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गुजरात के सूबेदार का अब दिल्ली दांव

गुजरात में बीजेपी बड़ी जीत की ओर बढ़ रही है. ऐसे में देश के सबसे ताकतवर मुख्यमंत्री तीसरी लहर पर सवार होकर अपने असल लक्ष्य की ओर अग्रसर हैं.

नरेंद्र दामोदरदास मोदी
नरेंद्र दामोदरदास मोदी
अपडेटेड 4 नवंबर , 2012

मध्य गुजरात स्थित सुदूर देहात बालासिनोर की एक सुबह. देश का सबसे लोकप्रिय नेता आग उगलने से पहले अपना गला साफ  कर रहा है और पृष्ठभूमि में डायनासोर जीवाश्मों का पार्क इस क्षण को एक अनचाहे प्रतीक में तब्दील किए दे रहा है. मंच पर स्थानीय हस्तियां मौजूद हैं जिनमें ज्यादातर मुसलमान हैं. इनके बीच ढल चुके ऐश्वर्य की पहचान बेगम फरहत भी नमूदार हैं, जो इलाके के पूर्व नवाब की बेगम हैं.

अपने चाहने वालों के लिए नरेंद्र दामोदरदास मोदी यहां ‘गुजरात के शेर’ हैं. लाल गुलाब की पंखुडिय़ों से लदी विशाल मालाओं और तोहफों से लदे वे भावविभोर हैं और भीड़ उनका सिंहनाद सुनने को बेचैन है. केसरिया पगड़ी और नीले कुर्ते के बेजोड़ मेल से सजे मोदी वाकई गरजते हैं. वे बिल्कुल योद्धा जान पड़ते हैं, फिर इससे क्या फर्क पड़ता है कि वे नवरात्र के उपवास में आज नौवें दिन भी सिर्फ पानी पर हैं और पांच किलो वजन कम कर चुके हैं. मुंह खोलने से पहले वे एक घूंट पानी गटकते हैं. अगले एकाध घंटे में वे कई और ग्लास पानी पी जाएंगे और ऐसी आग उगलेंगे कि उनके विरोधी इसमें जल-भुनकर राख हो जाएं. इन भाषणों का असर इतना जहरीला होता है कि उनके चाहने वालों का वश चले तो वे इसके शिकार विरोधियों की बची-खुची राख को जीवाश्मों वाले पार्क में दफना आएं. वे किसी का तुष्टीकरण नहीं बल्कि सबका फैसला करते हैं.

आज मोदी एक महिला के साथ इंसाफ नहीं करेंगे. वे उनका तुष्टीकरण करने के मूड में भी नहीं दिख रहे. उनके प्रति वे उदार दिखना तक नहीं चाहते. सोनिया बहन—जैसा कि वे हमेशा कहते हैं, सोनिया गांधी कभी नहीं—उनके लिए निंदा का प्रतीक हैं. वे उनका नाम लेकर विकास की अपनी सियासत के बरअक्स कांग्रेस के खोखले वादों को उधेड़ देने की ख्वाहिश रखते हैं. विकास की वह सियासत, जो आज देशभर में चर्चा में है.Narendra Modi

मोदी पूछते हैं, ‘सोनिया बहन जब राजकोट आईं थीं तो उन्होंने कई वादे किए. क्या आपको लगता है कि वे वादे पूरे हुए?” उत्साही भीड़ एक स्वर में बोल उठती है, ‘‘नहीं.’’ फिर वे अगला सवाल करते हैं, ‘‘आपने डॉ. मनमोहन सिंह का नाम सुना है? उनके आठ साल के राज ने भारत का क्या हाल किया है? कांग्रेस ने बिचौलियों के राज को संस्थागत रूप दे दिया है. आखिर भारत वैसा विकास क्यों नहीं कर सकता जैसा गुजरात ने किया है? क्या आप यही चाहते हैं कि आपके प्यारे राज्य को भ्रष्टाचार की घुन लग जाए?” भीड़ एक बार फिर एक स्वर में उनके मनमाफिक जवाब देती है क्योंकि यह एक आदर्श मोदी छाप चुनावी रैली है जो संवाद के सूत्रों से मिलकर बनी है. इसमें मोदी एक उपदेशक हैं, दूत हैं, धर्म प्रचारक हैं, विक्रेता हैं और जाहिर है, मनोरंजन का साधन भी. उनकी दिलचस्पी गुजरात के अलावा अन्य किसी चीज में नहीं है क्योंकि उनके मुताबिक, ‘‘उनका न कोई बेटा है, न ही दामाद.”

