उन्हें परदे पर देखते हुए तीन पीढिय़ां जवान हुई हैं. उनके काम को मिली पहचान और फिल्मों की फेहरिस्त काफी लंबी है. उन्होंने कल्ट से लेकर ब्लॉकबस्टर फिल्में दी हैं. 1980 के दशक का बड़ा हिस्सा और समूचा 1990 का दशक उनके नाम रहा है. वे हमेशा अपने डांस के लिए जरूरी गरिमा और खास अंदाज से बनी-बनाई छवि को तोड़ती रही हैं. अब 46 वर्षीया बेमिसाल माधुरी दीक्षित डेढ़ इश्किया के साथ फिर बड़े परदे पर जादू बिखेरने आ रही हैं. इस बार उनके साथ 27 वर्षीया हुमा कुरैशी हैं. हुमा का फिल्मी सफर अभी शुरू ही हुआ है, लेकिन दुनिया भर में सराही गई गैंग्स ऑफ वासेपुर और आलोचकों को पसंद आई लव-शव ते चिकन खुराना तथा एक थी डायन से उन्होंने लोकप्रियता हासिल की है. 10 जनवरी को रिलीज होने वाली अभिषेक चौबे निर्देशित डेढ़ इश्किया के प्रमोशन के दौरान दोनों ने कुछ समय निकालकर इंडिया टुडे की संवाददाता अस्मिता बख्शी से परदे पर आधुनिक स्त्री और अंतरंगता पर विस्तार से बातचीत की.
जब आप पहली बार मिलीं तो एक दूसरे के बारे में क्या सोचती थीं?
माधुरी: मैंने गैंग्स ऑफ वासेपुर देखी तो मुझे लगा, 'यह तो अच्छी है. यह ऐक्ट्रेस है कौन?’ फिर डेढ़ इश्किया में ऐक्टिंग के लिए हुमा को साइन किया गया. हम शेमारू स्टुडियो में स्क्रिप्ट देखने पहुंचे. वे प्लात्जो में थीं और एकदम साधारण अंदाज में. वे मेरी ओर देख रही थीं और नजरें टकराने का इंतजार कर रही थीं.
हुमा: मुझे यकीन ही नहीं हो पा रहा था कि ये माधुरी दीक्षित हैं!
माधुरी: लेकिन शूटिंग शुरू हुई तो मैं इनसे काफी प्रभावित हुई. मुझे ये तेज और सुंदर लगीं.
हुमा: मुझे नहीं मालूम कि मैम के बारे में ऐसा क्या कहूं जो पहले नहीं कहा गया है. वे वाकई मुकम्मल अदाकारा हैं. अब मैं यह भी जान पाई कि वे बेहतर इंसान भी हैं. इतनी लोकप्रियता के बावजूद उनकी विनम्रता मेरे दिल को छू गई.
आप दोनों के बीच सेट पर क्या बातचीत होती थी और कैसी बॉडिंग थी?
माधुरी: फिल्म में हम अपराध में एक साथ हैं. हम सेट पर खुसुर-फुसुर करती थीं और हर कोई असुरक्षित हो जाता था. हम उसके पापा के रेस्तरां से लेकर....तमाम चीजों पर बतियाती थीं.
हुमा: (माधुरी से) आपके बच्चे किस तरह से धमाल करते हैं...
माधुरी: वे बहुत ही शरारती हैं. हम फिल्म निर्माण के बारे में भी बातें करते थे, पहले कैसे हुआ करता था और अब क्या नजारा है. आजकल काफी बदल गया है. हम लोग मेरे उन गीतों के बारे में भी बातें करते थे जो इन्हें (हुमा को) पसंद हैं.
हुमा: इनके साथ काम करना बड़ा आसान है. (माधुरी से) पहले दिन मैं काफी हैरत में थी. मैं सामान्य बने रहने की कोशिश कर रही थी. अक्सर जब मैं किसी की मौजूदगी से उत्तेजित हो जाती हूं तो सामान्य बने रहने की अतिरिक्त कोशिश करती हूं. वे मेरे लिए हालात और मुश्किल बना सकती थीं लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. सेट पर हर कोई उन्हीं की ओर देख रहा था, वे सुपरस्टार हैं लेकिन वे सामान्य थीं. मैं उनसे यही सीखना चाहती हूं.
आप 1990 के दशक के सिनेमा और आज के दौर में क्या बड़ा फर्क देखती हैं?
माधुरी: अब ऐसी कोई सीमा रेखा नहीं रह गई है कि यह कमर्शियल फिल्म है और यह आर्ट फिल्म. मुझे याद है जब मैंने मृत्युदंड की थी तो खूब हल्ला मचा था. लोग पूछ रहे थे कि मैं आर्ट फिल्म क्यों कर रही हूं और तब मैं कहती थी कि 'ऐसा क्या हो गया, यह भी फिल्म ही है.’ मुझे खुशी है कि अब ये बातें पुराने दौर की हो गई हैं. अब, बस यही रह गया है कि यह अच्छी फिल्म है और यह अच्छी नहीं है. असल में फिल्म तो फिल्म है, उसे खाकों में क्यों बांटा जाए?
