इशरत जहां मुठभेड़ मामले से कांग्रेस को उम्मीद है कि 2004 का यह मामला गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की 7 रेसकोर्स रोड की दौड़ की बड़ी बाधा बन जाएगा. इन अटकलों को तब बल मिला जब सीबीआइ ने इस मुठभेड़ में कथित तौर पर शामिल गुजरात पुलिस के चार अधिकारियों की जमानत होने दी. इन अधिकारियों में गुजरात के आइपीएस अधिकारी जी.एल. सिंघल भी शामिल हैं जिनकी जमानत उन्हें सरकारी गवाह बनाने के इरादे से करवाई गई है. उसने खुफिया ब्यूरो (आइबी) के अधिकारी राजेंद्र कुमार को भी पूछताछ के लिए बुलाया. राजेंद्र कुमार ने गुजरात पुलिस को यह सूचना दी थी कि इशरत और दो पाकिस्तानियों सहित तीन अन्य लोग मोदी, लालकृष्ण आडवाणी और विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) नेता प्रवीण तोगडिय़ा की कथित तौर पर हत्या करने के लिए गुजरात पहुंचने वाले हैं.
14 जून को एक प्रमुख समाचार चैनल ने सीबीआइ सूत्रों के हवाले से दावा किया कि सिंघल सरकारी गवाह बन चुके हैं और भारतीय दंड संहिता की धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के सामने अपना बयान भी दर्ज करा चुके हैं. इस बयान के तीन मुख्य बिंदु हैं:
-आइबी के राजेंद्र कुमार ने मुठभेड़ के पहले और बाद सीएम ऑफिस से 37 बार बात की थी.
-इशरत के साथी प्राणेश पिल्लै उर्फ जावेद शेख सहित चारों लोगों को गुजरात पुलिस गुजरात-महाराष्ट्र सीमा से उठाकर अहमदाबाद ले आई थी और उनसे पूछताछ करने के बाद जान-बूझकर उनकी हत्या कर दी थी. उसके बाद उनकी लाशों को अहमदाबाद के बाहरी इलाके में एक जगह पर ऐसे लगा दिया कि मुठभेड़ वास्तविक लगे.
-कथित आतंकवादियों के पास से बरामद हथियारों की व्यवस्था राजेंद्र कुमार ने की थी.
यह बयान अगर सच है तो अन्य साक्ष्यों द्वारा प्रमाणित होने पर सीबीआइ इसका इस्तेमाल मोदी और उनके विश्वासपात्र, गुजरात के तत्कालीन गृह मंत्री एवं फिलहाल उत्तर प्रदेश के प्रभारी बीजेपी महासचिव अमित शाह के खिलाफ चार्जशीट दायर करने के लिए कर सकती है.
आम चुनाव के पहले मुस्लिम उत्पीडऩ की तस्वीर पेश करने के लिए इशरत की मौत का राजनीतिकरण किया जा रहा है. मोदी की मुस्लिम विरोधी छवि बनाने के लिए कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के नेता मुंबई के गुरु नानक देव कॉलेज की छात्रा 19 वर्षीया इशरत को निर्दोष के तौर पर पेश कर रहे हैं. हालांकि कांग्रेस और एनसीपी की इस रणनीति को पिछले हफ्ते तब तगड़ा झटका लगा जब आइबी के निदेशक आसिफ इब्राहिम ने सीबीआइ, प्रधानमंत्री कार्यालय और केंद्रीय गृह मंत्रालय के सामने ठोस सबूत पेश किया कि पाकिस्तानियों—अमजद अली राणा और जीशान जौहर समेत वे चारों मोदी की हत्या के इरादे से गठित लश्करे-तय्यबा के एक मॉड्यूल का हिस्सा थे.
सूचना के मुताबिक, इब्राहिम ने कहा कि राजेंद्र कुमार सीधे-साधे व्यक्ति हैं और उन्हें सजा होने पर भारत की प्रमुख घरेलू गुप्तचर एजेंसी को तगड़ा झटका लगेगा. उन्होंने जो सबूत पेश किए उनमें इन चारों के एक आतंकी मिशन पर होने को साबित करने वाला शेख के साथ एक लश्कर आतंकी की बातचीत का टेप और एफबीआइ के समक्ष 2008 के मुंबई आतंकी हमले के आरोपी डेविड हेडली द्वारा दी गई यह गवाही भी थी कि इशरत लश्कर की सदस्य थी. इंडिया टुडे समूह के समाचार चैनल आजतक तथा हेडलाइंस टुडे ने लश्कर आतंकी तथा शेख की टेप की हुई बातचीत को सबसे पहले प्रसारित किया.