इसके बावजूद 182 सीटों वाले गुजरात विधानसभा चुनाव में मोदी की ताकत के पीछे गुजरात नहीं, समूचा भारत है. वे गुजरात के किसी नेता को अपने तंज के लायक मानते ही नहीं, न ही गुजरात उनके लिए देश के किसी भी अन्य राज्य के जैसा है. आज हिंदुत्व से कहीं ज्यादा लोकप्रिय हो चुके मोदीत्व नामक विचार की परिभाषा में वह नेतृत्व और सुशासन का पर्याय है. ये दो ऐसे तत्व हैं जिनकी सोनिया बहन के भारत में घोर कमी है.

मोदी के चुनाव प्रचार की जमीन भले गुजरात हो, लेकिन उनका आह्वान हमेशा राष्ट्रीय होता है. वह इस रूप में कि मोदी भारत के लिए आदर्श नेतृत्व हैं. जैसा कि इंडिया टुडे-ओआरजी का जनमत सर्वेक्षण भी दिखाता है, इस मॉडल नेतृत्व को भारी समर्थन मिल रहा है.

सर्वेक्षण के मुताबिक, बीजेपी 128 सीटों के साथ चुनावों में कांग्रेस का सफाया करने जा रही है, जो 2007 के मुकाबले 11 सीटें ज्यादा है. कांग्रेस का पतन तय है (2007 की 59 सीटों से इस बार 11 सीटें कम होंगी). उसके पास मोदी के सामने टिकने लायक न तो कोई नेता है और न ही कोई नारा. मोदी के रंगमंच पर आने के बाद से गुजरात का हर चुनाव उन पर जनमत संग्रह साबित हुआ है. 2002 का चुनाव दंगों की पृष्ठभूमि में हुआ. उस समय विकास एजेंडे पर नहीं था. 2007 आते-आते वे अपनी छवि बदल चुके थे. विकास उनका प्रिय शब्द बन चुका था. 2012 में भी एजेंडा विकास है, लेकिन लक्ष्य ऊंचा है—मैं जो गुजरात में कर सकता हूं वह दिल्ली के नेता पूरे देश के लिए क्यों नहीं कर सकते.Narendra Modi

दिल्ली में भी उनके जैसा एक भी नेता नहीं है, इस बात को कहते वक्त वे बेहद सतर्क होते हैं और राष्ट्रीय बदलाव के नायक के तौर पर खुद को सामने रखने में बेहद विनम्र भीः ‘‘आज भारत में नेता, नीति और नीयत की कमी है.” हेलिकॉप्टर से गांधीनगर वापस जाते वक्त वे इंडिया टुडे से ऐसा कहते हैं. हमने पूछा कि आखिर वे उस नेता की जगह क्यों नहीं लेना चाहते, तो उनका जवाब सपाट होता है कि गुजरात में उनका काम अभी पूरा नहीं हुआ है, ‘‘मैं गुजरात को अधिकतर विकसित देशों से ज्यादा विकसित बनाना चाहता” (बातचीत).

