
मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत की अगुआई में गोवा सरकार ने 1 सितंबर से हर महीने हर घर को 16,000 लीटर पानी मुफ्त देने का वादा किया है. इससे करीब तीन लाख परिवारों को पानी का एक भी पैसा नहीं देना पड़ेगा, मगर राज्य सरकार को हर महीने 11.5 करोड़ रुपए के राजस्व की चपत लगेगी. यह बिल्कुल पहली बार है जब गोवा में सरकार ने लोगों मुफ्त रेवड़ी बांटी है, जो याद दिलाता है कि चुनाव करीब हैं.
गोवा फरवरी 2022 में नई सरकार चुनेगा. लिहाजा राज्य की तमाम पार्टियां सियासी हमसफर को तलाश में जुट गई हैं. भाजपा भांपने में लगी है कि महाराष्ट्र गोमांतक पार्टी (एमजीपी) उसके साथ आने को कितनी तैयार है, वहीं तमाम निगाहें कांग्रेस और गोवा फॉरवर्ड पार्टी (जीएफपी) के बीच संभावित गठबंधन पर लगी हैं. जीएफपी इच्छुक दिखाई देती है, पर कांग्रेस अपनी फितरत के मुताबिक लेटलतीफी में फंसी है.
जीएफपी के अध्यक्ष विजय सरदेसाई दावा कर रहे हैं कि उन्हें कांग्रेस के गोवा प्रभारी दिनेश गुड्डू राव ने बताया है कि पार्टी आलाकमान ने गठबंधन की मंजूरी दे दी है, वहीं राज्य कांग्रेस अध्यक्ष गिरीश चोडांकर के मुताबिक राज्य के नेताओं को अभी ऐसी कोई सूचना नहीं मिली है. इस बीच बेसब्र सरदेसाई ने चार सीटों मेंड्रम, हल्डोना, सेंट आंद्रे और थिविम से जीएफपी के उम्मीदवारों की घोषणा भी कर दी.
वे कहते हैं, ''कांग्रेस को गणेश चतुर्थी (10 सितंबर) तक गठबंधन के बारे में फैसला ले लेना चाहिए.’’ राजनैतिक जानकार राजन देसाई मानते हैं कि कांग्रेस-जीएफपी गठबंधन भाजपा की 10 साल की हुकूमत के सत्ता में लौटने की संभावनाओं को पलीता लगा सकता है. देसाई कहते हैं, ''अगर वे साथ मिलकर लड़ें तो दक्षिण गोवा में भाजपा को बहुत नुक्सान पहुंचा सकते हैं, जहां अल्पसंख्यक वोट बड़ी तादाद में हैं.’’

कांग्रेस और जीएफपी 2017 में भी ऐसी ही स्थिति में थीं. तब दोनों के बीच गठबंधन की बातचीत आखिरी वक्त बेपटरी हो गई जब राज्य कांग्रेस अध्यक्ष लुइजिन्हो फलेरो ने वादा तोड़कर सरदेसाई की मजबूत सीट फटोर्डा से जोस डी’सिल्वा को मैदान में उतार दिया था. बदले में जीएफपी ने नावेलिम में फलेरो के खिलाफ निर्दलीय एडविन सूजा को समर्थन दिया और चुनाव के बाद कांग्रेस की गठबंधन की गुजारिश ठुकराकर अपनी पार्टी के तीन विधायकों का समर्थन भाजपा को दे दिया, जिसकी बदौलत मनोहर पर्रीकर मुख्यमंत्री बने.
लगता है, कांग्रेस ने 2017 में सबसे बड़ी पार्टी होने के बाद भी सरकार न बना पाने की तत्कालीन महासचिव दिग्विजय सिंह की नाकामी से सबक सीख लिया है. इस बार पी. चिदंबरम गोवा के पर्यवेक्षक हैं. लेकिन पूर्व वित्त मंत्री ने भी 26 अगस्त को पणजी में कहा, ''हम सभी 40 सीटों की तैयारी कर रहे हैं. गठबंधन की अभी कोई बात नहीं है.’’
