उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के एक पिछड़े निर्धन परिवार में जन्मे राम शकल सिंह पटेल गरीबी और संघर्षों के कारण खुद अविवाहित रहे, लेकिन अब उन्होंने सैकड़ों जोड़ों का दहेज रहित विवाह करवाकर समाज की कुरीतियों के खिलाफ एक जंग-सी छेड़ दी है और कन्या भ्रूणहत्या को रोकने का संकल्प लिया है जिसके लिए वे 10,000 युवक-युवतियों की सेना बनाकर मुहिम छेड़ेंगे.
78 वर्षीय रामशकल का जन्म आजमगढ़ के देवरांचल में हुआ, जहां हर वर्ष सैकड़ों घर घाघरा नदी की विनाशकारी बाढ़ में डूब जाते हैं. निर्धनता के कारण वे महज कक्षा आठ तक ही पढ़ाई कर पाए, लेकिन उन्होंने इस निरक्षर क्षेत्र को दर्जनों शिक्षण संस्थान दिए हैं. 1967 में उन्होंने चंदा मांगकर उर्दिहा में पटेल इंटर कॉलेज की स्थापना की. 1976 में इसी इलाके के टेकनपुर में प्राथमिक पाठशाला का निर्माण करवाया. फिर 1987 में छत्रपति शिवाजी बालिका विद्यालय रोहुआर में और 1992 में कृष्णा पटेल महाविद्यालय रोहुआर, वैदोली में स्थापित किया.
इसके बाद उन्होंने दहेज हत्या और भ्रूणहत्या जैसी कुरीतियों को खत्म करने के लिए दहेज रहित सामूहिक विवाह कराने का संकल्प लिया. उन्होंने 2 दिसंबर, 2001 को एक बड़े समारोह का आयोजन कर 101 जोड़ों का दहेज रहित विवाह कराया जिसमें प्रदेश के तमाम जिलों के अलावा मुंबई, गुजरात और दिल्ली के लोगों ने भागीदारी की.
इस कार्यक्रम के बाद फैली जागरूकता से उनका उत्साहवर्धन हुआ और फिर 2002 में उन्होंने 501 जोड़ों की दहेज रहित शादी कराई. अब तक 11 वर्षों में वे लगभग 5,000 जोड़ों का विवाह करवा चुके हैं. सामूहिक विवाह में शामिल सभी जोड़ों को उन्होंने यह संकल्प भी दिलवाया कि वे दहेज की कुरीति को मिटाने के लिए अपने-अपने इलाके में जागरूकता अभियान चलाएंगे. इस सामूहिक विवाह में वर-वधू को राम शकल खुद वस्त्र, बरतन, जेवर, आदि देते हैं.
इस आयोजन में हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध धर्मों के युवक-युवतियों की शादी उनके धर्मों के गुरुओं की उपस्थिति में उनके रीति-रिवाज से कराई जाती है. 2006 के सामूहिक विवाह समारोह में शामिल दंपती रुद्रसेन और सुषमा पटेल कहते हैं, ‘‘हमारी खुशहाली की वजह रामशकल हैं. वे हमारे पिता और अभिभावक हैं.’’ आजमगढ़ के डीएम प्रांजल यादव भी उनका सम्मान करते हैं. वे कहते हैं, ‘‘उनका काम सराहनीय और अनुकरणीय है. उन्होंने समाज की कुप्रथाओं को मिटाने का संकल्प लिया है. भ्रूणहत्या के खिलाफ शुरू हुई मुहिम में मैं खुद गया था. हमारे समाज को ढेर सारे राम शकल की जरूरत है.’’
उन्होंने इस लड़ाई को अपने जीवन का मकसद इसलिए बनाया है क्योंकि खुद उन्हीं के शब्दों में, ‘‘समाज की कुप्रथाओं को दूर करके ही उज्ज्वल भारत का निर्माण हो सकता है.’’