scorecardresearch

समारोह में फायरिंग: खुशी का खून करती गोलियां

तमाम सरकारी आदेशों और नियमों के बावजूद समारोहों में धड़ल्ले से हो रही है फायरिंग और लोग गंवा रहे हैं अपनी जान.

अपडेटेड 11 मार्च , 2013

इस माह 5 फरवरी को मेरठ जिले के इंचौली थाना क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले गांव साधारणपुर  के निवासी कटार सिंह के दो बेटों सुमित और मोहित की बारात हस्तिनापुर के सैदपुर गांव जा रही थी. बारात में डांस कर रहे कुछ युवकों ने अचानक हवाई फायरिंग शुरू की. फायरिंग के दौरान एक गोली बारात में शामिल अमरोहा निवासी 20 वर्षीय रवि के चेहरे पर लगी, जिसने मौके पर ही दम तोड़ दिया. पुलिस ने जांच शुरू कर दी, लेकिन घटना के बारे में किसी पक्ष ने कोई तहरीर नहीं दी. 
* 2 फरवरी को रमाबाई नगर के एक गांव सरगांव  के बुजुर्ग निवासी शिवपाल यादव के पुत्र के तिलक समारोह में आए राजू सिंह और जितेंद्र ने अचानक पिस्टल से फायरिंग शुरू कर दी. खुशी जाहिर करने के लिए की जा रही फायरिंग से मौके पर मौजूद एक युवक 21 वर्षीय संतराम निशाना बना. पुलिस ने दो लोगों के खिलाफ गैर-इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया है. 
* इसी वर्ष 30 जनवरी को उन्नाव के फतेहपुर चौरासी कस्बे के माढ़ापुर गांव निवासी सुंदरलाल के बेटे विनय कुमार यादव के तिलक समारोह में उसके एक दोस्त ने नशे में धुत होकर देसी तमंचे से फायरिंग की. गोली एक आदमी के पेट में लगी और अस्पताल पहुंचने से पहले उसकी मौत हो गई. पुलिस ने जांच शुरू कर दी है. 
* 28 जनवरी को लखनऊ के चिनहट ब्लॉक के लक्ष्मणपुरवा गांव में अजय कुमार यादव का तिलक समारोह था. समारोह के दौरान चिनहट का सराय शेख निवासी कल्लू शराब के नशे में तमंचे से फायरिंग करने लगा. गोली नहीं चली तो उसने तमंचे को ठोका-पीटा और नाल नीचे कर ट्रिगर दबा दिया. गोली चली और पास खड़े एक युवक की गरदन में जा धंसी जिसने मौके पर ही दम तोड़ दिया. पुलिस ने कल्लू को तमंचे के साथ गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.UP gun faishon
यूपी के अलग-अलग जिलों में हुई ये घटनाएं इस ओर इशारा करती हैं कि खुशी के मौके पर हथियारों का प्रयोग कितना जानलेवा साबित हो रहा है. गृह विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, मार्च, 2012 से जनवरी, 2013 तक प्रदेश में कुल 59 लोग वैवाहिक, राजनैतिक या अन्य समारोहों में होने वाली फायरिंग में अपनी जान गंवा चुके हैं. अदालत और सरकार की सख्ती के बावजूद मरने वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है. पुलिस विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, 2009 में 40, 2010 में 45 और 2011 में 48 लोग खुशी जताने के लिए की गई फायरिंग के कारण मारे गए. इन घटनाओं को रोकने के लिए प्रदेश सरकार ने 2001 और 2010 में एक शासनादेश जारी कर समारोहों में फायरिंग को पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया था.