कांग्रेस और जीएफपी के बीच दरार पैदा करने की गरज से भाजपा ने 18 अगस्त को कांग्रेस के फटोर्डा ब्लॉक प्रमुख पिदादे नरोन्हा और संयोजक जोसफ सिल्वा को पार्टी में शामिल कर लिया. नरोन्हा अनुसूचित जनजाति के हैं और फटोर्डा में 25 फीसद वोट इसी समुदाय के हैं. भाजपा के उम्मीदवार दामोदर नाइक भी अनुसूचित जनजाति के हैं. कांग्रेस और जीएफपी अगर फटोर्डा में मतभेद सुलझा लें, तो भाजपा को तगड़ी टक्कर दे सकते हैं.
भाजपा की फिसलन भरी जमीन
केंद्रीय पर्यटन मंत्री श्रीपद नाइक ने कहा है कि भाजपा-एमजीपी गठबंधन से हिंदू वोटों का बंटवारा रोकने में मदद मिल सकती है. एमजीपी ने भी भाजपा या किसी भी दूसरी पार्टी के साथ गठबंधन की संभावनाओं को खारिज नहीं किया है. उसके अध्यक्ष सुदिन धावलिकर ने कहा कि अंतिम निर्णय पार्टी की केंद्रीय समिति करेगी. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि एमजीपी 12 सीटों पर चुनाव लड़ने के साथ कुछ अन्य सीटों पर निर्दलीयों का समर्थन करेगी. इसे पार्टी के अकेले चुनाव लड़ने का संकेत माना जा सकता है.
सावंत पहले भाजपा मुख्यमंत्री हैं जिन्हें दो-तिहाई विधायकों का समर्थन हासिल है. भाजपा के 27 विधायक हैं और एक निर्दलीय गोविंद गाउडे उसे समर्थन दे रहे हैं. भाजपा गोवा को लेकर संजीदा है, जुलाई में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा और महासचिव (संगठन) बी.एल. संतोष की ताबड़तोड़ यात्राएं कीं.
भाजपा ने साफ कर दिया है कि वह अगला चुनाव सावंत की अगुआई में लड़ेगी. अलबत्ता कई महत्वाकांक्षी मंत्री फच्चर फंसा सकते हैं. स्वास्थ्य मंत्री विश्वजीत राणे, राज्यसभा सांसद प्रमोद तेंडुलकर और राज्य पार्टी अध्यक्ष सदानंद शेट तानावड़े ने भी अपनी दावेदारी पेश कर दी है. यही नहीं, राणे के अलावा कम से कम तीन मंत्री अपनी पत्नियों के लिए टिकट चाहते हैं.
उप-मुख्यमंत्री चंद्रकांत कावलेकर सांगुएम सीट से पत्नी सावित्री, राणे पोरिएम से पत्नी दिव्या, पोत मंत्री माइकल लोबो सिओलिम सीट से पत्नी देलिलाह, पूर्व मंत्री पांडुरंग मदकैकर कुंबार्जुआ में अपनी जगह अपनी पत्नी जैनेट को लड़ाना चाहते हैं.
सावित्री और देलिलाह तो राजनीति में सक्रिय हैं. सावित्री सांगुएम से 2017 में कांग्रेस की टिकट चुनाव हार गई थीं, जबकि देलिलाह ग्राम पंचायत की सदस्य हैं. लोबो की पत्नी को सिओलिम से टिकट नहीं मिलती तो वे दो सीटों सिओलिम और सालिगाव में भाजपा की मुश्किल खड़ी कर सकते हैं. कावलेकर भी दक्षिण गोवा की चार सीटों पर पकड़ रखते हैं और भाजपा की संभवनाएं धूमिल कर सकते हैं. दीव्या अगर निर्दलीय बनकर जीत जाती हैं तो राणे मुख्यमंत्री पर सौदेबाजी कर सकते हैं.
मैदान में छोटी पार्टियां
आम आदमी पार्टी (आप) ने 2017 में गोवा की राजनीति में पहला कदम रखा था. तब वह सीटों से हाथ मलती रह गई थी. अब वह भी एमजीपी के साथ गठबंधन पर नजरें गड़ाए है. जुलाई में गोवा यात्रा के दौरान केजरीवाल ने कहा कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आई तो हर माह 300 यूनिट तक बिजली मुफ्त दी जाएगी.