आप सहमत हैं कि इन वर्षों में महिला पात्रों में एकदम नयापन नजर आता है?
माधुरी: मुझे लगता है कि अब स्त्री पात्र सिर्फ पीडि़त या बदला लेने वाली ही नहीं रह गई हैं. वे सामान्य इंसान हैं. वाकई इससे ताजगी का एहसास होता है.
हुमा: वे गुडिय़ा नहीं हैं. पहले औरतों पर फिल्में रोना-धोना या मौत को लेकर होती थीं. खुशनुमा कहानियां नहीं होती थीं. वे मजबूत औरत की कहानियां नहीं होती थीं. वह गृहिणी या बेगम हो सकती थी, अब वह कुछ भी हो सकती है. असल जीवन के करीब. आज आप सौतेली मां हैं तो जरूरी नहीं कि बुरी ही हों. जब मैं फिल्में देखती थी उस समय औरत या तो बेहद खूबसूरत होती थी या फिर हताशा-निराशा के गर्त में डूबी हुई. आज आपके पास विकल्प सीमित नहीं हैं. यह अच्छे दौर का संकेत है.
आप आज की हीरोइनों और 20 साल पहले की प्रमुख अभिनेत्रियों में क्या फर्क देखती हैं?
हुमा (मुस्कारते हुए): आज भी उनके लिए खूबसूरत होना जरूरी है.
माधुरी: पहले डांस काफी अहम था. आपको हर मामले में मुकम्मल होना पड़ता था. आज आप कह सकती हैं, 'मुझे डांस अच्छा नहीं आता’, फिर भी कामयाब हो सकती हैं. आपको सिर्फ अच्छी ऐक्टिंग आनी चाहिए. हुमा बहुत अच्छी हैं. वे आज की खांटी लड़की हैं. डांस तो आप सीख सकती हैं और मुझे पूरा यकीन है कि ये वे फिल्म करेंगी जिसमें हिंदी फिल्मों की मुकम्मल हीरोइन हों.
हुमा: हां, मैं कोशिश करूंगी कि मेरी अगली फिल्म डांस मूवी हो.
माधुरी: तुम्हें करना चाहिए. यह जरूरी भी है.
हुमा से क्या फायदा मिला और आपने फिल्म के लिए एक-दूसरे की किस तरह मदद की?
माधुरी: उन्होंने सहजता और चीजों को आगे बढ़ाने के लिए जोश भरने का काम किया. उनका मुनिया का किरदार काफी जटिल है. आप कतई अंदाजा नहीं लगा सकते कि वह क्या करने वाली है. उन्होंने कैरेक्टर में रहस्य के टच को बखूबी पिरोया है. इसमें ऐसी कोई बात नहीं थी कि कौन लीड सीन करेगा या कौन बाजी मारेगा क्योंकि उस समय कैरेक्टर बेअसर हो जाते.
हुमा: हम एक-दूसरे का ध्यान रखते थे कि कौन क्या कह रहा है. इस तरह हमारे बीच दोस्ताना रिश्ता बन गया.
आज फिल्मों में अंतरंगता अलग ढंग से दिखाई जा रही है. यह असल जिंदगी के काफी करीब है, 1990 के सांकेतिक गानों जैसी नहीं रही है. क्या यहां तक आने में लंबा वक्त लगा है?
माधुरी: दर्शक भी नए दौर के हैं. आज समाज पहले से ज्यादा खुल गया है. अब मल्टीप्लेक्स हैं और आप जिस दर्शक वर्ग को चाहें, उसके लिए फिल्म बना सकते हैं. यानी कोई फिल्म बच्चों के लिए हो सकती है तो कोई पूरे परिवार के लिए या फिर वयस्कों के लिए.
हुमा: परदे पर अंतरंगता दिखाना थोड़ा पेचीदा मामला है. अगर आप उसे सुंदर बना सकें तो बेहतर है वरना वह अच्छा नहीं भी लग सकता है. मैं खासकर असहज महसूस करती हूं क्योंकि आपको दूसरों पर कुछ ज्यादा ही भरोसा करना पड़ता है. इस फिल्म में अंतरंगता के कई दृश्य हैं लेकिन ऐसे नहीं हैं कि दस साल बाद मुझे उन्हें देखकर झिझकना पड़े या अपने पोते-पोतियों से कहना पड़े कि फिल्म न देखना. आज हमारे डायरेक्टर किसी विषय को संभालना बेहतर जानते हैं. यह उत्तेजक नहीं हैं.
माधुरी की विनम्रता प्रेरित करती है: हुमा कुरैशी
हुमा कुरैशी कहती हैं कि माधुरी दीक्षित परफेक्ट एक्ट्रेस है. उनकी विनम्रता प्रेरित करती है. हुमा और माधुरी ने की आधुनिक स्त्री और अंतरंगता पर विस्तार से बातचीत.

अपडेटेड 6 जनवरी , 2014
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