गौरतलब है कि इस मामले से संबंधित प्रमुख अधिकारियों में से एक, अहमदाबाद क्राइम ब्रांच के तत्कालीन संयुक्त पुलिस आयुक्त और वर्तमान में गुजरात के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक पी.पी. पांडेय गिरफ्तारी के वारंट से बचने के लिए मई में भूमिगत हो गए. सीबीआइ ने अदालत से उन्हें फरार घोषित करने का अनुरोध किया है. पांडेय पर इस कथित फर्जी मुठभेड़ में शामिल मुख्य अधिकारियों में से एक होने का आरोप है. इस मामले में सीबीआइ का प्रवेश तब हुआ जब इशरत और शेख के रिश्तेदारों ने मुठभेड़ को फर्जी बताते हुए गुजरात हाइकोर्ट में याचिका दायर की और कहा कि उनका पाकिस्तान के आतंकी संगठन लश्कर से कोई संबंध नहीं था.
दिलचस्प तो यह है कि मुठभेड़ के दिन लाहौर में लश्कर के मुखपत्र गजवा टाइम्स ने इशरत को लश्कर की सदस्य बताते हुए उसे 'इस्लाम की खातिर शहीद’ बताया था. बहरहाल 2007 में शेख के पिता द्वारा सीबीआइ जांच की मांग को लेकर अदालत का दरवाजा खटखटाने के कुछ दिन पहले लश्कर के मूल संगठन जमात-उद-दावा ने पहले के बयान को वापस लेते हुए दावा किया कि इशरत लश्कर की सदस्य नहीं थी. इस नए बयान में पहले किए गए दावे को एक भूल करार देते हुए संगठन द्वारा खड़ी की गई मुश्किलों के लिए इशरत के परिवार से माफी मांगी गई. लश्कर से संबंधित मामले के घटनाक्रम और याचिका का दायर किया जाना इस बात का संकेत है कि आतंकी संगठन लश्करे-तय्यबा के इस यू-टर्न का उद्देश्य भारत में अदालत को गुमराह और आइबी को बदनाम करना था.
इस मुद्दे पर इब्राहिम के रुख ने एक ऐसे समय में कांग्रेस के सामने गुनाह बेलज्जत वाली स्थिति खड़ी कर दी है जबकि मोदी यूपीए से दो-दो हाथ करने के लिए अपनी पार्टी को एकजुट करने की मुहिम पर हैं. बीजेपी सीबीआइ के पीछे कांग्रेस के 'हाथ’ को बेनकाब करने की उम्मीद कर रही है. बीजेपी की प्रवक्ïता निर्मला सीतारमन कहती हैं, ''अब जनता के सामने यह तथ्य जाहिर हो चुका है कि कांग्रेस वोटों की खातिर राष्ट्रीय सुरक्षा को भी दरकिनार कर सकती है. मोदी पर अभियोग दायर करने के किसी भी प्रयास का उलटा असर होगा.” कांग्रेस के प्रवक्ता तहसीन पूनावाला बीजेपी के इस आरोप को खारिज करते हुए कहते हैं, ''जान-बूझकर की गई ऐसी हत्याओं को उचित नहीं ठहराया जा सकता. यदि वे आतंकवादी थे तो उनके खिलाफ कानून के अनुसार कार्रवाई की जानी चाहिए थी.”
यदि सीबीआइ सचमुच मोदी पर मुठभेड़ को गढऩे का आरोप लगाते हुए चार्जशीट दर्ज करती है तो यह मामला एक गंभीर मोड़ ले सकता है. मगर कांग्रेस को न केवल प्रतिबद्ध हिंदू वोटों पर पडऩे वाले संभावित असर का ध्यान रखना पड़ेगा बल्कि आतंकवाद के मुद्दे पर किसी भी तरह के समझौते के विरोधी उदार हिंदू वोटों पर पडऩे वाले असर का भी आकलन करना होगा. वहीं एक ऐसे समय में कोई आरोप मोदी के लिए शर्मिंदगी का सबब होगा जब वे अपनी छवि को बिलकुल साफ रखना चाहेंगे. इसका दूसरा पहलू यह है कि बीजेपी इसका इस्तेमाल उन्हें एक ऐसे मजबूत व्यक्ति के रूप में पेश करने के लिए कर सकती है जो आतंकवाद से दो-दो हाथ करने के लिए कमर कसकर तैयार है.