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म्यांमार शरणार्थीः दोतरफा मार में फंसे

म्यांमार के शरणार्थियों को वापस भेजने की केंद्र सरकार की जिद भी उत्पीड़न की आशंका वाले उनके मूल देश में जबरन वापस न भेजे जाने के सिद्धांत के प्रति भारत के समर्थन के विरुद्ध है

भविष्य की चिंता मिजोरम में एक स्थान पर म्यांमार से आए शरणार्थी
भविष्य की चिंता मिजोरम में एक स्थान पर म्यांमार से आए शरणार्थी
अपडेटेड 6 अप्रैल , 2021

मिजोरम में म्यांमार के शरणार्थियों को लेकर केंद्र और मिजोरम सरकार के असामान्य रूप से आमने-सामने आ जाने की स्थिति ने एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय शरणार्थियों के मामले में भारत का असंगत रुख उजागर कर दिया है. इस साल 1 फरवरी को सैन्य तख्तापलट में चुनी हुई सरकार को हटाए जाने के बाद से म्यांमार में उग्र विरोध प्रदर्शनों का दौर चल रहा है. रक्षा बलों की जवाबी कार्रवाई में दर्जनों लोग मारे गए हैं जबकि सैकड़ों लोगों को म्यांमार की सीमा से लगे भारतीय राज्यों में शरण लेने के लिए मजबूर होना पड़ा है.

भारत और म्यांमार की 1,643 किलोमीटर लंबी साझा सीमा पर मिजोरम, मणिपुर, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश स्थित हैं. अधिकांश शरणार्थी वे पुलिसकर्मी हैं जिन्होंने प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने का सैन्य शासन का आदेश मानने से इनकार कर दिया था. उनके साथ उनके परिजन हैं. वे सभी उत्पीड़न या संभवत: सामूहिक हत्या कर दिए जाने के डर से भागे हैं. म्यांमार के 700 से अधिक नागरिक मिजोरम और मणिपुर पहुंच चुके हैं. अनौपचारिक अनुमानों के अनुसार, यह संख्या 1,000 से अधिक है. अधिकतर शरणार्थी मिजोरम में हैं जिसकी म्यांमार के साथ 510 किलोमीटर साझा सीमा है. वे चम्फई, ह्नाथियाल, सेरछिप और सियाहा जिलों में डेरा डाले हुए हैं.

केंद्र सरकार ने म्यांमार की शक्तिशाली सेना—तात्मादाव—के साथ नई दिल्ली के घनिष्ठ संबंधों के मद्देनजर इन शरणार्थियों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया है. तात्मादाव ने कई मौकों पर पूर्वोत्तर के विद्रोही समूहों के खिलाफ कार्रवाई में भारतीय रक्षा बलों का समर्थन किया है. ऐसे कई समूहों के म्यांमार में अड्डे हैं. म्यांमार के सैन्य नेता मिन औंग ह्लाइंग अपने देश के एक विद्रोही समूह, अराकान आर्मी को चीनी समर्थन के मुखर आलोचक भी रहे हैं. यह उन कारणों में से एक है जिसके चलते भारत ने म्यांमार की सेना के साथ तब भी संबंध बनाए रखे थे जब वहां लोकतांत्रिक सरकार थी. भारत उन आठ देशों में भी शामिल था, जो 27 मार्च को म्यांमार में एक सैन्य परेड में शामिल हुए थे.

लंबी सीमा
लंबी सीमा

बीती 25 फरवरी को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मिजोरम, नगालैंड, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश के मुख्य सचिवों के साथ-साथ म्यांमार की सीमा की रखवाली करने वाली असम राइफल्स को शरणार्थियों का आगमन रोकने का निर्देश दिया. फिर, 10 मार्च को गृह मंत्रालय ने कहा कि यहां आ चुके शरणार्थियों को वापस म्यांमार भेजा जाए.

मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरमथंगा ने इन निर्देशों पर सार्वजनिक रूप से नाराजगी जताई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 18 मार्च को लिखे पत्र में उन्होंने कहा कि ''भारत हमारे एकदम करीब फैल रहे 'मानवीय संकट' की ओर से आंख नहीं मूंद सकता. मिजोरम के साथ लगते म्यांमार के क्षेत्रों में चिन समुदायों का निवास है, जो जातीय तौर पर हमारे मिजो भाई हैं जिनके साथ हमारा निकट संपर्क भारत के स्वतंत्र होने के पहले से रहा है.'' पत्र में कहा गया है कि ''मिजोरम आज उनके कष्टों के प्रति उदासीन नहीं रह सकता.''

धर्म भी मिजो जनजातियों को चिन नृवंशीय समूहों के साथ बांधता है. मिजोरम ईसाई-बहुल है और बौद्ध-बहुसंख्यक म्यांमार के चिन लोग भी ईसाई हैं. बहुत से विवाह सीमा पार होते हैं और दोनों पक्षों के लोग नियमित रूप से कामकाज या रिश्तेदारों से मिलने के लिए सीमा पार आते-जाते हैं.

