीपॉक्स की मृत्युदर कम है और ये ज्यादा तेजी से नहीं फैलता है. इसी वजह से अभी के लिए टीकाकरण के बजाए सावधानी बरतने पर ज्यादा जोर दिया जाएगा.
स्मॉल पॉक्स की वैक्सीन काफी असरकारी
डॉक्टर चंद्रकांत लहारिया ने बताया कि स्मॉल पॉक्स की वैक्सीन मंकीपॉक्स के केस में भी इस्तेमाल में लाई जा सकती है. वह कहते हैं कि स्मॉल पॉक्स के खिलाफ जो सेकेंड और तीसरे जनरेशन की वैक्सीन है, वो मंकीपॉक्स होने पर इस्तेमाल की जा सकती है.
वहीं डॉ. Ishwar Gilada ने भी आजतक से बातचीत में बताया कि स्मॉल पॉक्स की वैक्सीन ही मंकीपॉक्स के खिलाफ भी असरदार साबित हो सकती है.
स्मॉल पॉक्स की वैक्सीन लगवा चुके लोग सुरक्षित!
डॉ. ईश्वर गिलाडा कहते हैं कि जिन भी लोगों को स्मॉलपॉक्स की वैक्सीन लगी थी, उनको मंकीपॉक्स से भी 85 फीसदी तक सुरक्षा मिल जाती है.
डॉ. ईश्वर ने बताया कि विज्ञान में यह साबित हो चुका है कि जो पॉक्स वायरस होते हैं, वो एक दूसरे के खिलाफ ही सुरक्षा प्रदान करते हैं. इसी वजह से स्मॉल पॉक्स की वैक्सनीन भी मंकीपॉक्स के खिलाफ इस्तेमाल में लाई जा सकती है.
अमेरिका के पास स्मॉल पॉक्स वैक्सीन की तकनीक
डॉ. चंद्रकांत के मुताबिक वर्तमान में भारत के पास स्मॉल पॉक्स की सेकेंड और थर्ड जनरेशन की वैक्सीन प्रोड्यूस करने की क्षमता नहीं है. ऐसे में सिर्फ टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के जरिए वैक्सीन का इंतजाम किया जा सकता है.
डॉ. ईश्वर ने बताया कि MVA-BN और LC-16 जैसी वैक्सीन मंकीपॉक्स के खिलाफ असरदार साबित हो सकती हैं, लेकिन भारत के पास वर्तमान में इन वैक्सीन की टेक्नोलॉजी नहीं है. इस समय सिर्फ अमेरिका के पास स्मॉल पॉक्स की वैक्सीन है. भारत को वो वैक्सीन मंगवानी पड़ेगी.
बड़े स्तर पर नहीं पड़ेगी वैक्सिनेशन की जरूरत
वैसे जानकार तो ये भी मान रहे हैं कि मंकीपॉक्स में बड़े स्तर पर टीकाकरण की जरूरत नहीं पड़ने वाली है. उन लोगों को वैक्सीन की ज्यादा जरूरत रहने वाली है जो या तो इस वायरस से संक्रमित हो चुके हैं या फिर जो इसकी चपेट में आ सकते हैं.
इस रणनीति के तहत अगर टीकाकरण अभियान चलाया जाता है तो इसे रिंग वैक्सीनेशन कहा जाता है. स्मॉल पॉक्स के खिलाफ इसी प्रक्रिया के तहत टीकाकरण किया गया था.