जनमत सर्वेक्षण में मोदी साफ विजयी बनकर उभर रहे हैं. गुजरात के 56 फीसदी मतदाता उन्हें भारत का अगला प्रधानमंत्री देखना चाहते हैं और इस मामले में राहुल गांधी से वे काफी आगे बने हुए हैं. उनकी अपनी पार्टी के प्रतिद्वंद्वी जैसे सुषमा स्वराज, नितिन गडकरी और अरुण जेटली सर्वेक्षण में दहाई भी पार नहीं कर पाए हैं और मोदी के मुकाबले अप्रासंगिक हो चुके हैं. जैसा कि सर्वेक्षण दिखाता है, मोदी की लोकप्रियता उनके विकास के रिकॉर्ड (उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि) और भ्रष्टाचार के दाग से मुक्त एक ईमानदार छवि (उनकी सबसे बड़ी ताकत) से मिलकर बनी है.

मोदी बदलाव की जो इबारत लिख रहे हैं, उसे राजनैतिक संदर्भ में रख कर देखें तो तस्वीर और साफ नजर आएगी. मसलन, दिल्ली में मनमोहन सिंह आर्थिक सुधारों के अपने आखिरी दांव के बावजूद अब आधुनिकता के प्रतीक नहीं रह गए हैं, बल्कि इसके उलट वे ठहरे हुए भारत का प्रतीक बन गए है क्योंकि उनके दौर में ही भारत भ्रष्टाचार और राजनैतिक गैर-जवाबदेही के दलदल में धंसता चला गया है. आज अंतरराष्ट्रीय प्रकाशनों के आवरण और संपादकीय पृष्ठों पर भारत के आधुनिक चेहरे के रूप में मोदी को जगह मिल रही है.

ब्रिटेन उनका सबसे ताजा प्रशंसक बनकर उभरा है, जिसने 2002 के बाद से गुजरात को काली सूची में डाल रखा था. गांधीनगर में मोदी के साथ एक बहुप्रचारित बैठक के बाद हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में ब्रिटेन के उच्चायुक्त ने कहा कि मोदी और ‘बाइब्रेंट गुजरात’ के साथ रिश्ता कायम करना ब्रिटेन के राष्ट्रीय हित में है.

भारतीय कॉर्पोरेट जगत का एक प्रभावशाली तबका पहले ही देश के प्रधानमंत्री के तौर पर सबसे योग्य उम्मीदवार के रूप में उन पर मुहर लगा चुका है. बची उनकी अपनी पार्टी, तो उसके भीतर सभी उनके सामने बौने नजर आ रहे हैं क्योंकि मोदी इकलौते नेता हैं जो जमीनी स्तर से लेकर बोर्डरूम तक अपील करते हैं और यह सब एक ऐसे वक्त में हुआ है जब खुद पार्टी अध्यक्ष अपनी साख बचाने के लिए जूझ रहा है (नितिन गडकरी पर रिपोर्ट).

अहमदाबाद स्थित एक आउटसोर्सिंग कंपनी मोटिफ के संस्थापक और सीईओ कौशल मेहता कहते हैं, ‘‘मोदी जैसा साफ-सुथरा व्यक्ति यदि प्रधानमंत्री बन जाता है तो एक राष्ट्र के रूप में भारत के लिए यह बिल्कुल अनूठा अनुभव होगा. मुझे पूरा भरोसा है कि वे प्रधानमंत्री बनेंगे.” गुजरात नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के बिमल एन. पटेल के मुताबिक, मोदी ‘‘आज तक पैदा हुए महानतम गुजराती हैं.” संयुक्त राष्ट्र के साथ विधि विशेषज्ञ के तौर पर काम कर चुके पटेल मानते हैं कि ‘‘आज गांधीनगर में रहना पश्चिमी यूरोप के किसी भी स्थान पर रहने के बराबर का अनुभव है.”Narendra Modi

हो सकता है कि ऐसी प्रशंसा गुजराती वैभव के भाव से जन्मी हो, लेकिन जैसा कि जनमत सर्वेक्षण भी रेखांकित करता है, एक प्रशासक के तौर पर मोदी का उभार ऐसे तीन गुणों पर टिका है जो मौजूदा भारतीय राजनीति में दुर्लभ हैः ईमानदारी, आर्थिक मोर्चे पर सकारात्मक नतीजे देना और युवाओं का भविष्य सुनिश्चित करने के संदर्भ में ऐसी विश्वसनीयता जो आज भारत के किसी भी नेता को मयस्सर नहीं है. समृद्धि का यह मोदीवादी सूचकांक चुनाव प्रचार से नहीं उपजा है, आंकड़े भी इसकी ताकीद करते हैं.