म्यांमार-भारत सीमा के बड़े हिस्से मानव-रहित और बाड़-रहित हैं. दोनों देशों के बीच मुक्त आवागमन व्यवस्था (एफएमआर) लोगों को एक-दूसरे के देशों में 16 किमी तक की यात्रा करने और 14 दिनों तक वहां रहने की अनुमति देती है. गोमांस, सूअर का मांस, अच्छे चावल, फल और घरेलू बर्तनों जैसी आवश्यक वस्तुओं के लिए मिजोरम, म्यांमार पर निर्भर है. मिजोरम, म्यांमार में दवाएं और उर्वरक जैसी वस्तुएं भेजता है जिनकी वहां कमी है. दिल्ली में इंस्टीट्यूट ऑफ पीस ऐंड कॉन्फ्लिक्ट स्टडीज की निदेशक रूही निओग का कहना है कि ''सीमा के आर-पार पीढ़ियों से चले आ रहे संबंध उससे बहुत अलग हैं जो इन सीमाओं के कागजी अध्ययन में मिलेंगे.''

शरणार्थियों को मिजो लोगों और उनके नागरिक समाज समूहों के बीच बढ़ता हुआ समर्थन आधार मिला है. मिजो ग्राम सभाओं ने चिन शरणार्थियों को रखने की इच्छा व्यक्त करते हुए बयान जारी किए हैं. मिजोरम सरकार ने राज्य में शरणार्थियों के ठहरने की सुविधा के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) जारी की है. जोरमथंगा ने 24 फरवरी को राज्य विधानसभा में बयान दिया था कि उनकी सरकार म्यांमार शासन से भाग कर आने वाले नागरिकों को सहायता प्रदान करने के लिए तैयार है. लेकिन केंद्र से मिले निर्देश के बाद इस एसओपी को वापस ले लिया गया था.

2011 में केंद्र ने विदेशी शरणार्थियों से निपटने के लिए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को एक एसओपी भेजा था. जाति, धर्म, लिंग, राष्ट्रीयता, नृवंशीय पहचान और किसी सामाजिक समूह की सदस्यता या राजनैतिक मत के कारण उत्पीड़न के आधार पर जिन मामलों को प्रथमदृष्ट्या उचित ठहराया जा सकता है, उन मामलों में सुरक्षा मंजूरी के बाद दीर्घकालिक वीजा की सिफारिश केंद्रीय गृह मंत्रालय को भेजी जा सकती है. हालांकि दीर्घकालिक वीजा की मंजूरी का अंतिम निर्णय केंद्र सरकार ही करेगी.

जोरमथंगा के प्रधानमंत्री को पत्र लिखने के दो दिन बाद मिजोरम का एक प्रतिनिधिमंडल, जिसमें राज्य के दो सांसद शामिल थे, ने गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय से मुलाकात की और म्यांमार के शरणार्थियों के लिए मदद का अनुरोध किया. राज्यसभा में मिजो नेशनल फ्रंट के एकमात्र प्रतिनिधि के. वनलालवेना ने उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू से मुलाकात की और कहा कि शरणार्थियों को निर्वासित करने से उनका जीवन खतरे में पड़ जाएगा. लेकिन केंद्र अपने रुख पर कायम है.

इस बीच, मणिपुर में भाजपा-नीत सरकार ने 26 मार्च को अधिकारियों और नागरिक समाज को निर्देश दिया कि वे गंभीर रूप से घायल लोगों की चिकित्सा पर ध्यान देने के सिवा म्यांमार के शरणार्थियों को भोजन और आश्रय की पेशकश न करें. इस पर पैदा हुए जनाक्रोश के बाद यह आदेश वापस लेना पड़ा.

स्वतंत्र पर्यवेक्षक मिजोरम-केंद्र गतिरोध के लिए अंतरराष्ट्रीय शरणार्थियों के बारे में स्पष्ट नीति के अभाव को जिम्मेदार ठहराते हैं. भारत संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी संधि 1951 और शरणार्थियों की स्थिति से संबंधित 1967 के प्रोटोकॉल का हस्ताक्षरी नहीं है. हालांकि भारत ने अतीत में श्रीलंका, ईरान और तिब्बत में उत्पीड़न से बच कर भागने वालों को शरण दी है फिर भी शरणार्थियों के बारे में इसकी नीति असंगत रही है. उदाहरण के लिए तमिलों, तिब्बतियों और अफगानों का स्वागत करने वाली भारत सरकार म्यांमार के रोहिंग्याओं को सुरक्षा खतरा मानती है.

हालांकि आतंकी गतिविधियों में रोहिंग्याओं की कथित संलिप्तता पर चिंता की अनदेखी नहीं की जा सकती, लेकिन 2019 में नागरिकता (संशोधन) अधिनियम पारित होने के बाद से उनके बारे में सरकार का रवैया जांच-पड़ताल बढ़ाने का रहा है. दिल्ली स्थित साउथ एशिया ह्यूमन राइट्स डॉक्यूमेंटेशन सेंटर के कार्यकारी निदेशक रवि नायर कहते हैं, ''म्यांमार में जो हो रहा है वह उत्पीड़न का उदाहरण है. लेकिन, भारत अपनी विदेश नीति को लेकर बेईमान रहा है. म्यांमार में सेना के साथ संबंध बनाए रखने के लिए चीन कार्ड को अनावश्यक तूल दिया जा रहा है. इसके अलावा, सीएए सताए जा रहे लोगों के संरक्षण की चिंता नहीं करता. इसे चुनावी गुणा-भाग के हिसाब से पारित किया गया था.''

म्यांमार के शरणार्थियों को वापस भेजने की केंद्र सरकार की जिद भी उत्पीड़न की आशंका वाले उनके मूल देश में जबरन वापस न भेजे जाने के सिद्धांत के प्रति भारत के समर्थन के विरुद्ध है. निओग कहती हैं, ''मानवतावाद को किसी बौद्धिक औचित्य की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए.''