पिछले 11 माह में प्रदेश में सामने आए 59 मामले यही साबित करते हैं कि सरकार की सख्ती के बावजूद समारोहों में होने वाली फायरिंग पर पूरी तरह नियंत्रण नहीं पाया जा सका है. हाइकोर्ट   की लखनऊ बेंच में सीनियर वकील शैलेंद्र सिंह चौहान कहते हैं कि सरकार फायरिंग के जो आंकड़े पेश कर रही है, वे वास्तविक संख्या का महज पांच फीसदी हैं. वे कहते हैं, ''समारोहों में फायरिंग के वही मामले दर्ज होते हैं, जिसमें कोई बड़ी दुर्घटना हो जाती है. ऐसे समारोहों की संख्या बहुत ज्यादा है, जिनमें खुशी के चलते हुई फायरिंग में किसी को हल्की चोट लग गई लेकिन शिकायत न होने के कारण कोई कार्रवाई नहीं हुई. ''
हकीकत यह है कि फायरिंग करने वालों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई नियम-कानूनों के पेच में उलझकर रह गई है. यह तक स्पष्टï नहीं है कि ऐसे मामलों में आरोपी पर किन कानूनों के तहत मुकदमा दर्ज किया जाए. पूर्वांचल में तैनात एक वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) बताते हैं कि समारोहों में फायरिंग के चलते किसी की मौत होने पर ज्यादा-से-ज्यादा भारतीय दंड संहिता की धारा 304 (ए) के तहत दुर्घटना के कारण मौत का मुकदमा  दर्ज किया जाता है, जो जमानती अपराध है. इसमें आरोपी को अधिकतम तीन साल की सजा होती है. इसके अलावा हथियारों के दुरुपयोग के लिए  'आर्म्‍स ऐक्ट-1959' की धारा 30 के तहत मुकदमा दर्ज होता है. इसमें भी अधिकतम तीन साल का कारावास और हथियार का लाइसेंस निरस्त करने की सजा होती है. वे बताते हैं कि आर्म्‍स ऐक्ट के मुताबिक पुलिस को केवल हथियार का लाइसेंस निरस्त करने की संस्तुति का अधिकार है. इसमें भी अंतिम निर्णय जिलाधिकारी का होता है. पुलिस और स्थानीय प्रशासन के बीच बेहतर सामंजस्य के अभाव में प्रदेश के सभी जिलों में ज्यादातर मामलों में लाइसेंस निरस्तीकरण की कार्रवाई पर निर्णय अटका हुआ है. सेवानिवृत्त पुलिस महानिरीक्षक एस.आर. दारापुरी कहते हैं, ''लोगों को पता ही नहीं है कि फायरिंग रोकने के लिए सरकार ने क्या-क्या आदेश जारी किए हैं. प्रदेश सरकार के क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के पास फायरिंग से जुड़ा कोई  'डाटा बेस' नहीं है. ''
लखनऊ रेंज के डीआइजी नवनीत सिकेरा कहते हैं, ''वैवाहिक समारोह भी अब शक्ति प्रदर्शन का माध्यम बनते जा रहे हैं. सो, इन समारोहों में हथियारों का अवैध प्रदर्शन बढ़ा है. ''
इस बढ़ती सामाजिक बुराई की बाबत कान्यकुब्ज कॉलेज, लखनऊ में समाजशास्त्र विभाग के डॉ. विनोद चंद्रा बताते हैं कि शादी समारोहों में अब पैसे की फिजूलखर्ची और शराब का चलन बढ़ता जा रहा है, ''ऐसे समारोहों में ज्यादातर लोग अपनी सुरक्षा के लिए लाइसेंसी हथियार लेकर आते हैं, लेकिन शराब के नशे में अचानक फायरिंग शुरू कर देते हैं. ''
सेवानिवृत्त पुलिस अधीक्षक एस.के. वर्मा इस बढ़ते चलन की बाबत कहते हैं, ''ये घटनाएं तब तक नहीं रुक सकतीं, जब तक आयोजनकर्ता फायरिंग न होने दें. पुलिस लाइसेंस धारकों पर नजर रख सकती है, लेकिन हथियारों के अवैध  प्रयोग को जागरूकता से ही रोका जा सकता है. '' सूबे में लगातार बढ़ रही फायरिंग की घटनाओं को रोकने के लिए पुलिस विभाग ने जागरूकता फैलाने की दिशा में अभी तक कोई काम नहीं किया है. प्रमुख गृह सचिव आर.एम. श्रीवास्तव कहते हैं, ''हर महीने पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों के साथ मीटिंग कर समारोहों में फायरिंग रोकने के लिए की गई कार्रवाई की प्रोग्रेस रिपोर्ट मांगी जा रही है. '' शायद इससे ऐसी घटनाओं पर लगाम लग सके.