कुछ आंकड़ों पर नजर डालें. मोदी के नेतृत्व में गुजरात ने चीन की तरह दोहरे अंकों में वृद्धि की है. पिछले 10 साल के दौरान राज्य में कृषि क्षेत्र ने 10.97 फीसदी की दर से वृद्धि की, जो भारत में सर्वाधिक है. राज्य के सारे शहरों और तकरीबन सभी गांवों में चैबीसों घंटे बिजली आती है. अहमदाबाद के करीब उन्होंने जो ऑटोमोबाइल औद्योगिक केंद्र स्थापित किया है, वह सफलता की कहानी बन चुका है. इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि अधिकतर मतदाता मानते हैं कि 2012 के चुनावी नतीजे विकास के मुद्दे से तय होंगे और अधिकतर लोगों के लिए राज्य में हुए औद्योगिकरण ने बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर पैदा किए हैं.

इतना सब कहने के बावजूद ध्यान देने वाली बात है कि 2002 में नफरत का जो उद्योग यहां लगाया गया था, उसका असर अब तक पूरी तरह गायब नहीं हुआ है. यह बात अलग है कि 60 फीसदी मतदाता मोदी को दंगों का जिम्मेदार नहीं मानते. लेकिन मुसलमानों के बीच वे अब भी अलोकप्रिय हैः 61 फीसदी मुस्लिम उन्हें वोट नहीं करेंगे, 50 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम मानते हैं कि पिछले पांच साल में मोदी ने उनके साथ समान बरताव नहीं किया जबकि 55 फीसदी ऐसे मुस्लिम हैं जिनका कहना है कि मोदी अगर दंगों के लिए माफी मांग लें तब भी वे उन्हें वोट नहीं देंगे.

मोदी, जिनकी कोई भी रैली मुस्लिम टोपियों के बगैर पूरी नहीं होती, चुनाव विश्लेषण की विश्वसनीयता को ज्यादा तवज्जो नहीं देते. इंडिया टुडे  से उन्होंने कहा, ‘‘मैं वोट बैंक की राजनीति नहीं करता. छह करोड़ गुजराती मेरे परिवार के लोग हैं.”Narendra Modi

करीब दो साल तक अदालती फैसले के कारण राजनैतिक वनवास पर रहे मोदी के सबसे अहम सिपहसालार अमित शाह आजकल अपनी वापसी पर फूले नहीं समा रहे. इंडिया टुडे से बातचीत में वे मोदी जैसी कूटनीतिक जबान नहीं बोल पाते. शाह कहते हैं, ‘‘मोदी को भूल जाइए, बीजेपी को ही मुस्लिम कभी स्वीकार नहीं कर सकते.”

मोदी के राजनैतिक आभामंडल को घेरे किस्सों पर विश्वास करें तो गांधीनगर के लोग मोदी के अलावा यदि किसी की सराहना करते हैं तो वे अकेले शाह हैं. अपने नेता के पीछे खड़े होने की बारी आती है तो शाह कोई घालमेल नहीं करते, ‘‘नेहरू के बाद सबसे बड़े वक्ता... प्रधानमंत्री के तौर पर मोदी का विकल्प ही नहीं है. यह तो होना ही है.” ऐसा कब होगा, इस बारे में वे कुछ नहीं कहते. उन्हें सबसे ज्यादा गुस्सा उन लोगों पर आता है जिन्होंने उनके आका को बदनाम करके जनता की धारणाओं के साथ खिलवाड़ किया है. वे कहते हैं, ‘‘वे उन्हें हिटलर कैसे कह सकते हैं? लोकतंत्र में जो छूट मिली हुई है, मोदी उसका सबसे बड़ा शिकार हैं. इतना ही नहीं, कुछ लोग नाइंसाफी और तुष्टीकरण के प्रति उनकी सख्ती को उनकी आक्रामकता के तौर पर प्रचारित कर रहे हैं. कम-से-कम हम लोगों की धारणा को बदलने के लिए उसके साथ समझौता नहीं कर सकते और जब वे 2002 के दंगों के जिम्मेदार हैं ही नहीं, तो भला वे माफी क्यों मांगें?”