2017 में आप के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार एल्विस गोम्स थे, जो अगस्त में कांग्रेस में चले गए. पार्टी अब महादेव नाईक के भरोसे हैं, जो भाजपा के पूर्व मंत्री हैं और जुलाई में पाला बदलकर आप में आए थे.
पूर्व आप नेता मनोज परब की अगुआई में रिवॉल्यूशनरी गोवन ने उत्तर गोवा में खासकर युवाओं के बीच खासा असर पैदा किया है. परब कहते हैं, ‘‘हमारा फोकस नौजवानों को ताकतवर बनाने पर है.’’ रिवॉल्यूशनरी गोवन 2022 में चुनावों में पहली बार उतरेगी और वह भाजपा को मुश्किल पेश कर सकती है.
मुख्यमंत्री सावंत ने भांप लिया है कि सत्ता की राह मुश्किल होगी. लिहाजा वे दो विषयों पर ध्यान दे रहे हैं, जो गोवावासियों के दिल के करीब हैं. ये हैं लौह अयस्क की खुदाई और पर्यटन. उनका कहना है कि नवगठित गोवा खनिज विकास निगम (जीएमडीसी) बनाने का मकसद खनिजों की खुदाई पर निर्भर तीन लाख लोगों को रोजगार देना है.
उन्होंने कहा, ''जीएमडीसी कई खदानों की लीज नीलाम करेगा. सरकार 2 करोड़ लाख टन लौह अयस्क की खुदाई करेगी.’’ उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्री को पत्र लिखकर आग्रह भी किया है कि 1 अक्तूबर से शुरू होने वाले टूरिज्म सीजन से पहले चार्टर उड़ानों को गोवा में उतरने की अनुमति दी जाए. ऐसा होता है तो राज्य के सुस्त पड़े पर्यटन क्षेत्र में नई जान आएगी. ठ्ठ
बदल गया है वक्त अल्ममत से बहुमत
कांग्रेस 2017 में 40*सदस्यीय विधानसभा में 17 सीटें पाकर सबसे बड़ी पार्टी थी. मुख्यमंत्री मनोहर पर्रीकर की मृत्यु के बाद अगस्त 2018 में अतानासियो मोनसेराते ने उपचुनाव में पणजी की सीट जीती. कांग्रेस ने 18 सीटें जीती थीं पर दलबदल से पांच पर सिमट गई
भाजपा ने बीते तीन साल में दूसरी पार्टियों में सेंध लगाकर 15 विधायक जुटाए, जो उसके मूल विधायकों से भी ज्यादा हैं
7 अप्रैल 2017: कांग्रेस के दिग्गज विश्वजीत राणे विधायक की शपथ लेने से पहले ही पाला बदलकर भाजपा में चले गए. उन्होंने उपचुनाव भाजपा के टिकट पर जीता और स्वास्थ्य मंत्री बनाए गए
17 अक्तूबर 2018: दो कांग्रेस विधायक सुभाष शिरोडकर और दयानंद सोप्ते पार्टी छोड़कर भाजपा में आए. दोनों ने बाद में भाजपा के टिकट पर उपचुनाव जीते
27 मार्च 2019: एमजीपी के मनोहर अजगांवकर और दीपक पावस्कर भाजपा में शामिल हुए. अजगांवकर को उप-मुख्यमंत्री बनाया गया, जबकि पावस्कर को पीडब्ल्यूडी की कमान मिली
11 जुलाई 2019: दस कांग्रेस विधायक—चंद्रकांत कावलेकर, अतानासियो मोनसेराते, जेनिफर मोनसेराते, फिलिप नेरी रोड्रिगेज, नीलकांत हलरंकर, फ्रांसिस्को सिल्वेरा, फ्लाफासियो डायस, इनसिडोर फर्नांडीस, विल्फ्रेड डीसा और टोनी फर्नांडीस—पाला बदलकर भाजपा में आ गए.