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कोविड-19 (COVID-19) के डेल्टा वैरिएंट (Delta variant) और ओमिक्रॉन वैरिएंट (Omicron variant) के केस बढ़ने के साथ ही भारत में रिकवरी रेट भी लगभग 93 प्रतिशत तक पहुंच गया है. संक्रमित मरीज लगातार ठीक भी हो रहे हैं, लेकिन उनमें से कुछ लोगों में कोरोना के हल्के या मध्यम लक्षण दिख रहे हैं. एक्सपर्ट बताते हैं कि कोरोना से रिकवर होने के बाद भी कोरोना के लक्षण 4 सप्ताह से अधिक समय तक बने रह सकते हैं. जिसमें थकान, लगातार खांसी, सांस की तकलीफ, ब्रेन फॉग और एंग्जाइटी आदि हो सकते हैं.
संक्रमित होने के बाद जब कोई रिकवर हो जाता है और रिपोर्ट नेगेटिव आ जाती है, तो उसके बाद भी कुछ लोगों में कोरोना के लक्षण लंबे समय तक दिखते हैं, उसे लॉन्ग कोविड (Long COVID) कहा जाता है. लॉन्ग कोविड के बारे में काफी समय से चर्चाएं चल रही हैं. इसके बारे में पता लगाने के लिए शोधकर्ताओं की एक टीम 2-3 महीने तक 200 से अधिक मरीजों के संपर्क मेें रही, जिनकी COVID की नेगेटिव रिपोर्ट आ चुकी थी. इस दौरान उन्होंने कुछ ऐसे जैविक कारकों की पहचान की, जो यह अनुमान लगाने में मदद कर सकते हैं, किसी व्यक्ति में लॉन्ग कोविड के लक्षण क्यों दिखते हैं या लॉन्ग कोविड किन कारणों से होता है?
लॉन्ग कोविड के मामले रोकने में मिल सकती है मदद
शोधकर्ताओं ने पाया कि इन जैविक कारकों (Biological factors) और लॉन्ग कोविड के बीच एक संबंध होता है. रिसर्च के निष्कर्ष से लॉन्ग कोविड के मामलों को रोकने या फिर उनका इलाज करने के तरीके में मदद मिल सकती है.
सैन फ्रांसिस्को में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ऑफ मेडिसन डॉ स्टीवन डीक्स (Dr. Steven Deeks) जो कि इस रिसर्च में शामिल नहीं थे, उन्होंने कहा कि यह रिसर्च लॉन्ग COVID के लिए पहला पुख्ता प्रयास है. उनके अलावा अन्य एक्सपर्ट ने कहा कि यह कारण काफी रिसर्च के बाद सामने आए हैं, लेकिन इसे पूरी तरह सत्यापित करने के लिए और अधिक रिसर्च की आवश्यकता होगी.
लॉन्ग कोविड के 4 कारक
रिसर्चर्स ने आगे बताया कि हमने 4 कारकों पहचान की है. उनमें से पहला कारक संक्रमण की शुरूआत में आने वाला कोरोनावायरस आरएनए (Coronavirus RNA) लेवल है, जो कि संक्रमित व्यक्ति के खून में वायरस की मात्रा बताता है.
दूसरा कारक कुछ एंटीबॉडीज हैं, जो शरीर के गलत ऊतकों पर हमला करती हैं. यह हमला वैसा ही होता है जैसा ह्रदय, फेफड़े, हड्डियों के जोड़, त्वचा, दिमाग और किडनी, गठिया से संबंधित बीमारियों में होता है, जिसे ल्यूपस (Lupus) कहा जाता है.
तीसरा कारक एपस्टीन बार वायरस वायरस का एक्टिव होना है. एप्सटीन-बार वायरस (Epstein–Barr virus) वह होता है, जिसमें व्यक्ति का इम्यून सिस्टम ही उसको नुकसान पहुंचाने लगता है और उसे थकान, बुखार आना, वजन घटना, भूख न लगना, गले में सूजन जैसी समस्याएं होने लगती हैं. इसका इलाज संभव है और इसका असर 1 से 2 हफ्तों तक रह सकता है.
चौथा और आखिरी कारक है टाइप 2 डायबिटीज (Type 2 diabetes). यानी जिन लोगों को डायबिटीज होते है, उसके पैशेंट में भी लॉन्ग कोविड के जोखिम को बढ़ जाते हैं.