इसके बावजूद अहमदाबाद के कांग्रेस कार्यालय में चले जाएं तो आपको हर कोई मोदी को कोसता मिलेगा. नगर निकाय में विपक्ष के नेता बदरुद्दीन शेख के लिए ‘‘मोदी एक शैतान है और उसके नाम से ही मुसलमानों को डर लगता है.” गांधीनगर में सत्ता परिवर्तन को लेकर आश्वस्त राज्य कांग्रेस के मुखिया अर्जुन मोढ़वाडिया कहते हैं कि ‘‘गुजरात में राज्य प्रायोजित हत्याकांड” के कारण ‘‘उन्होंने अपने दोस्त और साथी खो दिए हैं.”

मोदी द्वारा बहुप्रचारित मुस्लिम समर्थन की पोल खोलते हुए मोढ़वाडिया इंडिया टुडे को बताते हैं कि सूचना के अधिकार के तहत उन्होंने पता किया है कि एक जिला प्रशासक ने बीजेपी कार्यकर्ताओं के बीच बांटने के लिए 10,000 मुस्लिम टोपियां खरीदी थीं. मोदी के सहृदय स्पर्श को राजनैतिक नाटक करार देते हुए वे दावा करते हैं, ‘‘मोदी की प्रचार रैली में मुस्लिम टोपी पहने सारे लोग जरूरी नहीं कि मुस्लिम हों. मेरे पास सबूत तो नहीं, लेकिन मैं आपको बता सकता हूं कि बीजेपी बुर्का भी बांटती है.” बालासिनोर में मोदी को आने का न्योता बेगम फरहत ने दिया था जो खुद बुर्का नहीं पहनती हैं.

वे इंडिया टुडे से कहती हैं, ‘‘वक्त आ गया है कि मुस्लिम समुदाय 2002 को पीछे छोड़ दे. वे जब छह करोड़ गुजरातियों के कल्याण की बात करते हैं, तो किसी भी होशमंद को उसमें खोट नहीं दिखनी चाहिए.”

सियासत के बाजार में मोदी बेस्टसेलिंग विचार हैं. एक ऐसा विचार जो सपाट आख्यानों को चुनौती देता है, जो भारत के मानस में पैठने का कोई मौका नहीं चूकता. मोदी प्रेरणा हैं, मोदी धमकी हैं. वे जितनी आसानी से सराहना पाते हैं, उतनी ही सहजता से उत्तेजित भी करते हैं. जिस शख्स को अधिकतर भारतीय अपना अगला प्रधानमंत्री देखना चाहते हों, उसका खयाल अतिवादी भावनाएं पैदा करता है. हालांकि उनके चाहने वाले भी एक बात तो मानते हैं कि मोदी की भावनाएं उतनी पारदर्शी नहीं हैं, शायद यही वजह है कि उन्हें लोगों की प्रशंसा तो मिलती है, लेकिन प्यार नहीं मिलता.

जैसा कि उनके चाहने वाले एक सीईओ कहते हैं, ‘‘उनकी छवि को दुरुस्त किए जाने की जरूरत है.” यह भी तो हो सकता है कि भारतीय राजनीति की लहरों की सबसे तेज सवारी करने वाला शख्स अपनी आखिरी मंजिल पर“पहुंचने के बाद अपने जज्बात को जाहिर करे.